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निशाने पर भाषा, संस्कृति और इतिहासजुलाई-2006 से नया शिक्षण सत्र प्रारम्भ हो रहा है। इसके साथ ही एन.सी.ई.आर.टी. की पुनर्लिखित पुस्तकें बाजार और स्कूलों में पहुंच चुकी हैं। ये पुस्तकें चूंकि पाठपुस्तकों के “निर्विषीकरण” की मानव संसाधन विकास मंत्रालय की कोशिशों का परिणाम हैं, अतएव इनकी सामग्री प्रारम्भ से शिक्षा क्षेत्र से जुड़े विद्वानों, राष्ट्रवादी चिन्तकों एवं अभिभावकों के लिए चिन्ता का विषय रही है। यहां प्रस्तुत है एन.सी.ई.आर.टी. की पुर्नप्रकाशित पुस्तकों एवं शिक्षा क्षेत्र में चल रहे मूल्यपरक राष्ट्रवादी आन्दोलन पर एक विशेष आयोजन-प्रस्तुति : राकेश उपाध्यायमानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा सन् 2005 में बनाई गई राष्ट्रीय पाठ्यचर्या के आधार पर लिखी गईं पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् ने इन पुस्तकों का प्रकाशन किया है। उल्लेखनीय है कि इन नवीन पुस्तकों के प्रकाशन का निर्णय सन् 2004 में केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के तत्काल बाद संप्रग सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह और उनकी “बौद्धिक मण्डली” के सेकुलर योद्धा प्रो. यशपाल, प्रो. नामवर सिंह आदि ने यह कहते हुए लिया था कि राजग के कार्यकाल में शिक्षा का भगवाकरण किया गया है अत: प्राथमिक कक्षा से लेकर उच्चतर माध्यमिक कक्षाओं की सभी पाठ्यपुस्तकों का पुनप्र्रकाशन “निर्विषीकरण” के साथ होना जरूरी है। चूंकि जुलाई का महीना प्रारम्भ हो गया है और नई पुस्तकों के माध्यम से हमारे नौनिहाल अपनी पढ़ाई शुरू कर चुके हैं, अत: इन पुस्तकों में क्या कुछ नया और विषैला है, इस पर एक दृष्टि डालना जरूरी हो जाता है ताकि पता चल सके कि एन.सी.ई.आर.टी. “निर्विषीकरण” के नाम पर बच्चों को कौन-सा “अमृत” पिलाने जा रही है?क्या यह अवंती है?कक्षा 3 की पाठपुस्तक रिमझिम के पृष्ठ 78 पर एक पाठ है “कब आऊं‚”? इसमें अवंती नामक एक धोबी और एक सेठ का वर्णन किया गया है। इस कहानी में अवंती और सेठ की एक बड़ा रंगीन चित्र भी दिया गया है। विशेष बात यह है कि अवंती इस चित्र में मुस्लिम वेष-भूषा में दिखाया गया है। संभव है कि “अवंती” नाम गलती से लिख दिया गया हो या फिर जानबूझ कर अवंती को मुल्ला टोपी पहना दी गई है? धोबी ने पण्डित जी से पूछा-जरा पोथी बांचकर बताइए तो मेरा गधा कहां है?रिमझिम, कक्षा-3 की पुस्तक के टिपटिपवा नामक पाठ में एक धोबी का गधा गायब होने की कहानी लिखी गई है। इस कहानी का यह अंश देखिए-“उसी गांव में एक धोबी रहता था। वह भी बारिश से परेशान था। सुबह से उसका गधा गायब था। सारा दिन वह बारिश में भीगता रहा और जगह-जगह गधे को ढूंढता रहा लेकिन वह कहीं नहीं मिला।धोबी की पत्नी बोली-जाकर गांव के पंडित जी से क्यों नहीं पूछते? वे बड़े ज्ञानी हैं। आगे-पीछे, सबके हाल की उन्हें खबर रहती है। पत्नी की बात धोबी को जंच गई। अपना मोटा लट्ठ उठाकर वह पंडित जी के घर की तरफ चल पड़ा। उसने देखा कि पंडित जी घर में जमा बारिश का पानी उलीच-उलीच कर फेंक रहे थे। धोबी ने बेसब्राी से पूछा-महाराज, मेरा गधा सुबह से नहीं मिल रहा है। जरा पोथी बांचकर बताइए तो वह कहां है?”कक्षा 9 के लिए हिन्दी भाषा की पुस्तक है “क्षितिज” भाग-एक। इस पुस्तक के आमुख में पहले ही स्पष्ट कर दिया गया है कि भारतीय समाज के बहुभाषिक परिवेश को ध्यान में रखकर पुस्तकें तैयार की गई हैं। बहुभाषिक परिवेश के नाम पर हिन्दी में जिन शब्दों की मिलावट की गई है और जिस भौंडे तरीके की अनूदित सामग्री हिन्दी के नाम पर प्रस्तुत की गई है, सम्भवत: हिन्दी प्रेमियों के लिए इससे बढ़कर निराशा की बात कुछ और नहीं हो सकती। फारसी में शेरो-शायरी, अंग्रेजी कविताएं, उर्दू के संवाद भी निश्चित रूप से बच्चों के सामने संकट खड़ा करेंगे कि वे हिन्दी सीख रहे हैं या फिर कुछ और। उर्दू, अंग्रेजी, फारसी के सैकड़ों शब्द सिर्फ कक्षा 6 के लिए लिखी “क्षितिज” पुस्तक में ही मिल गए हैं, शेष की तो बात ही अलग है। आइए कुछ शब्दों पर नजर डालें। आप भी इन शब्दों का अर्थ समझने में एकबारगी चक्कर खा जाएंगे। “बेजा, जरदार, निअमत, लामजहब, खुतबाख्वां, परदानशीं, फरमाबरदार, पोशीदा, मिराक, तकुल्लुफ, किस्सा मुख्तसर, वसीला, खामखाह, मरदूद, हीले हुज्जत, इश्नान, सिजदा, रिवायती, अलगनी, नवीसी, साकिन, खुराफत, बुरकतबातें” आदि शब्द तो मात्र कुछ उदाहरण है, हुजुम, शोख, बेतरतीब, मुखातिब, मेहमाननवाजी, हासिल, जाहिल, मशक, फख्र, जहमत उठाना, बजा फरमाना, दरखास्त, शेखीबाज, सरअंजाम, मंसूबा, मुमकिन, शिद्दत, खानाबदोश जैसे सैकड़ों शब्द अपने पूरे शब्द परिवार के साथ ताल ठोंककर हिन्दी के “हरम” में जुड़ गए हैं।और अंग्रेजी तो विशेष स्थान पाए है इन पुस्तकों में। कक्षा 11 के लिए हिन्दी भाषा की लिखी पुस्तक अन्तरा के पृष्ठ 40 पर एक कविता है-डांस लिटिल बेबी, डांस अप हाई,नेवर माइंड बेबी, मदर इज ने।तो जब अंग्रेजी की पूरी की पूरी कविता ही मिल रही है तो शब्दों के बारे में सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। कक्षा 11 की पुस्तक “आरोह” में रजनी नामक नाटक लगता ही नहीं कि हिन्दी भाषा में लिखा गया नाटक है। क्या दर्शाया गया है इसमें, यही न कि शुद्ध हिन्दी में नाटकों का अकाल है? कुछ उदाहरण-वाइस चांसलर, मार्जिन, वर्कर, रिलीफ, बैक बोन, कामन रूम, स्टैंजा, लैंड स्केप, एक्सप्रेशनिस्ट, वीकनेस, रियलिज्म, फैकल्टी आफ फाइन आर्ट्स, कंटिन्यूइटी शाट्स, रिकगनाइज रिसर्च प्रोजेक्ट, इंपोर्टेन्ट मैटर्स, एप्रूव्ड आदि। जगह-जगह पूरे के पूरे अंग्रेजी वाक्यों जैसे “आई एम प्राउड आफ यू, इट्स आवर ड्यूटी मैडम, आई मीन व्हाट आई से, विल यू प्लीज गेट आउट आफ दिस रूम” आदि की भरमार है। आरोह में ही एक हास्य व्यंग्य है “कृश्न चंदर” का लिखा हुआ “जामुन का पेड़”। इसके कुछ “हिन्दी” वाक्य देखिए- “सुपरिंटेंडेंट अंडर-सेक्रेटरी के पास गया, अंडर-सेक्रेटरी डिप्टी सेक्रेटरी के पास गया।” और आगे देखिए- “इस मामले को हार्टीकल्चर डिपार्टमेंट के हवाले कर रहे हैं, क्योंकि यह एक फलदार पेड़ का मामला है और एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट अनाज और….।” ऐसे कितने ही वाक्य हैं। सचमुच अच्छा व्यंग्य है किन्तु किस पर? सोचने की बात है।रहीम के दोहे, कबीर का बीजक, तुलसी की चौपाइयां, महाकवि माघ, घाघ और भूषण की रचनाएं यदि आप एन.सी.ई.आर.टी. की पुस्तकों में ढूंढेंगे, तो बस ढूंढते ही रह जाएंगे, लेकिन थोड़े पन्ने पलटते ही आपको शेरो-शायरी का आनन्द जरूर मिल जाएगा।”वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता, मैं बेकरार हूं आवाज में असर के लिए। यहां दरख्तों के साये में धूप लगती है, चलो यहां से चलें उम्र भर के लिए।” ये गजल है स्व. दुष्यंत कुमार की, हिन्दी की पुस्तकों में यह भी पढ़ाई जा रही है। इस गजल के ठीक 4 पन्ने बाद (पृष्ठ 173 पुस्तक-आरोह, कक्षा-11) में “पाश” की कविता और उनका जीवन परिचय ही समझा देता है कि किशोर विद्यार्थी को इन कविताओं का क्या संदेश ग्रहण करना है। अवतार सिंह संधू उपाख्य पाश के जीवन परिचय में लिखा गया है- “1967 में पाश बंगाल के नक्सलवादी आंदोलन से जुड़े और विद्रोही कविता का नया सौंदर्य विधान विकसित कर उसे तीखा किन्तु सृजनात्मक तेवर दिया…. जिनमें लोक संस्कृति और परम्परा का गहरा बोध मिलता है।” “विद्रोही पाठों” का शिक्षण यहीं तक होता तो भी कोई बात न थी, मीरा और अक्क महादेवी के उदाहरण द्वारा भारत में स्त्री मुक्ति आंदोलन के जन्म को प्राचीन सिद्ध कर पाश्चात्य नारी मुक्ति की अवधारणा को एन.सी.ई.आर.टी. ने भारतीय परम्परा का अंग बनाने व बताने प्रयास किया है। आरोह के पृष्ठ 169 पर अक्क महादेवी का परिचय दिया गया है- “अक्क महादेवी अपूर्व सुंदरी थीं। एक बार वहां का स्थानीय राजा इनका अलौकिक सौंदर्य देखकर मुग्ध हो गया तथा इनसे विवाह हेतु इनके परिवार पर दबाव डाला। अक्क महादेवी ने विवाह के लिए राजा के सामने तीन शर्तें रखीं। राजा ने विवाह के बाद उन शर्तों का पालन नहीं किया, इसलिए महादेवी ने उसी क्षण राज-परिवार को छोड़ दिया। अक्क ने सिर्फ राजमहल ही नहीं छोड़ा, वहां से निकलते समय पुरुष वर्चस्व के विरुद्ध अपने आक्रोश की अभिव्यक्ति के रूप में अपने वस्त्रों को भी उतार फेंका। वस्त्रों को उतार फेंकना केवल वस्त्रों का त्याग नहीं बल्कि एकांगी मर्यादाओं और केवल स्त्रियों के लिए निर्मित नियमों का तीखा विरोध था। ….. इस प्रकार अक्क महादेवी की कविता पूरे भारतीय साहित्य में क्रांतिकारी चेतना का पहला सर्जनात्मक दस्तावेज है और संपूर्ण स्त्रीमुक्ति आंदोलन के लिए एक अजस्र प्रेरणास्रोत भी।”एन.सी.ई.आर.टी. ने कक्षा-11 की अन्तरा नामक पुस्तक में चर्चित और विवादास्पद चित्रकार मकबूल फिदा हुसैन की आत्मकथा भी दी है। मकबूल फिदा हुसैन की अश्लील, काम पिपासू मानसिकता से कौन परिचित नहीं है। हुसैन ने इस आत्मकथा में एक जगह लिखा है- “अक्सर मेहतरानी कपड़े धोने के साबुन की टिकिया लेने आया करती। मेरे चाचा को देखकर उसके घूंघट के पट खुल जाते।… मैंने उसके कई स्केच बनाए। एक स्केच उसके हाथ लग गया, जिसे उसने फौरन अपनी चोली में डाल लिया।…. मैंने पिपरमिंट की गोली हाथ में थमाई और स्केच निकलवा लिया।” कक्षा 11 की “आरोह” नामक पुस्तक के पृष्ठ 126 पर विद्यार्थियों से कहा गया है कि वे फिर हुसैन की पेंटिग प्राप्त करने के लिए इन्टरनेट या फिर कला दीर्घाओं से सम्पर्क करें। इस माध्यम से बच्चों को एक एलबम बनाने का भी निर्देश दिया गया है। पाठकों को संभवत: मालूम होगा कि हुसैन द्वारा बनाए गए हिन्दू देवी-देवताओं, माता सरस्वती और भारतमाता के सभी अश्लील चित्र आज भी इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। सहज ही समझा जा सकता है कि किस मानसिकता के अन्तर्गत बच्चों को इन्टरनेट देखने की सलाह दी गई है।23
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