|
वेद मन्त्रों की शक्ति उनके स्वरों में निहित है-प्रो. सुरेश चन्द्र पाण्डेयपूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयाग”वेदों का वैशिष्ट उनके स्वरों में निहित है। गलत स्वरों के साथ उच्चारण करने से मन्त्रों के अर्थ का अनर्थ हो जाता है। मन्त्रों की शक्ति उनके निर्दिष्ट स्वरों के साथ शुद्ध उच्चारण करने में है।” उक्त उद्गार इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व संस्कृत विभागाध्यक्ष प्रो. सुरेश चन्द्र पाण्डेय ने गत 13 सितम्बर को महर्षि भरद्वाज वेद विद्यालय के वार्षिक वेद पूजन समारोह में व्यक्त किये। इस अवसर पर विश्व वेद संस्थान, दिल्ली के महामंत्री श्री चम्पतराय ने विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल की परिकल्पना के अनुरूप वेद रक्षा अभियान का विवरण प्रस्तुत किया। उल्लेखनीय है कि यह कार्यक्रम श्री अशोक सिंहल के 80 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था। श्री चम्पतराय ने बताया कि दिल्ली, कानपुर, प्रयाग, अयोध्या और काशी में विश्व हिन्दू परिषद एवं सम्बंधित संस्थाओं द्वारा वेद विद्यालय चलाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि केवल संहिता कंठस्थ कर लेना ही पर्याप्त नहीं है, इसलिए विद्यार्थियों द्वारा संहिता अध्ययन पूर्ण कर लेने के पश्चात वेदांत शिक्षा की व्यवस्था भी स्थान-स्थान पर की गई है। यह भी पांच वर्षों का पाठक्रम है। इसे पूर्ण करने के पश्चात ही वैदिक शिक्षा का पाठक्रम पूर्ण होता है। देशभर के संस्कृत विद्वानों से विचार-विमर्श कर दस वर्षीय वैदिक शिक्षा का पाठक्रम तैयार किया गया है। समारोह में स्वामी चैतन्यानन्द जी (आचार्य- चिन्मय मिशन, प्रयाग), महर्षि भरद्वाज वेद विद्यालय समिति के अध्यक्ष डा. आर.एन. मिश्र सहित अनेक वैदिक विद्वानों ने भी विचार व्यक्त किए। प्रतिनिधि30
टिप्पणियाँ