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चीन के वकीलआजकल हमारे कामरेड बंधु देश की सुरक्षा को धता बताकर एक ऐसी कम्पनी को सामरिक महत्व का काम दिलवाने के लिए सरकार पर दबाव बना रहे हैं, जिसकी गतिविधियों पर भारत की सुरक्षा व खुफिया एजंेसियां सवालिया निशान लगा चुकी हैं। उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पहले केरल में एक बंदरगाह के विकास के लिए कैडी इलेक्ट्रिक पावर कम्पनी व चीनी हार्बर इंजीनियरिंग कम्पनी ने संयुक्त रूप से बोली लगाई थी। इन कम्पनियों को गहरे पानी में अन्तरराष्ट्रीय कंटेनर आवागमन संयंत्र लगाना था। भारतीय खुफिया एजेंसियों ने चीनी कम्पनी द्वारा बोली लगाने पर सरकार को यह कहकर आगाह किया कि यह कम्पनी पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में भी सामरिक महत्व की एक परियोजना पर काम कर रही है। इस कम्पनी के कारण देश की समुद्री सीमाओं को खतरा पैदा हो सकता है। केन्द्रीय मंत्रिमण्डल की बैठक में भी खुफिया एजेंसियों की आपत्तियों पर सहमति जताई गई। इन्हीं तथ्यों के मद्देनजर केन्द्र सरकार ने चीनी कम्पनी की बोली को नामंजूर कर दिया। ज्योंहि बोली निरस्त की गई कम्युनिस्ट नेता भड़क उठे। वे उस चीनी कम्पनी के वकील की तरह बहस करने लगे। जबकि यही कामरेड देश में विदेशी कम्पनियों के पूंजीनिवेश का विरोध करते आ रहे हैं। माकपा महासचिव प्रकाश कारत ने तो यहां तक कहा है कि जब अमरीकी कंपनियां भारत व पाकिस्तान में एक साथ काम कर सकती हैं तो चीन की कम्पनियां क्यों नहीं?अपने ही गैरइस्लामी जिहादियों के कारण अपने ही देश में विस्थापित हो गए कश्मीरी हिन्दुओं को अब मुस्लिम तुष्टीकरण के कारण सरकारी सुविधाओं से भी वंचित किया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि विस्थापितों के बच्चों के लिए महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उत्तराञ्चल आदि राज्यों के व्यावसायिक शिक्षण संस्थानों में कुछ स्थान आरक्षित हैं। महाराष्ट्र की भाजपा-शिवसेना सरकार ने तो 1990 में ही ऐसी व्यवस्था की थी। बाकी राज्यों में सन् 2000 में तत्कालीन केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी के समय कुछ सीटें आरक्षित की गई थीं। पर अब पता चला है कि इन सीटों के लिए जम्मू-कश्मीर के मुस्लिम छात्रों को दाखिला दिया जा रहा है। विस्थापित का फर्जी प्रमाणपत्र प्रस्तुत कर मुस्लिम छात्र इन राज्यों के इंजीनियरिंग, मेडिकल आदि व्यावसायिक संस्थानों में प्रवेश पा रहे हैं। दु:खद बात तो यह है कि “विस्थापित प्रमाणपत्र” बनवाने में कश्मीरी हिन्दुओं के कुछ स्वयंभू नेता ही मुसलमानों का सहयोग कर रहे हैं। विश्वस्त सूत्रों का कहना है कि ये “नेता” जे.के.एल. एफ. आदि अलगाववादी संगठनों के खासमखास हैं।हिन्दी का तर्पणहिन्दी दिवस (14 सितम्बर) को केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल ने राजभाषा विभाग की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में “श्रुत लेखन” नामक एक कम्प्यूटर साफ्टवेयर लोकार्पित किया। अगले दिन इसकी खबर भी अखबारों में छपी। बताया गया है कि इस साफ्टवेयर के प्रयोग से कम्प्यूटर केवल सुनकर हिन्दी लिख सकता है। नाम भी उसी अनुरूप रखा गया है-श्रुत लेखन। यानी सुनकर लिखने वाला। इस साफ्टवेयर के बारे में और अधिक जानकारी के लिए अधिकारियों से सम्पर्क किया गया तो कोई यह भी न बता सका कि यह साफ्टवेयर है क्या और कैसे प्राप्त होगा। एक सज्जन ने “सी डैक-पुणे संपर्क करके इसे आप प्राप्त कर सकते हैं,” कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया। राजभाषा विभाग बना तो है हिन्दी भाषा के उन्नयन और प्रचार-प्रसार के लिए, लेकिन “श्रुत लेखन” को जानने के लिए राजभाषा के अधिकारियों ने जो नाच नचवाया उससे तो यही लगा कि यहां हिन्दी का उन्नयन नहीं, तर्पण किया जाता है। पहले भी एक बार राजभाषा विभाग ने “हिन्दी दिवस” के कार्यक्रमों की जानकारी अंग्रेजी में भेजी थी।39
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