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षड्यंत्री राजनीति का हथियार बना मीडियादेवेन्द्र स्वरूपक्या यह मात्र संयोग है कि जिस समय मुम्बई में भाजपा के रजत जयंती अधिवेशन में गुजरात राज्य के अभूतपूर्व विकास और गुजरात भर में स्थानीय निकायों के चुनावों में भाजपा की अप्रत्याशित विजय के आंकड़े प्रस्तुत किये जा रहे थे, उसी समय कई टी.वी. चैनल और सब अखबार गुजरात के पंचमहल जिले के लूनावाणा गांव के निकट रचे गये एक षडंत्र को सनसनीखेज ढंग से प्रसारित कर रहे थे? क्या इसे भी मात्र संयोग कहें कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा प्रस्तुत विकास के आंकड़ों की रपट मेरे पास आने वाले 14 दैनिकों में से केवल दो दैनिकों (पायनियर व इकानामिक टाइम्स 29 दिसम्बर) में दिखाई दी? टी.वी. चैनल तो इस विकास रपट पर पूरी तरह चुप्पी साधे रहे जबकि उस षडंत्र की खबर 28 और 29 दिसम्बर के सब अखबारों व टी.वी. चैनलों पर छायी रही।रजत जयन्ती अधिवेशन में भाग ले रहे 5000 प्रतिनिधियों के सामने नरेन्द्र मोदी ने पिछले छह वर्षों में गुजरात की प्रगति की जानकारी देते हुए बताया कि गुजरात ने सन् 2001 के भयंकर भूकम्प की त्रासदी से छह वर्ष में उबरने का चमत्कार कर दिखाया, जबकि पूरा विश्व उसमें 10 वर्ष का समय लगने का अनुमान लगा रहा था। गुजरात की जनता की पुनर्निर्माण की अद्भुत शक्ति को देखकर अब अफगानिस्तान और श्रीलंका जैसे देश सरकारी स्तर पर अपने यहां पुनर्वास में गुजरात की सहायता ले रहे हैं। मोदी ने बताया कि गुजरात, विशेषकर सौराष्ट्र क्षेत्र में पानी के संकट को दूर करने के लिए गुजरात सरकार ने पिछले छह वर्षों में वर्षा के पानी को जमा करने के लिए डेढ़ लाख मिट्टी के बांधों का निर्माण किया है, जबकि 1960 में गुजरात राज्य के निर्माण के बाद चालीस साल के कांग्रेसी शासन में केवल 12000 बांधों का निर्माण हुआ था। गुजरात सरकार ने साबरमती की मृतधारा को पुन: प्रवाहमान किया है और नर्मदा नदी के जल से प्राचीन सरस्वती नदी के प्रवाह को भी पुनरुज्जीवित कर दिया है। सिंचाई की इन सुविधाओं के फलस्वरूप कृषि क्षेत्र से होने वाली वार्षिक आय पहले के 9000 करोड़ रुपए से बढ़कर इस वर्ष 25000 करोड़ रुपए पहुंच गई है। उन्होंने बताया कि विकास की इन क्षमताओं के कारण गुजरात राज्य विदेश निवेश की दृष्टि से प्रथम आया है, किन्तु उन्होंने दुख प्रगट किया कि केन्द्र की यू.पी.ए. सरकार राजनीतिक कारणों से गुजरात के प्रति भेदभाव बरत रही है। अपराधों को रोकने की दृष्टि से वह गुजरात को अपराध निरोधक कानून नहीं बनाने दे रही है, जबकि उसी प्रकार का कानून बनाने की महाराष्ट्र सरकार को दो वर्ष पहले ही अनुमति दे दी गई थी। नरेन्द्र मोदी ने बताया कि हमने कानून का जो प्रारूप केन्द्र सरकार को भेजा है वह महाराष्ट्र सरकार द्वारा पारित कानून की प्रतिलिपि मात्र है उसमें कोमा, फुलस्टाप का भी अन्तर नहीं है।हिन्दू-मुस्लिम एकतागुजरात की प्रगति के इस वर्णन को नरेन्द्र मोदी की आत्मस्तुति का प्रयास कहकर नजरन्दाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि एक वर्ष पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की संस्था राजीव गांधी फाउन्डेशन ने भी अपने अध्ययन के आधार पर विकास की दृष्टि से गुजरात को प्रथम घोषित किया था। इस घोषणा से कांग्रेस में खलबली मच गयी थी और ऐसा अध्ययन प्रकाशित करने के लिए अर्थशास्त्री बिबेक देबराय को ताड़ित व लांछित भी किया गया था, किन्तु सत्य को अधिक समय तक दबाया नहीं जा सकता। विकास का फल चखने वाली गुजरात की जनता ने अपनी मनोभावना को पिछले अक्तूबर और नवम्बर मास में तीन किश्तों में सम्पन्न स्थानीय निकाय चुनावों में खुले दिल से प्रगट किया। इन सभी चुनावों में भाजपा को अभूतपूर्व जनसमर्थन मिला जबकि कांग्रेस को भारी पराजय मिली। अहमदाबाद नगर निगम की 129 सीटों पर भाजपा पिछली बार की 59 से बढ़कर 96 पर पहुंच गई, जबकि कांग्रेस 65 से घटकर 32 रह गई। सभी मुस्लिमबहुल सीटों पर भाजपा विजयी रही। मुस्लिम नेताओं ने खुलकर भाजपा को समर्थन दिया। यह नगर निगम कांग्रेस से छिन गयी। मुस्लिमबहुल गोधरा नगर पालिका में भाजपा पिछली 12 से 19 सीटों पर पहुंची तो कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली। विजयी 18 निर्दलीय मुस्लिम पार्षदों ने भाजपा को बिना शर्त समर्थन की घोषणा करके हिन्दू-मुस्लिम एकता का नया अध्याय शुरू किया। 11 दिसम्बर को घोषित पांच अन्य नगर निगमों (वडोदरा, सूरत, राजकोट, जामनगर व भावनगर) तथा चार नगर पालिकाओं (पाडरा, मेहसाना, मोरवी और ऊना) में भी भाजपा को अप्रत्याशित सफलता मिली। बेस्ट बेकरी कांड के लिए कुख्यात वडोदरा की नगर निगम की 90 सीटों में भाजपा को 77, सूरत की 102 में से 90, राजकोट (जिस पर कांग्रेस का कब्जा था) 69 में से 59, जामनगर की 51 में से 37 और भावनगर की 51 में से 39 सीटें भाजपा के खाते में आयीं। इसके पूर्व 25 अक्तूबर को घोषित चुनाव परिणामों के अनुसार गुजरात की 23 जिला पंचायतों में से भाजपा पिछली 2 से बढ़कर इस बार 16 पर काबिज हो गयी। जबकि कांग्रेस 21 से घटकर केवल 6 जिला पंचायतों तक सीमित रह गई। 210 तहसील पंचायतों में पहले कांग्रेस 188 पर और भाजपा केवल 22 पर काबिज थी। पर इस बार भाजपा 126 पर विजयी रही जबकि कांग्रेस 64 पर सिमट गई। उसी समय राज्य में 49 नगर निगमों के चुनाव परिणाम घोषित हुए, जिनमें 40 पर भाजपा का कब्जा हो गया और कांग्रेस केवल 5 नगर पालिकाओं पर काबिज रह पायी। ये चुनाव परिणाम पूरे राज्य में समान स्थिति को प्रदर्शित करते हैं। बड़ी बात है कि गुजरात की भाजपा सरकार के प्रति मुस्लिम समाज में पैदा हुए विश्वास का भी निदर्शक है। स्पष्ट ही, गुजरात में हिन्दू-मुस्लिम एकता का नया अध्याय प्रारंभ हुआ है जिसका स्वागत मीडिया और सेकुलरिस्टों को बढ़-चढ़कर करना चाहिए था, किन्तु आश्चर्य की बात है कि टेलीविजन चैनलों और समाचार पत्रों ने इन चुनाव-परिणामों को कोई महत्व नहीं दिया। अधिकांश दैनिकों ने वह खबर भी नहीं छापी, छापी तो अंदर के पृष्ठों पर एक कालम हैडिंग से छापी। यदि इन चुनावों में भाजपा हार गयी होती तो शायद पहले पन्ने पर छपती, उस पर बड़े-बड़े सम्पादकीय लिखे जाते और टेलीविजन चैनलों पर परिचर्चाएं आयोजित होतीं, किन्तु भाजपा की इस अप्रत्याशित विजय से सेकुलर खेमे और उनके पक्षधर मीडिया को सांप जैसा सूंघ गया। बहुत साफ है कि हिन्दू-मुस्लिम कटुता में निहित स्वार्थ रखने वाली यह राजनीति नहीं चाहती कि देश में हिन्दू -मुस्लिम एकता पैदा हो।नफरत की राजनीतिनफरत पर पलने वाली इस राजनीति ने 27 दिसम्बर को एक षडंत्र रचा कि गोधरा के निकट पंचमहल जिले के लूनावाणा गांव के पास पानम नदी के किनारे एक सामूहिक कब्रागाह का अचानक पता लगा है। वहां 2002 में गोधरा के नरमेध की प्रतिक्रिया में मारे गए मुसलमानों को गुप्त रूप से दफना दिया गया था। मृतकों के परिजन उनकी खोज कर रहे थे कि 27 दिसम्बर को अचानक खोदने पर वह कब्रागाह प्रगट हो गयी। 27 की रात को ही टी.वी. चैनलों पर वह सनसनीखेज दृश्य दिखने शुरू हो गए। सहारा समय और एन.डी.टी.वी. में होड़ लग गई कि इस दृश्य को पहले फिल्माने का श्रेय कौन ले? 28 को प्रात: प्रत्येक दैनिक ने बहुत सनसनीखेज सुर्खियों के साथ इस समाचार को छापा। इस कब्रागाह की खोज कैसे हुई, किसने की और वहां मिली खोपड़ियों की संख्या कितनी है, इन प्रश्नों के उत्तर में सब अखबारों की कहानी अलग अलग है। अधिकांश अखबारों ने इन कंकालों की संख्या बतायी तो दैनिक भास्कर ने शीर्षक दिया, “गोधरा के पास मिले 26 नरकंकाल, 21 शवों की पहचान हो चुकी है।” टाइम्स आफ इंडिया ने पहले पन्ने पर शीर्षक दिया “21 नरकंकालों ने बतायी गोधरा की वीभत्स कहानी।”दंगों की घटना के 4 साल बाद अचानक इस कब्रागाह की खोज कैसे हुई? इसके उत्तर में “भास्कर” (28 दिसम्बर) की कहानी पढ़िए “ये लोग (मृतकों के रिश्तेदार) हर साल की तरह इस साल भी दंगे में खो चुके अपने प्रियजनों को श्रद्धांजलि देने एकत्र हुए थे। लेकिन आज इन्होंने पूरे क्षेत्र को खोदने का निश्चय किया। इस खुदाई के नतीजे चौंकाने वाले रहे। 26 शव बरामद हुए, जिनमें से 21 की पहचान हो चुकी है।उसी दिन टाइम्स आफ इंडिया ने कहानी छापी कि गुलाम खारडी, जिसका चाचा रहीम खारडी पंढरवाड़ा दंगे में मारा गया था, ने बताया कि एक भंगी ने मुझे बताया कि वहां नरकंकाल दबे हुए हैं, इसलिए मैं मंगलवार 27 तारीख को वहां गया और मुझे खोदने पर कुछ कपड़े मिले तो मैं गांव वालों को बुलाकर लाया और तब हमने खोदा, लेकिन इंडियन एक्सप्रेस की कहानी इससे अलग है। उसके अनुसार खुदाई का यह नाटक मुम्बई की तीस्ता, जावेद (सीतलवाड) की संस्था “सिटीजेन्स फार जस्टिस एण्ड पीस” के एक कार्यकर्ता रईस खान पठान ने आयोजित किया था। 10 बजे जब खुदाई शुरू हुई तो मीडिया वहां पहले से मौजूद था। तीस्ता जावेद भी मुम्बई से पहले ही रवाना हो चुकी थी। इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार भी वहां केवल 8 नरकंकाल मिले थे। अगर यह सब सुनियोजित नहीं था तो पहले ही दिन सी.बी.आई. के चेन्नै से एक निदेशक स्तर के अधिकारी को वहां रवाना करने का समाचार 28 दिसम्बर के अखबारों को कैसे मिल गया। तीस्ता ने घोषणा कर दी कि वह एक स्थानीय महिला अमीना रसूल के साथ संयुक्त याचिका गुजरात उच्च न्यायालय में प्रस्तुत करके मांग करेगी कि इन लाशों का डी.एन.ए. टेस्ट कराया जाए, उन्हें सील कर दिया जाए। तीस्ता ने कहानियां गढ़नी शुरू कर दीं कि ये लाशें बिल्किस बानो के रिश्तेदारों की हो सकती हैं, या पंढरवाड़ा में मारे गए लोगों की। इन लाशों को छिपाकर गुपचुप ढंग से दफना दिया गया था। तुरन्त केन्द्र सरकार ने राज्य सरकार से रपट मांग ली। मानवाधिकार आयोग भी कूद पड़ा और उसने राज्य सरकार व डी.जी.पी. को दो सप्ताह के भीतर पूरी रपट देने का हुक्म दे डाला। अखबारों को मानो पहले पन्ने की खबर मिल गई।यह है असलियतपर, जब स्थानीय प्रशासन व पुलिस अधिकारियों से पूछताछ की गई तो पता चला कि इसमें गुप्त कुछ भी नहीं था। ये आठों लाशें पोस्टमार्टम के बाद, पूरी लिखित कार्रवाई करके दफनायी गयी थीं और इस तथ्य की जानकारी वहां के सभी निवासियों को पहले से थी। पंचमहल के जिलाधीश डी.एच. ब्राह्मदत्त, वडोदरा के आई.जी.पी. राकेश अस्थाना, उस क्षेत्र के एस.पी. जे. के. भट्ट और गुजरात के डी.जी.पी. ए.के. भार्गव ने अलग-अलग बताया कि पता नहीं क्यों इस सर्वज्ञात तथ्य को इतना सनसनीखेज ढंग दिया जा रहा है, वहां जो कुछ हुआ वह पोस्टमार्टम आदि की लिखित कार्रवाई के बाद हुआ। उसका पूरा रिकार्ड मौजूद है। अधिक विस्तृत और प्रामाणिक कहानी “इंडियन एक्सप्रेस” के संवाददाताओं को एच.वी. राठौड़ नामक सब इंस्पेक्टर ने बतायी। दंगों के समय राठौड़ लूनावाणा के खानपुर पुलिस स्टेशन पर नियुक्त था और अब राज्य सी.आई.डी. (अपराध विभाग) में कार्यरत है। राठौड़ ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इन सभी लाशों को सभी कानूनी कार्रवाई पूरी करके विधिवत दफनाया गया था। उसने कहा कि दंगों के कारण सभी मुसलमान गांव छोड़कर सुरक्षित स्थानों को भाग गए थे। हमें गांव में जो लाशें मिलीं उन्हें इकट्ठा करके पोस्टमार्टम कराया। वहां मुर्दाघर की सुविधा नहीं थी इसलिए हमने लाशों को लूनावाणा नगर पालिका को सौंप दिया, जिसने इस्लामी ढंग से उन्हें दफनाया, पंचनामा भी रिकार्ड किए गए। जब राठौड़ से पूछा कि अगर पोस्टमार्टम हुआ था तो उनके शरीर पर कपड़े क्यों थे, उसने बताया कि दंगों की हिंसा के कारण हम कफन नहीं जुटा पाए इसलिए हमने उनके शरीर के कपड़ों को ही दोबारा पहना दिया। दंगों के बाद शिनाख्त किए गए मृतकों के रिश्तेदारों को सूचित किया गया था, उनके बयान दर्ज किए गए थे, उनके द्वारा बताये गए दंगाइयों को गिरफ्तार भी किया गया था। यह सब लिखित रूप में मौजूद है। ऐसे में डी.एन.ए. टेस्ट का क्या अर्थ रह जाता है जब पहले से मालूम है कि मृतकों के रिश्तेदार कौन हैं?तीस्ता के भड़काने पर गुलाम खारडी की बीबी जेबुन्निसा खारडी ने थाने में जाकर पुलिस सुरक्षा की मांग की, क्योंकि लूनावाणा का सब इंस्पेक्टर एम.डी.पवार उसे धमका रहा है। सब इंस्पेक्टर पवार ने बताया कि गुलाम खारडी अवैध शराब का धंधा करता है और मैंने 2004 में नशाबंदी कानून के अंतर्गत उसका चालान किया था। उसका बदला लेने के लिए मुझे झूठमूठ फंसाया जा रहा है जबकि मैं उसके घर गया ही नहीं।उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि इस पूरे षडंत्र के पीछे तीस्ता मंडली का हाथ है। गुजरात के दंगों में तीस्ता की भूमिका सर्वविदित है। किस प्रकार उसने पोस्टर बांटा, कुतबुद्दीन अंसारी को मीडिया से छिपाने के लिए मुम्बई में नजरबंद कर रखा था और बाद में उसे प. बंगाल की कम्युनिस्ट सरकार की सुरक्षा में भेज दिया। किस प्रकार वह बेस्ट बेकरी केस में जाहिरा शेख का इस्तेमाल करती रही? चार साल में जब गुजरात के जख्म भर चुके हैं और वहां की जनता उस काले अध्याय को भूल कर एकता और विकास के रास्ते पर बढ़ रही है तब ये नफरत के व्यापारी कटुता पैदा करने में जुटे हैं। इस षडंत्र से उत्साहित कांग्रेस की अंबिका सोनी को आगामी विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत की आशा बंध गई है। पीड़ा यह है कि नफरत की इस षडन्त्री राजनीति का मीडिया भी हथियार बन रहा है।(30 दिसम्बर, 2005)38
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