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शिक्षा का “कम्युनिस्टीकरण” जारी- राकेश उपाध्यायन्यायालय नोटिस दर नोटिस भेज रहा है लेकिन वामपंथी “इतिहास-पुरुषों” ने अजीब मौन साध रखा है। या तो वे न्यायालय में इतिहास के प्रश्नों का समाधान खोजे जाने के विरुद्ध हैं अथवा उन्हें विश्वास है कि न्यायालय कोई भी निर्णय दे, उसे पलटवाना उनके बाएं हाथ का खेल है। एन.सी.ई.आर.टी. की पाठ पुस्तकों में देश के प्रमुख सम्प्रदायों के महापुरुषों के जीवन एवं अन्य ऐतिहासिक पहलुओं के साथ छेड़छाड़ के विरुद्ध पिछले दिनों कुछ संगठनों द्वारा देश के विभिन्न न्यायालयों में वाद दाखिल किए गए थे। अलवर और इन्दौर की दीवानी अदालत में जैन पंथ से जुड़े प्रतिनिधियों ने याचिका दखिल कर रामशरण शर्मा द्वारा कक्षा 11 हेतु लिखी “प्राचीन भारत” नामक पुस्तक में छपे उद्धरणों पर आपत्ति जताई है। इन उद्धरणों में महावीर स्वामी के पूर्व के सभी 23 तीर्थंकरों की ऐतिहासिकता संदिग्ध बताते हुए कहा गया है कि, “जैन धर्म की प्राचीनता सिद्ध करने के लिए इन तीर्थंकरों के सन्दर्भ में मिथक गढ़े गए।” रामशरण शर्मा ने पुस्तक के पृ. 101 पर लिखा है कि “वर्धमान महावीर ने 12 वर्ष की अपनी लंबी यात्रा में एक बार भी अपने वस्त्र नहीं बदले और कालांतर में वस्त्रों का एकदम त्याग ही कर दिया।” इस प्रकार रामशरण शर्मा द्वारा वर्धमान स्वामी महावीर एवं जैन पंथ के बारे में वर्णित तथ्यों को त्रुटिपूर्ण एवं अपमानजनक बताते हुए जैन सम्प्रदाय के प्रतिनिधियों ने इन्हें पाठक्रम से बाहर निकालने की मांग की है। इसी तरह की याचिकाएं पंजाब और दिल्ली उच्च न्यायालयों में भी दाखिल की गईं जिनमें जैन पंथ के अतिरिक्त जाट, सिख, आर्य समाजी, सनातन धर्मावलम्बियों सहित अनेक सामाजिक व शैक्षिक संगठनों के प्रतिनिधि सम्मिलित हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जारी किए गए अनेक सम्मनों के बावजूद वामपंथी इतिहासकारों, केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड, केन्द्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (एन.सी.ई.आर.टी.), केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा कोई जवाब दाखिल नहीं किया गया है। इस पर न्यायालय ने भी अब कड़ा रुख अपनाते हुए जवाब दाखिल करने की अन्तिम तारीख 16 जनवरी नियत कर दी है। न्यायालय ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि उक्त दिनांक को प्रतिवादी न्यायालय के सम्मुख उपस्थित न हुए तो निर्णय एकतरफा दे दिया जाएगा।पाठक्रम-संशोधनअमरीका में भी बाज नहीं आए वामपंथीअमरीका में पाठक्रम परिवर्तन का मुद्दा गरमाता जा रहा है। भारतीय वामपंथी इतिहासकारों की प्रेरणा से हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रो. माइकल वित्जेल ने सम्भावित संशोधनों पर आपत्ति जताई है। उल्लेखनीय है कि अमरीका के कैलीफोर्निया राज्य शिक्षा बोर्ड ने हिन्दू धर्म-संस्कृति और इतिहास के संदर्भ में पाठ पुस्तकों में छपे कुछ विवादित व आपत्तिजनक शब्दों, वाक्यों को पाठक्रम से हटाने के सन्दर्भ में एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था। पाञ्चजन्य के 18 दिसम्बर अंक का सम्पादकीय भी पाठकों को इस संदर्भ में स्मरण होगा। आर्य आक्रमण, प्राचीन भारत में महिलाओं की दशा, हिन्दू उपासना पद्धति व अन्य कई मुद्दों से जुड़े इन संशोधनों के बारे में अमरीका के वैदिक फाउण्डेशन-टेक्सास और हिन्दू एजुकेशन फाउंडेशन ने लगातार अनुसंधान कार्य किया और अनेक भ्रामक तथ्यों के विरुद्ध अकाट तर्क प्रस्तुत किए। विशेषज्ञ समिति ने इसी आधार पर पाठक्रमों में संशोधनों हेतु अपनी रपट शिक्षा बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत की। लेकिन शिक्षा बोर्ड द्वारा जैसे ही संशोधनों पर सहमति दी गई, अमरीका में कुछ विद्वानों ने आपत्तियां उठानी शुरू कर दीं। इसका नेतृत्व प्रो. माइकल वित्जेल कर रहे हैं। यद्यपि विशेषज्ञ समिति के समक्ष चर्चा के दौरान उन्होंने एक भी आधिकारिक आपत्ति दर्ज नहीं कराई। प्रो. वित्जेल के अनुसार, “संभावित संशोधन “धार्मिक-राजनीतिक” कारणों से प्रेरित हैं, अतएव विरोध जरूरी है।” संशोधनों पर बोर्ड की सहमति के विरुद्ध प्रो. वित्जेल ने एक पत्र लिखकर इसे नासमझ लोगों की कार्रवाई बताया तथा बोर्ड को चेतावनी भी दी है कि वह इसे लागू करने की गलती न करे। दूसरी तरफ वैदिक फाउण्डेशन-टेक्सास, विश्व हिन्दू परिषद- अमरीका सहित अनेक संगठनों और प्रमुख विद्वानों ने कैलीफोर्निया शिक्षा बोर्ड से आग्रह किया है कि वह पाठपुस्तकों में संशोधनों को तत्काल लागू करे। इन संगठनों व अन्य कई विद्वानों ने हिन्दू संस्कृति से जुड़ी पाठ पुस्तकों की आलोचना करते हुए कहा है कि कैलीफोर्निया शिक्षा बोर्ड ने पुस्तकों में हिन्दू धर्म व संस्कृति का अच्छा चित्रण नहीं किया है। अन्य पंथों की तुलना में हिन्दुओं के साथ दोहरे मापदण्ड अपनाए गए हैं। हिन्दू धर्म, इतिहास व सभ्यता के सन्दर्भ में पूर्वाग्रह से प्रेरित लेखन के कारण अमरीकी हिन्दू समुदाय गंभीर रूप से आहत होता आया है। चूंकि अब विशेषज्ञ समिति ने समुचित प्रक्रिया और ख्यातलब्ध विद्वानों के साथ चर्चा के आधार पर पाठ पुस्तकों में संशोधनों को अपनी सहमति दे दी है तब इसे लागू न करना स्थापित मानदण्डों की अवहेलना ही होगी। विश्व हिन्दू परिषद, अमरीका ने पाठक्रम में संशोधनों को स्थान न देने की दशा में कानूनी कार्रवाई करने की चेतावनी भी दी है।सवाल उठता है कि आखिर वामपक्ष सहित अन्य सरकारी पक्ष न्यायालय के सम्मुख आने से कतरा क्यों रहे हैं? यही नहीं, जिन प्रश्नों पर न्यायालय ने निर्देश जारी किए हैं, उसके सन्दर्भ में बिना कोई यथोचित उत्तर दिए 2006-07 सत्र के लिए किताबें लिखने का कार्य भी धड़ल्ले से जारी है। गत 7 सितम्बर को राष्ट्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद द्वारा नई पाठ्यचर्या के कारण पाठक्रम के निर्माण को इसी आधार पर त्वरित स्वीकृति भी दी गई है। यानी सरकार और वामपक्ष स्वयं ही न्यायालय की अवमानना पर उतारू हैं। एक तरफ तो वे न्यायालय के सम्मुख उपस्थित नहीं हो रहे हैं, दूसरी तरफ पाठक्रम के नवीन मसौदे के क्रियान्वयन में तेजी से जुटे हैं। यही नहीं, रामशरण शर्मा, विपिन चन्द्र, रोमिला थापर, प्रो. सतीश चन्द्र, अर्जुन देव आदि लेखकों की इस कम्पनी ने अब भारतीय पाठ पुस्तकों के अलावा अमरीका में भी सम्भावित पाठक्रम संशोधनों के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है। हां, ये बात अलग है कि उन्हें अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान की इतिहास की पाठ पुस्तकों में हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति तथा भारत के बारे में लिखे विद्वेषपूर्ण और घृणाजनित वर्णनों को पढ़ने की फुर्सत नहीं है।30
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