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हर पखवाड़े स्त्रियों का अपना स्तम्भ
तेजस्विनी
नीता गुप्ता साहस का संबल
प्रतिनिधि
नीता गुप्ता
नीता की कहानी उन स्त्रियों के लिए आशा की किरण है जिनके सामने परिस्थितियों केवल अंधेरा ही अंधेरा बिखेर देती हैं। बुलन्दशहर के एक धनाढ्य परिवार में जन्मी, पली-बढ़ी नीता को माता-पिता ने कभी कोई कमी महसूस न होने दी थी। चार भाई-बहनों में सबसे छोटी होने के कारण वह सबकी लाडली थी। स्कूली शिक्षा में नीता का मन रमता नहीं था लेकिन यदि गीत-संगीत, नृत्य, चित्रकारी, सिलाई-कढ़ाई और लजीज पकवान बनाने की बात हो तो फिर कहना ही क्या। माता-पिता को इसी बात की प्रसन्नता थी कि उनकी बेटी ने उच्च शिक्षा न सही जीवन और गृहस्थी के लिए व्यावसायिक शिक्षा में तो महारथ हासिल कर ही ली है। नीता ने बी.ए. तक की पढ़ाई पूरी की। बाद में फैशन डिजायनिंग का कोर्स भी किया। पढ़ते समय उनका सम्पर्क “संस्कार भारती” से हुआ। नीता के पिता रामनाथ गोविल बड़े व्यापारी थे, सो नीता की शादी भी धूमधाम से मेरठ के एक बड़े व्यापारी परिवार में हुई। ससुर और पति की केमिकल उद्योग में खासी पैठ थी। लेकिन शादी के कुछ ही समय बाद समय का चक्र ऐसा घूमा कि नीता के सारे सपने धराशायी हो गए। वक्त के थपेड़ों ने जहां पति के करोबार को डुबाया वहीं आर्थिक हालत बिगड़ने के साथ ही पति की मानसिक दशा भी बिगड़ गई। आलीशान कोठी भी बिक गई। पति के व्यापार को कुछ समय तक संभालने में नीता और उसके मायके वालों ने सहयोग किया किन्तु होनी के आगे किसका बस चलता है। अस्वस्थ पति और दो बेटियों के साथ नीता के जीवन में बेचारगी के आंसू ही बचे थे। कहते हैं मन में ईश्वर के प्रति आस्था और विश्वास हो तो फिर व्यक्ति सारी मुश्किलों-कठिनाइयों को हंसते हुए झेल जाता है। नीता ने परिस्थितियों से लड़ने का संकल्प लिया। केवल स्नातक होने के कारण नौकरी मिलना आसान न था। और तब उनकी अपनी अभिरुचियों ने ही उनमें आशा की नई उमंगें पैदा कीं। गीत-संगीत, कला, चित्रकारी, स्वादिष्ट व्यंजन…. आदि और नीता ने इन्हीं के आधार पर शुरू किया एक छोटा सा व्यवसाय, “लर्निंग प्वाइंट-एक प्रयास”। शुरूआत में साथ और सहयोग देने के लिए कोई नहीं आया। लोकप्रिय गायिका मालिनी अवस्थी ने जरूर हिम्मत बंधायी। पूंजी के प्रबंध के लिए नीता ने अपने गहने गिरवी रख दिए और धीरे-धीरे उनका परिश्रम परवान चढ़ने लगा। बिखरे सपनों ने नए रूपों में आकार लिया और अपने परिश्रम की कमाई से नीता ने फिर से खड़ा किया अपना आशियाना। आज वह केवल अपनी चिंता में ही मगन नहीं रहती, अपने देश, समाज और युवा पीढ़ी, विशेषकर पढ़ने-लिखने, कुछ करने का हौसला रखने वाली लड़कियों को वह सही राह दिखाने में जुटी हैं। उन्हें अपनी संस्कृति-परम्परा पर अभिमान है लेकिन उनका संदेश भी साफ है, “जीवन में कभी किसी के ऊपर निर्भर मत रहो। अपनी मंजिल स्वयं चुनो और वहां तक पहुंचने के लिए जूझो, तभी सफलता और सम्मान कदम चूमते हैं।”
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