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डान ब्राउन की पुस्तक द विंचि कोड, जिसकी दुनिया में 44 भाषाओं में 4 करोड़ से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं, पर फिल्म बनी है जो 17 मई को कैस फिल्म महोत्सव में पहली बार दिखाई जाएगी। इस पुस्तक और फिल्म में कैथोलिक समाज की गुप्त और मजहबी उद्देश्य प्राप्त करने के लिए किसी भी सीमा और किसी भी साधन का इस्तेमाल करने वाली संस्था “ओपस दाई” के काले कारनामों का वर्णन किया गया है। प्रस्तुत है उसी “ओपस दाई” के बारे में एक आलेख। सं.-डा. कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्रीदिल्ली में संसद भवन के पास ही सेक्रेड हार्ट कैथेड्रल है। पिछले कुछ सालों से दो अक्तूबर को यहां खास किस्म के श्रद्धालु एकत्रित होते हैं। ये श्रद्धालु “ओपस दाई” के अनुयायी हैं। दो अक्तूबर को “ओपस दाई” के संस्थापक स्पेन के रहने वाले संत होजेमेरिया का जन्म हुआ था। “ओपस दाई” लातीनी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है-ईश्वर का कार्य। होजेमेरिया का दावा था कि 1928 में उसे “गाड” ने प्रत्यक्ष आदेश दिया था कि सब काम छोड़कर मेरा काम करो।होजेमेरिया (होजेमेरिया एस्क्रीवा द बलागूर) पादरी थे, अत: उस समय के चलन के मुताबिक तो वे ईश्वर का ही कार्य कर रहे थे। परन्तु अब, क्योंकि “गाड” ने उन्हें सीधे-सीधे एक विशेष काम के लिए आदेश दिया था, इसलिए उन्होंने इस कार्य के लिए एक नए संगठन “ओपस दाई” का गठन किया। होजेमेरिया को “गाड” ने क्या आदेश दिए और उसे क्या कार्य करने के लिए कहा, इसका स्पष्ट खुलासा तो उन्होंने कभी नहीं किया लेकिन “ओपस दाई” के क्रियाकलापों और होजेमेरिया की लिखी पुस्तकों से (जिनमें सबसे मुख्य है “द वे”) अन्दाजा लगता है कि कैथोलिक चर्च का विरोध करने वालों को सबक सिखाना और दुनिया भर को ईश दूत ईसा मसीह के वचनों पर ईमान लाने के लिए तैयार करना, उसी आदेश का हिस्सा है।होजेमेरिया की दृष्टि में यह कार्य इतना बड़ा था कि उनके लिए साध्य ही प्रमुख हो गया। साधनों की पवित्रता गौण हो गई। यह भी एक अजीब संयोग था कि साध्य प्राप्ति के लिए साधनों की पवित्रता पर ही सर्वाधिक जोर देने वाले महात्मा गांधी का जन्म भी दो अक्तूबर को हुआ था और साध्य के लिए साधनों की पवित्रता को तुच्छ मानने वाले होजेमेरिया का जन्म भी उसी दिन हुआ। “ओपस दाई” के होजेमेरिया ने ईश्वर का जो कार्य 1928 में स्पेन में अपने हाथों में लिया, वह कार्य वेटिकन में पोप और दुनियाभर में फैली चर्च सेना पहले से ही कर रही थी। इसीलिए शुरू में लोगों को लगा कि वेटिकन और “ओपस दाई” में जल्दी ही झगड़ा हो जाएगा, क्योंकि दोनों ही ईसा मसीह का कार्य करने का दावा कर रहे थे।वैसे भी “ओपस दाई” इस बात को लेकर नाराज दिख रहा था कि वेटिकन में बैठे पोप ईसा मसीह के वचनों के प्रति उपेक्षा दिखा रहे हैं। उदाहरण के लिए, “ओपस दाई” की दृष्टि में नारी पाप का मूल है और उसकी स्थिति समाज में दोयम दर्जें की होनी चाहिए, परन्तु वेटिकन नारी और पुरुष की समानता की बातें कर रहा है। लेकिन अंतत: वेटिकन और “ओपस दाई”, में झगड़ा होने की बजाय एक मौन समझौता हो गया कि “ओपस दाई” वेटिकन की गिरती प्रतिष्ठा को संभालने में सहायता करेगा और वेटिकन “ओपस दाई” को आध्यात्मिकता का पर्दा उपलब्ध करवाएगा।शायद इसीलिए पोप जान पाल द्वितीय ने होजेमेरिया की मृत्यु के 26 साल बाद उन्हें संत की उपाधि प्रधान कर दी। ईसा मसीह के जिन भक्तों ने इसका विरोध किया उनको या तो अनसुना कर दिया या फिर धमकाया गया। होजेमेरिया को लेकर प्रचारित किए गए चमत्कारों का परीक्षण भी “ओपस दाई” के डाक्टरों से ही करवा लिया गया। एक महिला ने कहा कि उसे कैंसर था। स्वप्न में होजेमेरिया ने आशीर्वाद दिया और उसका कैंसर ठीक हो गया। इस घटना को वेटिकन द्वारा होजेमेरिया को संत बनाने के लिए प्रयोग किया गया। जबकि कैंसर से ठीक होने का दावा करने वाली महिला की एक सहेली चिल्लाती रही कि मुझे नहीं लगता इसे कभी कैंसर था। परन्तु पोप होजेमेरिया को संत घोषित करने के लिए इतने उत्सुक थे कि उन्होंने इस चिल्लाहट की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। स्मरण रहे कि “ओपस दाई” का मुख्यालय वेटिकन के पास इटली की राजधानी रोम में ही स्थित है। “ओपस दाई” की कार्यप्रणाली और उद्देश्य दोनों शुरू से ही संदिग्ध रहे हैं। जैसा कि पहले ही कहा गया कि अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए “ओपस दाई” को किसी प्रकार के साधन अपनाने में रत्ती भर भी संकोच नहीं है। “ओपस दाई” विभिन्न देशों के महत्वपूर्ण लोगों के दायरे में ही घुसपैठ करता है और उनको अपने कब्जे में लेने की कोशिश करता है।”ओपस दाई” का मानना है कि यदि शिक्षा, वित्त और राजनीति के क्षेत्र के महत्वपूर्ण संस्थाओं पर कब्जा कर लिया जाए तो वह देश अपने आप ही “ओपस दाई” के कब्जे में आ जाएगा और उसे चुपचाप ईसा के चरणों में अर्पित किया जा सकता है। स्पेन के मंत्रिमंडल में “ओपस दाई” के अनेक सदस्य प्रवेश कर गए थे और वहां के तानाशाह फ्रेको को सबसे ज्यादा विश्वास “ओपस दाई” पर ही था। “ओपस दाई” से संबंधित मंत्रियों ने शिक्षा विभाग और वित्त विभाग पर अपना शिकंजा कसा। करोड़ों रुपए अवैध ढंग से “ओपस दाई” द्वारा संचालित बेनामी खातों में चले गए और इसी प्रकार शिक्षा मंत्रालय के वरद्हस्त से “ओपस दाई” ने अनेक महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों का संचालन संभाल लिया।वित्तीय संस्थानों में “ओपस दाई” की घुसपैठ के कारण बाद में बैंकों के अनेक घपले सामने आए। 1956 में “ओपस दाई” के एक सदस्य विलारे ने एक कम्पनी बनाई जिसका संक्षिप्त नाम मेटेसा था। इस कम्पनी ने बैंकों से करोड़ों रुपए अवैध तरीके से निकलवाये और वे “ओपस दाई” के खातों में चले गए। इस घोटाले के कारण बैंक वालों को तो अपनी जान से हाथ धोना पड़ा लेकिन विलारे को शाही क्षमा मिली और उसका कोई बाल बांका नहीं कर सका। स्पेन के बैंकों में ऐसे घोटालों के अनेक किस्से हैं जो प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष “ओपस दाई” से जुड़े हुए हैं।”ओपस दाई” के विरोधी या उसकी निर्धारित लीक से हटकर कार्य करने वाले लोग संदिग्ध अवस्था में मृत पाए गए, ऐसे भी अनेक किस्से रोबर्ट हचसिन ने अपनी किताब “देयर किंगडम कम” में वर्णित किए हैं। ऐसा भी माना जाता है कि अपने विरोधियों को “ओपस दाई” के लोग धीमा जहर देकर इस प्रकार मारते हैं कि बाद में किसी को शंका भी न हो। अनेक बार तो बाद में फाइलों से दस्तावेज भी गायब हो जाते हैं। लातीनी अमरीका में “ओपस दाई” अपने काम का दायरा भी फैलाया और वहां “ओपस दाई” के विरोधियों की मृत्यु के किस्से भी साथ ही फैले। विरोधी की संदिग्ध मृत्यु और वित्तीय संस्थानों में अरबों के घपले, ये दोनों कहानियां “ओपस दाई” के पीछे छाया की तरह चलती हैं। “ओपस दाई” के संस्थापक होजेमेरिया का एक कथन संगठन में प्राय: बार-बार दोहराया जाता है, “ईसा मसीह से धन के लिए प्रार्थना करो क्योंकि हम धनाभाव के कारण संकट में हैं।””ओपस दाई” के लोगों ने इसके लिए वित्तीय संस्थाओं से धोखाधड़ी शुरू की और बाद में जब उनके कुछ लोग इस धोखाधड़ी में नंगे हो गए तब उन्होंने इन लोगों को पूरी निष्ठा से ईसा मसीह के ही पास भेज दिया। जैसा कि ऊपर संकेत किया गया है, “ओपस दाई” की कार्यप्रणाली विभिन्न देशों की राजनीति में महत्वपूर्ण राजनेताओं को ही अपने कब्जे में ले रही है। इसके लिए वे ऐसी युवतियों का, जो “ओपस दाई” की सदस्या हैं, इन राजनेताओं से विवाह करवाने की रणनीति का प्रयोग भी करते हैं। राबर्ट हचसन ने अपने ग्रंथ में कुछ ऐसे जिक्र भी किए हैं। इटली (जहां संगठन का मुख्यालय है) से लेकर न्यूयार्क (जहां संगठन ने अभी हाल ही में अपना मुख्यालय स्थापित किया है।) तक “ओपस दाई” की यह रणनीति फैली हुई है। विश्व के लगभग 80 देशों में “ओपस दाई” ने अपनी जड़ें फैला ली हैं, जिनमें भारत भी एक है। “ओपस दाई” का भारत में जड़ें फैलाना दो दृष्टियों से चौंकाने वाला है। प्रथम तो “ओपस दाई” साम्यवाद और इस्लाम से लड़ने का दावा करता है और ऐसे देशों की शासन व्यवस्था को उखाड़ फैंकने का प्रयास करता है, जहां या तो इस्लामी शासन है या साम्यवादी शासन।भारत में ये दोनों ही नहीं हैं। परन्तु भारत में लोग चर्च की शरण में नहीं जाते। वे ईश्वर की अन्य-अन्य रूपों में उपासना करते हैं। परन्तु “ओपस दाई” को तो उनके गाड का स्पष्ट आदेश है कि सभी को चर्च की शरण में लेकर आओ। “ओपस दाई” इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारत में अपनी जड़ें फैला रहा है। “ओपस दाई” का कहना है कि उसने भारत में अपनी गतिविधियां 1993 में प्रारम्भ की थी। पहला कार्यालय मुम्बई के बांद्रा में खोला और बाद में दिल्ली में भी कार्यालय स्थापित किया। लेकिन “ओपस दाई” अपनी बेबसाइट पर अपनी गतिविधियों को छिपाता ज्यादा और दिखाता कम है। यहां तक कि उसने अपना पता भी “पोस्ट बाक्स” के माध्यम से ही लिखा है। बहुत लोगों को शायद इस बात का ज्ञान नहीं है कि जब “ओपस दाई” के संस्थापक होजेमेरिया को वेटिकन संत की उपाधि से विभूषित कर रहा था तो वहां पहुंचने वालों में कोलकाता की मदर टेरेसा भी थीं। मदर टेरेसा वहां क्या कर रही थीं, यह अभी तक रहस्य बना हुआ है। “ओपस दाई” चाहे यह दावा करे कि उसने भारत में अपनी गतिविधियां 1993 से शुरू की हैं लेकिन जानकारों का कहना है कि इस संगठन ने पांचवें दशक में ही भारत को अपना निशाना बना लिया था।फादर रायमुंडो पाणिक्कर ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यद्यपि शुरुआती दौर में वह यूरोपीय देशों में “ओपस दाई” के लिए काम करता था लेकिन बाद में वह भारत में आ गया। ऊपर से तो यही कहा गया कि उसका “ओपस दाई” से विवाद हो गया, लेकिन यह विवाद कितना सच्चा था और कितना झूठा, इसके बारे में कुछ निश्चित नहीं कहा जा सकता। भारत में आकर फादर पाणिक्कर यह सिद्ध करने में जुट गया कि इस देश में ईसाई मत चर्च के प्रारम्भिक चरणों में ही आ गया था और वह वेदों में भी ईसा के वचनों के संकेत स्थापित कर उसकी मनमानी व्याख्या करने में जुट गया। स्वामी देवानंद का ऐसा मानना है कि फादर रायमुंडो पाण्णिक्कर जैसे लोग वेदों में ईसा मसीह और भारत में यीशु की तलाश कर रहे हैं। स्वामी देवानंद के अनुसार भारत में “ओपस दाई” का काम करने का तरीका चतुराई भरा है।इस देश में “ओपस दाई” के “अड्डे” इन संस्थाओं में तलाशे जा सकते हैं- विद्वत सभाएं, इतिहास सम्मेलन, हिन्दू-ईसाई संवाद गोष्ठियां, कुछ एनजीओ, विदेशी सहायता समितियां, पश्चिमी देशों के कुछ दूतावास और अंग्रेजी मीडिया। भारत में “ओपस दाई” कैथोलिक चर्च के पक्ष में जनमत तैयार करने में संलग्न है और अंग्रेजी मीडिया में भी उसकी जबरदस्त घुसपैठ है। स्वामी देवानंद तो इससे भी आगे जाकर कहते हैं कि “ओपस दाई” सीधे-सीधे गाली देने वालों को भी अपने किसी काम का नहीं समझता। उदाहरण के लिए तीखी भाषा का प्रयोग करने वाले स्तंभकार उसके लिए उपयोगी नहीं हैं, संयत भाषा में लिखने वाले स्तंभकार उनकी सूची में हो भी सकते हैं। भारत में श्री एम.जे. अलबर्ट “ओपस दाई” के क्षेत्रीय वाइकार हैं, लेकिन इसके बावजूद वे अपना पता पोस्ट आफिस बाक्स 4009, नई दिल्ली-1100017 देते हैं। इससे यह अंदाजा तो लग सकता है कि दिल्ली में “ओपस दाई” का कार्यालय कहीं साकेत में होगा, लेकिन वह कहां है, इसे “ओपस दाई” छिपाता है।चर्च के भीतर भी “ओपस दाई” के बढ़ते प्रभाव को लेकर कुछ लोग दु:खी हैं। उनके अनुसार दुनिया भर में ज्यादातर बिशप “ओपस दाई” के सदस्य ही बनाए जा रहे हैं और वेटिकन के महत्वपूर्ण पद भी “ओपस दाई” के हिस्से ही आ रहे हैं। पोप तो सबसे ज्यादा विश्वास “ओपस दाई” पर ही करते थे और उसी की सलाह पर चलते थे। इसीलिए पोप 1999 में भारत आए थे तो उन्होंने स्पष्ट ही कहा था कि 21वीं शताब्दी में चर्च भारत में अपनी फसल काटने के लिए तैयार है। पोप ने यह घोषणा क्या भारत में “ओपस दाई” की शक्ति के भरोसे ही की थी? इटली मूल की सोनिया गांधी क्या भारत में “ओपस दाई” की गतिविधियों की जांच करवायेंगी?33
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