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बेशर्म बूटा

by
May 2, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 May 2006 00:00:00

कुछ गलत नहीं किया बूटा सिंह ने- शान्ति भूषण,वरिष्ठ अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालयबिहार विधानसभा भंग करने की राज्यपाल बूटा सिंह की सिफारिश को मैं बिल्कुल सही मानता हूं। इस आधार पर मैं सर्वोच्च न्यायालय के इस विचार को सिरे से खारिज करता हूं कि बूटा सिंह ने बिहार के सन्दर्भ में गलत रपट देकर केन्द्र सरकार को गुमराह किया था। यही बात इस विचार को व्यक्त करने वाली पांच सदस्यीय खण्डपीठ के दो न्यायाधीशों न्यायमूर्ति के.जी. बालकृष्णन और न्यायमूर्ति अरिजीत पसायत ने भी कही है। इस खण्डपीठ के अन्य तीन सदस्यों- मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति वाई.के. सभरवाल, न्यायमूर्ति वी.एन. अग्रवाल एवं न्यायमूर्ति अशोक भान के विचारों से मैं सहमत नहीं हूं। राज्यपाल बूटा सिंह की रपट बिल्कुल सही थी कि लोजपा के विधायकों को तोड़कर सरकार बनाने की कोशिश हो रही थी। इस पर केन्द्र सरकार का फैसला भी उचित था। लोग कहते हैं कि राज्यपाल की रपट में कोई ठोस तथ्य नहीं था तो मैं कहना चाहूंगा कि सरकार कोई न्यायालय नहीं है, जो सबूत के आधार पर निर्णय ले। जहां तक सबूत का सवाल है, उस समय पूरा भारत देख रहा था कि लोजपा के एक-एक विधायक को किस तरह तोड़ा जा रहा था। चुनाव हुए तीन महीने हो चुके थे। कोई भी दल या गठबंधन बहुमत का दावा नहीं कर पा रहा था। इस हालत में विधायकों की तोड़फोड़ को रोकने के लिए राज्यपाल को हस्तक्षेप करना पड़ा था। अब सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद भी राज्यपाल को हटाना जरूरी नहीं था क्योंकि न्यायालय ने राज्यपाल को हटाने की बात कही नहीं थी और यह अधिकार भी उसे नहीं है। कोई भी राज्यपाल राष्ट्रपति की अनुशंसा पर काम करता है, उसे जब तक राष्ट्रपति इस्तीफा देने को न कहें, तब तक वह अपने पद पर बना रह सकता है।बिहार विधानसभा भंग हुई और उसके बाद वहां चुनाव हुए। इसमें करोड़ों रुपए खर्च हुए। इन सबके लिए सर्वोच्च न्यायालय दोषी है, क्योंकि पिछले दिनों जब विधानसभा भंग करने को सर्वोच्च न्यायालय ने ही गलत ठहराया था तो उसी समय क्यों नहीं विधानसभा पुन: बहाल की गई? ऐसा करने पर जनता का करोड़ों रुपए बचता और इसका एक अच्छा सन्देश भी पूरे देश में जाता।(वार्ताधारित)13

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