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प्रधानमंत्री भी पद छोड़ें
– विष्णु नारायण, वरिष्ठ अधिवक्ता, सर्वोच्च न्यायालय
डा. मनमोहन सिंह
बूटा सिंह को तो उसी समय अपना पद छोड़ देना चाहिए था जब सर्वोच्च न्यायालय ने अंतरिम निर्णय में बिहार विधानसभा को भंग करने के निर्णय को असंवैधानिक ठहराया था। किन्तु देश का दुर्भाग्य है कि वे अंत तक कहते रहे कि वे इस्तीफा नहीं देंगे। यह उनका हठ था, कोई संवैधानिक तर्क नहीं। केन्द्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल भी बेतुका तर्क दे रहे हैं कि यह खण्डित फैसला है। फैसला, फैसला होता है, उस पर खण्डित और अखण्डित जैसी टिप्पणी नहीं की जा सकती है। खण्डित फैसला कहकर वे मंत्रिमण्डल के असंवैधानिक निर्णय को संवैधानिक ठहराने का प्रयास कर रहे हैं। होना तो यह चाहिए था कि फैसला आते ही केन्द्र सरकार बूटा सिंह को इस्तीफा देने को कहती, किन्तु उसने ऐसा नहीं किया। इसका साफ अर्थ है कि उस असंवैधानिक निर्णय के पीछे केन्द्र सरकार ही थी और राज्यपाल बूटा सिंह मात्र एक मोहरा थे। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने इस फैसले में स्पष्ट कहा है कि राज्यपाल बूटा सिंह की रपट की जांच करके ही केन्द्र सरकार को कोई निर्णय लेना चाहिए था। यह एक तरह से केन्द्र सरकार को न्यायालय का निर्देश है। इस फैसले से एक बात यह भी साफ हो गई है कि सत्तारूढ़ केन्द्र सरकार असंवैधानिक कार्य करने पर तुली हुई है और अपने बचाव के लिए बेकार के तर्कों का सहारा ले रही है। ऐसा लग रहा है कि वर्तमान केन्द्र सरकार न्यायालय की अवमानना करके देश में आपातकाल जैसी स्थिति ला रही है।
मेरे विचार से इस असंवैधानिक निर्णय के लिए जितने बूटा सिंह जिम्मेदार थे, उनसे अधिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह थे। उनकी लापरवाही के कारण यह निर्णय हुआ। उन्हीं के कारण बिहार जैसे गरीब प्रदेश को एक साल के भीतर दो बार चुनाव खर्च का बोझा उठाना पड़ा। इसलिए राज्यपाल के बाद अब प्रधानमंत्री को पद छोड़ देना चाहिए। पर यह उनके विवेक पर निर्भर करता है कि वे पद छोड़ें या न छोड़ें, क्योंकि ऐसा कोई नियम नहीं है जिसके तहत न्यायालय उन्हें पद छोड़ने के लिए मजबूर करे।
(वार्ताधारित)
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