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संसद में एन.सी.ई.आर.टी. की पुस्तकों को लेकर उबाल

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Mar 9, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Mar 2006 00:00:00

विपक्ष के दबाव में सरकार संशोधन पर सहमतएन.सी.ई.आर.टी. की पुस्तकें पिछले दिनों राज्यसभा में बहस का मुद्दा बनीं। गत 18 अगस्त को शून्यकाल में भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सदस्य श्री रविशंकर प्रसाद ने पुस्तकों में प्रकाशित असंसदीय, गाली-गलौज युक्त और जातिवादी शब्दों पर कड़ी आपत्ति प्रकट करते हुए कहा कि ऐसी पुस्तकें हमारे बच्चों को गलत संस्कार देंगी। उन्होंने इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में जाट समुदाय को लुटेरा बताने और देशभक्त क्रान्तिकारियों को आतंकवादी बताने पर भी तीखा रोष प्रकट किया। श्री रविशंकर के स्वर में स्वर मिलाते हुए भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों ने एन.सी.ई.आर.टी. की पुस्तकों को सदन पटल पर रखने की मांग भी की। इस मुद्दे पर समाजवादी पार्टी, माकपा और आरएसपी के सदस्यों ने भी आश्चर्यजनक ढंग से भाजपा का समर्थन किया। समाजवादी पार्टी के नेता श्री अमर सिंह ने इसे संवेदनशील मुद्दा बताते हुए कहा कि इतिहास की पुस्तकों के साथ छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। माकपा नेता श्री सीता राम येचुरी ने कहा कि इस मामले की जांच होनी चाहिए और दोषियों को दण्डित किया जाना चाहिए। आर.एस.पी.नेता श्री अबनी राय ने कहा कि ऐसी पुस्तकों पर प्रतिबंध लगना चाहिए। दूसरी ओर सरकार का पक्ष रखते हुए संसदीय कार्य मंत्री श्री सुरेश पचौरी ने कहा कि यह देश की भावी पीढ़ी से जुड़ा गंभीर मुद्दा है। सरकार सदन की भावनाओं का ध्यान रखते हुए इसकी जांच करवाएगी। कांग्रेस नेता श्री सत्यव्रत चतुर्वेदी ने कहा कि अगर यह साबित हो जाता है कि ये पुस्तकें एन.सी.ई.आर.टी. की ओर से पाठ्यक्रम के लिए मंजूर की गई हैं तो यह शर्म की बात होगी।दूसरी तरफ एन.सी.ई.आर.टी की हिन्दी पाठ्यपुस्तकों के मख्य सलाहकार पुरुषोत्तम अग्रवाल ने 19 अगस्त को एक बयान जारी कर कहा कि चूंकि प्रकाशित सामग्री प्रतिष्ठित लेखकों की रचनाएं हैं, अतएव इन्हें बदल पाना संभव नहीं है। पुरुषोत्तम अग्रवाल के स्वर में स्वर मिलाते हुए 20 अगस्त को “हिन्दुत्व विरोधी” साहित्यकारों की टोली ने भी राज्यसभा के सभापति और लोकसभा अध्यक्ष को पत्र लिखा। इन साहित्यकारों में सर्वश्री अशोक वाजपेयी, नामवर सिंह, राजेन्द्र यादव, कमलेश्वर, कृष्णा सोबती, कुंवर नारायण, नंदकिशोर आचार्य, कमला प्रसाद आदि शामिल हैं। इन्होंने पुस्तकों पर उठाई गई आपत्तियों को निरर्थक बताया है। पत्र में अवतार सिंह पाश को नक्सलवादी कहे जाने पर भी कड़ी आपत्ति की गई है। यद्यपि इस सन्दर्भ में ये कथित विद्वान साहित्यकार एन.सी.ई.आर.टी. की पुस्तक में स्वयं द्वारा लिखे गए अवतार सिंह पाश के जीवन-परिचय को देखना भूल गए हैं, जिसमें अवतार सिंह को नक्सलवादी आंदोलन से जुड़ा बताया गया है। (कक्षा 11 की हिन्दी की पुस्तक-आरोह, पृ. 173)इस बीच 25 अगस्त को राज्यसभा में डा. मुरली मनोहर जोशी, श्रीमती सुषमा स्वराज, श्री रविशंकर सहित अनेक विपक्षी सदस्यों ने पाठ्यपुस्तकों पर पुन: सवाल खड़े किए। मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने अपने बयान में एन.सी.ई.आर.टी. की पुस्तकों पर पुनर्विचार करने की बात कही है। यद्यपि उन्होंने एन.सी.ई.आर.टी.के लेखकों के बचाव में बहुत से तर्क दिए किन्तु विपक्ष के तीखे प्रत्युत्तर का वह सामना नहीं कर सके। भाजपा सदस्यों के साथ कांग्रेस, राजद, समाजवादी पार्टी व माकपा के अनेक सदस्यों ने भी पुस्तकों पर पुनर्विचार की मांग की।35

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