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संसद को भी छला
दिल्ली विश्वविद्यालय (मुक्त शिक्षा परिसर) द्वारा प्रकाशित इतिहास की पुस्तक के अनुसार
0 शिवाजी धोखेबाजी का पिता और शैतान का पुत्र
0 बाबर से पराजित होकर मायूस राणा सांगा ने कर ली थी आत्महत्या
-राकेश उपाध्याय
इग्नू के पाठ्यक्रम की होगी जांच
केन्द्र सरकार ने “इग्नू” की पुस्तकों में हिन्दू देवी-देवताओं के बारे में आपत्तिजनक भाषा के इस्तेमाल की जांच के लिए एक विशेषज्ञ समिति के गठन का फैसला लिया है। गत 22 अगस्त को लोकसभा में मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री मोहम्मद अली अशरफ फातमी ने यह जानकारी दी है। श्री फातमी के अनुसार, विशेषज्ञ समिति सम्पूर्ण पाठ्यक्रम की समीक्षा करने के साथ इसमें आवश्यक संशोधनों के सन्दर्भ में सुझाव भी देगी।
इसे “अर्जुन” के तरकस के तीरों की “कारामात” कहें या माक्र्सवादियों की देश के इतिहास, साहित्य एवं अकादमिक क्षेत्रों में की गई गहरी घुसपैठ, एक के बाद एक अकादमिक संस्थान, विश्वविद्यालय खुले रूप में “हिन्दुत्व-विरोध” की शैक्षिक कार्यशाला बन गए हैं। इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) और दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित इतिहास की पाठ्यपुस्तकें तो यही सिद्ध करती हैं।
यद्यपि मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने गत 19 जुलाई को संसद में बताया था कि “इग्नू” की आपत्तिजनक पाठ्य सामग्री को विश्वविद्यालय ने पहले ही हटाने के निर्देश दे दिए हैं लेकिन उन्होंने दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई पर चुप्पी साध ली। दूसरी ओर आपत्तिजनक अंश न केवल अभी भी पाठ्यपुस्तकों में मौजूद हैं, वरन् विश्वविद्यालय द्वारा “कुछ वाक्यों” को हटाने के निर्णय के बावजूद बिना किसी संशोधन के इन पाठ्यपुस्तकों को पूरे देश में इग्नू के अध्ययन केन्द्रों पर भेजा भी गया है। इधर
दिल्ली विश्वविद्यालय के मुक्त शिक्षा परिसर द्वारा प्रकाशित मध्यकालीन इतिहास की पुस्तक में लेखक जहूर सिद्दीकी ने अपनी पुस्तक “मध्यकालीन भारत” में “अकादमिक मजहब” का पूरा निर्वहन किया है। श्री सिद्दीकी ने इसमें शिवाजी को एक “विद्रोही” की संज्ञा देते हुए लिखा है, “प्रसिद्ध इतिहासकार खफी खां भी उसे (शिवाजी को) धोखेबाजी का पिता और शैतान के पुत्र के रूप में वर्णित करते हैं।” (पृष्ठ-102) एक अन्य स्थान पर जहूर सिद्दीकी ने लिखा है, “राणा सांगा (बाबर के साथ हुए खानवा के युद्ध में) जख्मी होकर रणभूमि छोड़ने पर मजबूर हुआ और जहर खाने के कारण जनवरी 1528 में मायूसी की हालत में उसने इस संसार को त्याग दिया।” और तो और, पुस्तक के चतुर्थ खण्ड में एक विशेष अनुच्छेद जोड़ा गया है, जो “बाबरी मस्जिद” से सम्बंधित है। यद्यपि न्यायालय में मुकदमा चल रहा है। बाबरी नामक ढांचा “मस्जिद” था या कुछ और, अभी इस पर न्यायालय ने भी कोई निर्णय नहीं दिया है लेकिन जहूर मियां ने अपना निर्णय दे दिया है। अपनी पुस्तक में “बाबरी ढांचा” का अनुच्छेद जोड़कर उन्होंने सचमुच इतिहास के कालचक्र को उलट दिया है। पुस्तक की प्रस्तावना में माक्र्सवाद की जमकर प्रशंसा की गई है।
इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) की पाठ्यपुस्तकों का मामला भी गत जुलाई महीने के अन्तिम सप्ताह में अनेक राष्ट्रीय अखबारों की सुर्खियों में था। इन पुस्तकों में आपत्तिजनक लेखन की ओर सर्वप्रथम दिल्ली के नजफगढ़ इलाके के गांव सुरहेड़ा के निवासी श्री अनिल वत्स भारती का ध्यान गया। श्री अनिल वत्स इग्नू में एम.ए. इतिहास विषय के पंजीकृत छात्र हैं। इतिहास की पाठ्य सामग्री में “भारत में धार्मिक चिंतन और आस्था” नामक खण्ड (कोड नं.-एम.एच.आई.-07) के पृष्ठों को पढ़ते समय उनका माथा ठनका। इन पृष्ठों पर हिन्दू देवी-देवताओं, भगवान शंकर, भगवान राम, भगवान कृष्ण, गणेश जी, मां दुर्गा एवं काली मां सहित भारतीय संस्कृति का निकृष्ट शब्दों में खुले रूप में निरादर किया गया है। उन्होंने एक शिकायती पत्र “इग्नू” के कुलपति को भेजा। 10 अप्रैल, 2006 को श्री अनिल वत्स के पत्र को संज्ञान में लेते हुए सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अन्तर्गत इतिहास संकाय के प्राध्यापकों की बैठक विषय समन्वयक प्रो. ए.आर.खान के कक्ष में बुलाई गई। बैठक में सर्वसम्मति से कुछ आपत्तिजनक वाक्यों को अगले संस्करण से हटाने का निर्णय लिया गया किन्तु जिस “यूनिट” में ये अंश हैं, उसे यथावत् रखने की बात कही गई है। अब जबकि पूरी पुस्तक ही आपत्तिजनक वाक्यों से भरी पड़ी है तो कुछ वाक्य हटाने का अर्थ क्या है? दूसरी ओर, 18 जुलाई को चैनल 7 ने आपत्तिजनक अंशों का प्रसारण कर सम्पूर्ण मामले में राजनीतिक हलचल पैदा कर दी।
मीडिया में मामला उछलता देख प्रो. ए.आर. खान, प्रो. प्रदीप साहनी एवं डा. सलिल मिश्रा ने 18 जुलाई की रात 11 बजे “इग्नू” के मैदान गढ़ी परिसर, नई दिल्ली स्थित एफ ब्लाक, जहां इतिहास की पाठ्यपुस्तकों की मूल पाण्डुलिपियां रखी थीं, में सुरक्षाकर्मियों के मना करने के बावजूद मुख्य द्वार का ताला तोड़कर प्रवेश किया। एफ ब्लाक में ही इनके कार्यालय भी हैं। लगभग डेढ़ घंटे इन तीनों ने एक साथ बैठकर वहां क्या किया, इसका पता बाद के घटनाक्रम से चलता है।
सूत्रों के अनुसार, तीनों अध्यापकों द्वारा रात को ताला तोड़कर एफ ब्लाक में घुसने का कारण यह था कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा इस सन्दर्भ में तत्काल विवरण मांगा गया था। सो रातों-रात प्रकाशित सामग्री की कुछ प्रतियों से आपत्तिजनक अंश निकाल कर मंत्रालय को “प्रमाण” और दिनांक 10 अप्रैल की बैठक का विवरण भेज दिया गया कि आपत्तिजनक अंश हटाए जा चुके हैं। 19 जुलाई को “इग्नू” के प्रवक्ता ने एक विज्ञप्ति जारी कर खेद प्रकट करते हुए कहा कि अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद करते समय यह त्रुटियां हो गई हैं। आपत्तिजनक अंश वापस लिए जा रहे हैं। यही बात 19 जुलाई को संसद में अर्जुन सिंह ने भी दोहराई। किन्तु सच यह नहीं है। अनुवाद बिल्कुल सही है। अंग्रेजी की जो पुस्तकों बाजार में हैं, वे भी यही बताती हैं जो हिन्दी की पाठ्य पुस्तकों में कहा गया है। दूसरे, बिना किसी संशोधन के जून मास के अंत में और जुलाई में भी आपत्तिजनक अंशों के साथ पुस्तकें विद्यार्थियों को भेजी गई हैं। पाठ्य सामग्री की हिन्दी अनुवाद की मूल प्रति भी गायब होने की खबर है। इग्नू की 10 अप्रैल, 2006 की बैठक में यही प्रस्ताव पारित हुआ था कि कुछ आपत्तिजनक वाक्यों को “अगले संस्करण” में हटाया जाएगा। अब जबकि अगला संस्करण बाजार में आया नहीं, कब आएगा, इसकी कोई घोषणा नहीं और आपत्तिजनक संस्करण अभी भी छात्र पढ़ने को मजबूर हैं। तो फिर संसद में अर्जुन सिंह की घोषणा सिर्फ छलावे के अतिरिक्त और क्या थी?
एक ओर जहां इन पुस्तकों में हिन्दू धर्म और देवी देवताओं का अपमानजनक उल्लेख किया गया है वहीं भारत में इस्लाम, मोहम्मद साहब तथा खलीफाओं को खूब महिमा मंडित किया गया है। हिन्दू धर्म, देवी-देवताओं तथा इस्लाम धर्म, इसके पैगम्बर और खलीफाओं के बारे में वर्णन ने साफ कर दिया है कि इस पाठ्यपुस्तक को लिखने के पीछे मंशा क्या है?
दूसरी ओर “इग्नू” की कार्रवाई से असंतुष्ट होकर शिकायतकर्ता श्री अनिल वत्स भारती और कई अन्य बुद्धिजीवियों ने विगत 18 जुलाई को दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर इग्नू के कुलपति, पाठ्यक्रम के समन्वयक व लेखक तथा अन्य दोषी लोगों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
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