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श्रीगुरुजी के जीवन से जुड़ा एक प्रेरणादायी प्रसंग

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Mar 9, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Mar 2006 00:00:00

जो कुछ नहीं मांगता, उसे बहुत कुछ प्राप्त होता है

निम्नलिखित कथा सार स्वामी भास्करानंद द्वारा लिखित “लाइफ इन इंडियन मोनेस्ट्रीज” (प्रकाशक-विवेक प्रेस, अमरीका, 2004, पृ. 16-19) से लिया गया है। इस अंश में स्वामी भास्करानंद श्रीगुरुजी के संन्यासी जीवन का एक ऐसा प्रेरक प्रसंग बता रहे हैं जो अभी तक बहुत कम लोगों को पता था। -सं.

मैंने यह कथा स्वामी निर्मयानंद (1911-1984), रामकृष्ण मठ के एक वरिष्ठ संन्यासी, से सुनी थी। वे श्री रामकृष्ण परमहंस के एक महान संत शिष्य स्वामी अखंडानंद के शिष्य थे। संन्यासी जीवन से पूर्व स्वामी निर्मयानंद का नाम था बिभूति। जिस वक्त की यह कथा है, वे अपने गुरु के साथ बंगाल स्थित सारगाछी आश्रम में एक नवदीक्षित संन्यासी के रूप में रह रहे थे।

1930 के दशक के आरम्भ की बात है, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर नाम के एक कनिष्ठ व्याख्याता पढ़ाया करते थे। तीन साल तक विश्वविद्यालय में पढ़ाने के बाद वे इस्तीफा देकर नागपुर आ गए। यहां उन्होंने कानून की पढ़ाई की और वकील बन गए। नागपुर में वे रामकृष्ण मठ की नागपुर शाखा के अध्यक्ष स्वामी भास्करेश्वरानंद के संपर्क में आए। उनसे उन्हें पता चला कि श्री रामकृष्ण परमहंस के एक शिष्य स्वामी अखंडानंद उस समय बंगाल में सारगाछी आश्रम में रह रहे थे। लगभग उसी दौरान गोलवलकर में तीव्र आध्यात्मिक लालसा पैदा हुई और एक गुरु की आवश्यकता महसूस हुई। अत: वे स्वामी जी से आध्यात्मिक दीक्षा ग्रहण करने सारगाछी के लिए रवाना हो गए। दीक्षा के बाद गोलवलकर कुछ समय के लिए ब्राह्मचारी के रूप में अपने गुरु की सेवा के लिए वहीं रहे। वे सदा छाया की तरह अपने गुरु के पीछे रहते और सेवा के लिए एकदम तैयार रहते थे।

एक बार, देर रात की बात है, बिभूति ने सुना कि स्वामी अखंडानंद किसी से बहुत जोर-जोर से बातें कर रहे थे। बिभूति को आश्चर्य हुआ कि आखिर स्वामी जी रात के इस पहर में इतना ऊंचा कैसे बोल रहे थे। कौतूहलवश, वे स्वामी जी के कक्ष के दरवाजे तक आए, वहां एक अकल्पनीय दृश्य दिखा। दरवाजा खुला था और भीतर केरोसीन की लालटेन कक्ष में प्रकाश कर रही थी। उन्होंने देखा कि स्वामी जी अपने बिस्तर पर बैठे हुए थे और गोलवलकर जमीन पर हाथ जोड़े स्वामी जी की ओर मुंह करके बैठे थे।

मालूम हुआ कि गोलवलकर की विनती के जवाब में स्वामी अखंडानंद उन्हें अपना आशीर्वाद दे रहे थे। बिभूति ने स्वामी जी को गोलवलकर से यह कहते हुए सुना: “तुम्हें ब्राह्मज्ञान प्राप्त होगा।” कुछ दिनों बाद, अपने गुरु की आज्ञा लेकर गोलवलकर आश्रम से चले गए। जीवन में आगे चलकर वे भारत में एक सुप्रसिद्ध आदर्शवादी युवा संगठन के नेता के रूप में सुविख्यात हुए। यह घटना देखकर बिभूति का हृदय दुखी हो उठा, क्योंकि स्वामी अखंडानंद ने उसको कभी भी गोलवलकर जैसा आशीर्वाद नहीं दिया था।

समय बीतता गया और उसका दुख गहन होता गया। तब एक दिन स्वामी अखंडानंद ने बिभूति से कहा, “मुझे लघुशंकालय जाना है। कृपया एक पात्र में पानी भर लाओ ताकि लघुशंकालय से आकर मैं उससे अपने पांव धो लूं।” लघुशंकालय आश्रम के निवास कक्षों से अलग दूसरे भवन में था। बिभूति ने आदेश के अनुसार कार्य किया। वह पानी का पात्र लेकर अपने गुरु के पीछे चलने लगा। स्वामी अखंडानंद लघुशंकालय पहुंचे, पर भीतर नहीं गए। वे मुड़े और बिभूति से बोले, “बिभूति वे लोग जो किसी चीज की प्राप्ति के लिए साधना करते हैं, वह उन्हें प्राप्त होती है, मगर जो किसी भी चीज की मांग नहीं करते उन्हें कहीं अधिक की प्राप्ति होती है।” ऐसा कहकर स्वामी जी अपने कमरे की ओर लौट चले।

बिभूति समझ गया कि उसके गुरु को बिना उसके कुछ कहे ही पूरी बात पता चल गई थी। वह यह भी समझ गया था कि आध्यात्मिक जीवन में आशीर्वाद मांगने में भी स्वार्थ ही था। वे जो नितांत निस्वार्थी होते हैं और किसी भी चीज की कामना नहीं करते, वही आध्यात्मिक जीवन के उच्चतम प्रतिफल प्राप्त करते हैं।

(रामकृष्ण मिशन की केन्द्रीय पत्रिका वेदान्त केसरी के मार्च, 2006 के अंक से उद्धृत)

तलपट

अब चन्दामामा को भी खरीदेगा वाल्ट डिस्नी

भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय बाल पत्रिका चंदामामा को अमरीकी मीडिया समूह वाल्ट डिस्नी ने खरीदने का फैसला किया है। 20 करोड़ रुपए में तय हुए इस सौदे के बाद भारतीय आदर्शों एवं संस्कारों की शिक्षा देने वाली एकमात्र बाल पत्रिका भी पाश्चात्य विचारों व पात्रों वाली पत्रिका बनकर रह जाएगी। चंदामामा पत्रिका पिछले 60 वर्षों से विक्रम बेताल, पुराणों के प्रेरक प्रसंगों तथा लोक कथाओं के माध्यम से बच्चों में नैतिकता, सच्चाई, प्रेम, त्याग जैसे संस्कार जगाती रही है। चंपक जैसी अन्य बाल पत्रिकाओं में भले ही मिकी, शान, जम्बो जैसे पात्र दिख जाएं, पर चंदामामा में अब भी दयालु राजा, महाराजा, ऋषियों, गांव वालों और पर्व-त्योहारों की कहानियां होती हैं। आने वाले दिनों में “चंदामामा” यदि मिकी माउस कार्टून, डिस्नी वाल्ट की आने वाली फिल्म और ब्रिटनी स्पेयर्स, स्पाइस गर्ल की तस्वीरों और पाश्चात्य विचारों से भरी पत्रिका दिखे तो आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए।

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