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सम्पादकीय

by
Mar 9, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 Mar 2006 00:00:00

“वन्दे मातरम्” पराधीन राष्ट्र का सबल रणघोष बन गया। यह राष्ट्र की आत्मा की वाणी या रवीन्द्र नाथ के शब्दों में स्वदेशी आत्मा की अभिव्यक्ति माना गया।

-श्री अरविन्द (बंगाली, 27 जून 1909)

बोलो वन्दे मातरम्

राष्ट्रद्रोहियों के वक्ष पर निरंतर प्रहार करते हुए जिस गीत ने स्वतंत्रता के मार्ग को प्रशस्त किया, जिस गीत को गाते-गाते क्रांतिकारी फांसी के फंदे को फूलों की सेज के समान चूमकर लटक गए, जिस गीत ने भारतीय राष्ट्रीयता को पुन: प्राणवंत किया, जिस गीत ने भारत की शस्य श्यामला धरती को वज्र समान स्वर दिया, उस वन्दे मातरम् का कोटि-कोटि कंठों से पुन: निनाद हो और पुन: भारतीय राष्ट्रीयता का प्राणघोष दिग्-दिगन्त में गूंजे, आज ऐसा ही समय आ पहुंचा है। वन्दे मातरम् पर प्रहार करने वाले न भारत के हैं, न भारतीयता के। ये वही तत्व हैं जिन्होंने मातृभूमि के विभाजन के लिए आवाज उठाई थी और उनकी इस आवाज के साथ जुड़ा था वन्दे मातरम् का विरोध। स्वतंत्रता से पहले मुस्लिम लीग तथा भारत विरोधी मुस्लिम राजनीति का एक प्रमुख हथियार था वन्दे मातरम् का विरोध। यह विरोध केवल एक राष्ट्र गीत का नहीं था, यह विरोध न ही उन प्रतीकों और उपमानों को लेकर था जिसका बहाना बनाकर वे विषवमन करते थे। यह विरोध भारत तत्व का था, भारत का था। आश्चर्य की बात है कि खंडित आजादी मिलने के बाद 60वें साल में भी ऐसे विषपायी भारत की काया में मौजूद हैं और जब उनको मौका लगता है वे सर उठाकर मातृभूमि के विरुद्ध बात करने का दु:साहस दिखाते हैं।

यह सरकार भारतीय राष्ट्रीयता के विरुद्ध सबसे बड़ा राजकीय उपकरण बनती जा रही है। विशेषकर अर्जुन सिंह जैसे मंत्री ऐसा हर कदम उठाने में संतोष अनुभव करते हैं जिस कदम से राष्ट्रवाद पर प्रहार होता हो। वे सांध्यकालीन झोंकों के समान अल्पकालिक रहेंगे और इनका राज भी। इसमें कोई संदेह नहीं। लेकिन इस अल्पकालिक राज में भी वे जितनी क्षति कर जाएंगे वह बहुत अधिक होगी।

हो सकता है नियति की यही इच्छा हो। लेकिन इनका हर प्रहार और दुर्भावना से भरा प्रत्येक कदम देश में एक ऐसा ज्वार पैदा करेगा जो इस तमाम कलुष और वैमनस्य के कृत्यों को निर्मूल कर जाएगा। अभी प्रतीक्षा और करनी होगी ताकि भारत का देशभक्त समाज आहत होकर इन पर पलट वार कर सके।

यह संतोष का विषय है कि सेकुलर तालिबानी अर्जुन सिंहों और उनके सहयोगी जिहादियों की संख्या बहुत कम है। अनेक ऐसे मुस्लिम नेता और सामान्य नागरिक वन्दे मातरम् के घोष को गुंजाते हुए खड़े हैं जो वास्तव में एक बड़े समाज का प्रतिनिधित्व करते प्रतीत होते हैं। यह मुस्लिम समाज अपनी देशभक्ति और राष्ट्रीयता की भावना को दलगत भेदभाव से परे होकर तीव्रता से गुंजाए तो देश का वातावरण ही बदल जाएगा। विडम्बना यह है कि मुट्ठी भर मुल्ला और जिहादी तत्व अपनी आवाज मुखर करते हुए सेकुलर मीडिया का सहारा लेकर ऐसा आभास दिलाते हैं मानो वे ही समस्त मुस्लिम समाज का प्रतिनिधित्व कर रहे हों। यह झूठ है। वे केवल उन मुट्ठी भर अराष्ट्रीय तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं जिनका भारत और भारतीयता के फलक पर कोई स्थान नहीं हो सकता।

आवश्यकता इस बात की है कि वन्दे मातरम् के विरोध के इस वातावरण में प्रत्येक नागरिक जगह-जगह वन्दे मातरम् का स्वर गुंजाएं। अपने घरों, कार्यालयों में वन्दे मातरम् अंकित करें। अपने मित्रों को अभिवादन स्वरूप वन्दे मातरम् कहें। विभिन्न अन्त:क्षेत्रों से वन्दे मातरम् के गीत और उसकी धुन उतारकर लाखों की संख्या में दुनियाभर में अपने मित्रों को भेजें। और एक बार फिर दिखा दें कि भारत का प्राणघोष दिग्- दिगन्त में गूंजता है और किसी के दबाए दबता नहीं है।

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