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सम्पादकीय

by
Jan 1, 2006, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 Jan 2006 00:00:00

हम हमेशा अपनी कमजोरी को अपनी शक्ति बताने की कोशिश करते हैं, अपनी भावुकता को प्रेम कहते हैं, अपनी कायरता को धैर्य।- विवेकानन्द (विवेकानन्द साहित्य, भाग 10, पृ. 220)आरक्षण का हथियारअनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के प्रति जो भेदभाव किया गया, उसके परिमार्जन के लिए ही आरक्षण व्यवस्था का प्रावधान किया गया था। आरक्षण कमजोर लोगों को सहारा देने की व्यवस्था है। शक्तिशाली लोग लड़कर अपना हक लिया करते हैं। हिन्दुओं की तथाकथित ऊंची कही जाने वाली जातियों के अहंकार को तोड़ने का जहां तक प्रश्न है, हम तो यहां तक साथ देने के लिए तैयार होंगे कि मन्दिरों में अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के पुजारियों को विशेष स्थान मिलना चाहिए। लेकिन अगर आरक्षण हिन्दुओं को ही तोड़ने का हथियार बना दिया जाए तो क्या करें, कहां जाएं? आज हिन्दू, हिन्दू के नाते शक्तिशाली और एकजुट नहीं हैं, इसलिए आरक्षण का सकारात्मक हिन्दू उपकरण हिन्दुओं के विरुद्ध ही हमले का हथियार बना दिया गया है। अब निजी शिक्षण संस्थानों को भी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए आरक्षण का प्रावधान करना अनिवार्य होगा। केन्द्र सरकार ने संविधान संशोधन कर इस नए विधेयक को मंजूरी दे दी है। गत 21 दिसम्बर को लोकसभा और 22 दिसम्बर को राज्यसभा ने व्यापक बहस के बाद इस नए विधेयक को पारित कर दिया। हालांकि भारतीय जनता पार्टी सहित कुछ अन्य दलों ने अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को इसमें शामिल न करने पर आपत्ति जतायी, संशोधन का प्रस्ताव किया, पर अन्तत: इस विधेयक के समर्थन में मतदान किया।पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने निजी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण देने सम्बंधी केन्द्र सरकार के अध्यादेश को निरस्त कर दिया था। इस पर संसद में चर्चा हुई, फिर सर्वदलीय बैठक हुई, जिसमें यह निर्णय लिया गया कि इस संबंध में एक संविधान संशोधन विधेयक लाया जाए। केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने संविधान के अनुच्छेद 15 में संशोधन का प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जिसके अनुसार यह विधेयक संविधान (104वां संशोधन) अधिनियम, 2005 के नाम से जाना जाएगा। संविधान के अनुच्छेद 15 में उपबंध 4 के बाद यह 5वां उपबंध जोड़ा जाएगा।इस विधेयक को प्रस्तुत करने का कारण बताते हुए कहा गया कि उच्च एवं व्यावसायिक शिक्षा में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अन्य पिछड़े वर्गों की स्थिति बहुत चिन्ताजनक थी। केवल सरकारी एवं अद्र्धसरकारी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण से उनकी स्थिति में अपेक्षित बदलाव नहीं आ सकता था। अत: देशभर में अनुदान प्राप्त एवं गैर अनुदान प्राप्त निजी उच्च शिक्षण संस्थानों में भी इन वर्गों को आरक्षण दिया जाएगा। इससे सामाजिक असमानता को दूर कर सामाजिक न्याय स्थापित करने में मदद मिलेगी। इन वर्गों के छात्रों को उच्च शिक्षा में अच्छे अवसर प्राप्त होंगे। पर संविधान के अनुच्छेद 30(1) का हवाला देते हुए कहा गया है कि अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों पर यह नियम लागू नहीं होगा।हालांकि उच्च शिक्षा के अनुदान प्राप्त अथवा गैर अनुदान प्राप्त निजी शिक्षा संस्थानों में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्गों को आरक्षण दिए जाने का सभी दल समर्थन कर रहे थे। पर भाजपा तथा कुछ अन्य दलों ने अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को इससे बाहर रखने पर आपत्ति जतायी और संशोधन का प्रस्ताव किया। पर संशोधन स्वीकार नहीं हुआ, अंतत: सदन में उपस्थित सभी 379 सदस्यों ने मतदान में इस विधेयक के पक्ष में ही मत दिया। दरअसल कोई भी दल इस विधयेक का विरोध कर स्वयं को “दलित विरोधी” कहलाना नहीं पसंद करता। पर इस विधेयक की सबसे बड़ी खामी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को शामिल नहीं किया जाना ही है। इसका अर्थ यह होगा कि दिल्ली के जानकी देवी महाविद्यालय में तो इन वर्गों को आरक्षण मिलेगा पर सेंट स्टीफन, सेंट मेरी या जामिया मिलिया में नहीं। और केरल जैसे प्रदेश में, जहां ईसाई और मुस्लिम शिक्षण संस्थान बड़ी संख्या में हैं, अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्गो को इस आरक्षण व्यवस्था से कोई लाभ नहीं मिलेगा। संसद में ही नहीं, संसद के बाहर भी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने इस आरक्षण प्रावधान से अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को अलग रखने पर आपत्ति जतायी थी। 21 दिसम्बर को टाइम्स आफ इंडिया में “ओपन डोर्स आफ एजूकेशन टू आल” शीर्षक से इसके राष्ट्रीय सचिव डी. राजा ने भी लिखा कि आरक्षण नीति से अनुदान प्राप्त या गैर अनुदान प्राप्त अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को छूट नहीं दी जानी चाहिए। इसके बावजूद संसद में सभी दलों ने इस विधेयक के समर्थन में मतदान किया। वजह भाजपा के ही एक वरिष्ठ नेता ने कुछ यूं बतायी, “हम चाहते थे कि अल्पसंख्यकों में जो पिछड़े हैं उन्हें भी आरक्षण का लाभ मिले, पर बात सिरे नहीं चढ़ी। वैसे भी हमें मुस्लिमों और ईसाइयों के वोट कहां मिलते हैं? फिर हम ही विरोध करके बाकी सभी दलितों, पिछड़ों का कोपभाजन क्यों बनते? बाकी दल हमें दलित और पिछड़ा विरोधी के रूप में प्रचारित करते।”5

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