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संसद का प्रस्ताव अपनी जगह है, पर दोस्ती की राह में कुछ समझौते तो करने पड़ते हैं- सैफुद्दीन सोजराज्यसभा सांसद (कांग्रेस)डल झीलपाकिस्तान से संबंध सुधारने के लिए कश्मीर समस्या पर केन्द्र सरकार जो रुख अपना रही है उससे लग रहा है जिसे हम अमरीका की नीति-दिशानिर्देशों के अनुसार काम कर रहे हैं?मुझे नहीं लगता कि हम अमरीका के दिशानिर्देश के तहत चल रहे हैं। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने कहा था कि कश्मीर मामले पर सकारात्मक तरीके से काम करेंगे। उसी अनुसार काम हो रहा है। डा. सिंह और पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने तय किया था कि इस गंभीर मसले पर बातचीत करते रहेंगे। इस मसले का एक महीने या छह महीने में हल हो जाएगा, यह मुमकिन नहीं है। लेकिन, जैसा आपने देखा, बड़े कदम उठाए गए हैं- श्रीनगर से मुजफ्फराबाद का रास्ता खुल गया। भूकंप के समय में भी हमारी सरकार ने खुले दिल का सबूत दिया, 5 जगह से उस ओर के कश्मीर की तरफ रास्ते खोल दिए गए। अमृतसर से लाहौर की बस शुरू हुई। मुनाबाओ पर बात चल रही है। विश्वास बढ़ाने के कई कदम उठाए गए हैं ताकि बातचीत से समाधान हो। हुर्रियत से बात चल रही है।कश्मीर पर संसद का प्रस्ताव है जिसमें कहा गया है कि पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर को भी हासिल करना है। क्या हम संसद के उस प्रस्ताव को सर्वोपरि रखकर आगे बढ़ रहे हैं?संसद के प्रस्ताव के अनुसार चलना हमारी प्रतिबद्धता है, कानूनी हक है, वह हमारी प्रतिज्ञा है। लेकिन जब दोस्ती की राहें खुलती हैं तो उसमें दाएं-बाएं तराशते हुए रास्ता निकालना पड़ता है। कौमों की जिन्दगी में यही तो होता है। प्रस्ताव अपनी जगह है पर हमारी सरकार का दोस्ती का रास्ता बंद नहीं है। मौका आने पर सरकार जो फैसला लेगी, उसे सारी कौम मानेगी।मुफ्ती मोहम्मद ने मुख्यमंत्री रहते हुए जो कदम उठाए, उससे आतंकवादियों के हौसले बढ़े। आपकी पार्टी उन्हें समर्थन दे रही थी। उनके कदमों को आप जायज ठहराते हैं?यह बात तो आप वजीरे-आजम से पूछिए। हम तो वहां छोटी-मोटी भूमिका रखते हैं। जिन लोगों का दावा है कि मुफ्ती साहब के कदमों से आतंकवाद बढ़ा, तो उनके पास दलील भी होगी।…समर्पण कर चुके आतंकवादियों को तीन-तीन हजार रुपए हर महीने दिए गए जबकि पढ़े लिखे नौजवान बेकार बैठे हैं?किसी लिहाज से यह नीति गलत है। लेकिन मैं कहूंगा कि मसले पर मंथन नहीं हो रहा है, इसमें बहुत सोचने की जरूरत है। कभी लगता है इन बातों में जाने का किसी के पास समय नहीं है। मैंने अभी संसद में बयान दिया है कि जम्मू-कश्मीर में बेराजगारी दूर करने के लिए कोई तरीका होना चाहिए। कश्मीर वादी में ही 2.5 लाख लोग बेरोजगार हैं।राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के “सेल्फ रूल” के सुझाव का नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस भी समर्थन करती दिखती हैं।जनरल मुशर्रफ ने “सेल्फ रूल” की जो बात की, नेशनल कांफ्रेंस उसी को दूसरे नाम, स्वायत्तता, से उठाती रही है। आज जो ये सारी चीजें आ रही हैं, उन पर विचार होगा। कांग्रेस ने इसे कहां समर्थन दिया है। बात अभी उस स्तर तक पहुंची ही नहीं है। लेकिन विचार को एकदम से ननकारते हुए उसकी तह में जाना चाहिए। पाकिस्तान, जम्मू-कश्मीर के दूसरे नेताओं और हुर्रियत से बात हो रही है। इन विचारों पर गौर होगा।प्रदेश के नए मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने अभी कहा कि शेख अब्दुल्ला के (स्वायत्तता के) सपने को पूरा करने का समय आ गया है। इसका क्या मतलब है?मुझे नहीं पता कि उन्होंने क्या कहा है, मैं देखूंगा। जब तक कश्मीर भारत में है, तब तक किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए। हिन्दुस्थान के संविधान के भीतर स्वायत्तता में कोई दिक्कत नहीं है, उस पर गौर करेंगे। लोगों की राय जानेंगे। इस पर मंथन का समय आ रहा है।कुल मिलाकर ऐसा मंजर क्यों बनता दिखता है कि हम कश्मीर बुश-परवेज को सौंपने जा रहे हैं?ऐसा नहीं हो सकता। भारत एक संप्रभु राष्ट्र है। लेकिन इस वक्त दुनिया की भूराजनीतिक स्थिति देखते हुए हमारी विवशता है कि एक तरफ अमरीका से दौस्ती निभाएं तो दूसरी तरफ रूसी फेडरेशन और चीन से दोस्ती करें। नीति ऐसी नहीं होनी चाहिए कि एक को दोस्त बनाएं, दूसरे को दुश्मन।लेकिन कश्मीर द्विपक्षीय मामला है, इसमें अमरीका की दखल कैसे स्वीकारी जा सकती है?अमरीका दखल नहीं दे रहा है। न ही डा. मनमोहन सिंह सरकार इसे मानेगी।10
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