|
-माधव कौशिक
फिर बजी घंटी
मोइबल फोन की
अब हथेली में
सभी संवेदनाएं धंस रही हैं
शक्तियां बाजार की
अपना शिकंजा कस रही हैं
अब जरूरत ही नहीं
वाचालता को मौन की
वर्जनाओं की चट्टानें
रेत बन कर ढह रही हैं
और एस एम एस के जरिए
भावनाएं बह रही हैं
जिंदगी पर्याय बन कर
रह गई रिंग टोन की
आदमी बौना हुआ
पर हो गए टॉवर बड़े
दूसरों के पांव पर
जैसे जमूरे हों खड़े
अब नहीं मिलती यहां
छाया घने सागौन की।
NEWS
टिप्पणियाँ