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आचार्य चाणक्य की राजनीति का आदर्शआचार्य चाणक्यआई.एम.डी.टी. कानून को निरस्त करने संबंधी सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय प्रत्येक भारतीय को पढ़ना चाहिए। इसमें विद्वान न्यायाधीशों ने राष्ट्रीय सुरक्षा के सन्दर्भ में कौटिल्य के अर्थशास्त्र को उद्धृत करते हुए देश और प्रजा की रक्षा के लिए एवं गद्दारी और विद्रोह को रोकने के लिए भी शासक के धर्म का स्मरण कराया है। सर्वोच्च न्यायालय ने आचार्य चाणक्य का अपने निर्णय में स्मरण करते हुए कहा है, “Kautilya in his masterly work “The Arthashastra” has said that a king had two responsibilities to his state, one internal and one external, for which he needed an army. One of the main responsibilities was Raksha or protection of the state from external aggression. The defence of the realm, a constant preoccupation for the king, consisted not only of the physical defence of the kingdom but also the prevention of treachery, revolts and rebellion. The physical defensive measures were the frontier posts to prevent the entry of undesirable aliens and forts in various parts of the country. (Arthashastra by Kautilya-translated by Shri L.N. Rangarajan, I.F.S.)अर्थात, राज्य के प्रति राजा के दो उत्तरदायित्व हैं। एक आन्तरिक और दूसरा बाह्र। इस दायित्व के निर्वहन के लिए राजा को सैन्य शक्ति रखनी पड़ती है। बाह्र आक्रमणों से देश को सुरक्षित रखना राजा का दायित्व है और केवल यही नहीं वरन् देशद्रोही गतिविधियों, विद्रोह और सशस्त्र बगावत से राज्य को सुरक्षित रखना भी राजा की जिम्मेदारी है। (आचार्य चाणक्य ने) देश के विभिन्न हिस्सों में अवांछित विदेशी लोगों और उनके गढ़ों की रोकथाम के लिए सीमान्त चौकियों की स्थापना करना भी इन्हीं उपायों में सम्मिलित किया था।” इस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय सुरक्षा के सन्दर्भ में आचार्य चाणक्य का उद्धरण रखकर भारतीय संसद और तमाम राजनीतिज्ञों को स्पष्ट सन्देश दिया है कि उन्हें अपने दायित्व के निर्वहन के लिए अब कटिबद्ध हो जाना चाहिए।NEWS
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