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सागर तट पर रेत में दबा था1200 साल पुराना मन्दिरपुरातत्वविदों ने कहा- 12 सौ वर्ष पूर्व यह मंदिर बहुत भव्य था1200 वर्ष पुराने सुब्राह्मण्य मंदिर के भग्नावशेषभारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने गत मार्च-अप्रैल में मामल्लापुरम (चेन्नै) के पास समुद्र तट पर पल्लव कालखण्ड (आठवीं शती ई.) में निर्मित सुब्राह्मण्य मन्दिर के अवशेषों को खोज निकाला है। खुदाई में प्राप्त प्राचीन सुब्राह्मण्य मन्दिर के अवशेषों ने एक नई बहस छेड़ दी है कि क्या ये अवशेष मामल्लापुरम के सागर तट पर पल्लव कालखण्ड में निर्मित किए गए सात पैगोडा में से एक के हैं या फिर इसका अस्तित्व इनसे अलग है।1200 वर्ष पुराने इस मन्दिर की खुदाई में पुरातत्वविदों को दो ऐसे ग्रेनाइट के स्तंभ मिले हैं जिनमें से एक पर पल्लव राजा दन्तीवर्मन (ई. सन् 813) का नाम अंकित है तो दूसरे स्तंभ पर पल्लव राजा नन्दीवर्मन तृतीय (ई. सन् 858) का नाम खुदा हुआ है। दोनों नाम तमिल भाषा में लिखे हुए हैं। पुरातत्व सर्वेक्षकों को खुदाई में प्राचीन ईंटें, एक तांबे का सिक्का, जो चोल वंश से संबंधित है, टूटे पात्र आदि चीजें प्राप्त हुई हैं। मंदिर के नींव प्रस्तर भी मिले हैं जिनसे पता चलता है कि मन्दिर अत्यंत भव्य रहा होगा। पुरातत्वविदों के अनुसार, “मंदिर की नींव में मिट्टी, ईंट के टुकड़ों और पत्थरों का प्रयोग किया गया था। समुद्र के किनारे बलुआई सतह पर सुदृढ़ नींव के निर्माण की यह तकनीक प्रयोग में लाई गई थी। नींव में इस्तेमाल की गईं ईंटें स्पष्टत: पल्लव काल की हैं।चेन्नै पुरातत्व विभाग के सहायक पुरातत्वविद् जी. थिरुमूर्ति के अनुसार, “यह तमिलनाडु के प्राचीन सुब्राह्मण्य मन्दिरों में से एक हो सकता है।” खुदाई में जो शिलालेख उत्कीर्णित स्तम्भ मिले हैं, वह तीन विभिन्न राजवंशों पल्लव, राष्ट्रकूट और चोल का उल्लेख करते हैं। उनके अनुसार, दन्तीवर्मन (813 ई.सदी) का उल्लेख करते हुए एक स्तम्भ पर एक शांडिल्य गोत्र के ब्राह्मण कंवभत्तर की पत्नी बसंतनाद का विवरण मिला है जो कि तिरुवल्लुर के पास मणयैयूर की रहने वाली थी। इसमें यह भी बताया गया है कि इस महिला ने 16 कजांछू (स्वर्ण गेंदें) मन्दिर को दान की थीं। दूसरे स्तंभ पर भी इसी प्रकार से राजा नन्दीवर्मन (858 ई.सदी) का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि मामल्लापुरम के रहने वाले किररपिरियन ने 10 कजांछू मंदिर को दान की थीं।- प्रतिनिधिNEWS
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