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सर्वोच्च न्यायालय ने कांची कामकोटि पीठ के पूज्य शंकराचार्य जी से सम्बन्धित मुकदमे को पांडिचेरी न्यायालय में स्थानांतरित किया और कहा -“तमिलनाडु में न्याय की उम्मीद नहीं”मुसलमानों का त्योहार बकरीद, 21 जनवरी, 2005, छुट्टी का दिन…. सभी सरकारी संस्थान बंद। लेकिन कांचीपुरम जिला न्यायालय के न्यायिक दंडाधिकारी (प्रथम) का न्यायालय खुला है। एक मामले में आरोप-पत्र दाखिल करने के लिए तमिलनाडु पुलिस उतावली है।बकरीद के दिन यह नाटक तमिलनाडु पुलिस द्वारा इसलिए किया गया कि यह मामला कांची कामकोटि पीठ के पूज्य शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती से सम्बन्धित था। बकरीद के दिन ही आरोप-पत्र दाखिल करने के पीछे जयललिता सरकार की अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की मंशा स्पष्ट थी। इसलिए भी कि कुछ महीनों बाद ही तमिलनाडु विधानसभा के चुनाव होने हैं।शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी द्वारा अपने मामले को तमिलनाडु से बाहर किसी न्यायालय में स्थानांतरित किए जाने के लिए दायर याचिका की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ऐसा कैसे संभव हुआ कि सभी न्यायालय बंद थे और सिर्फ इस मामले की सुनवाई के लिए एक न्यायालय खुला था। इसका मतलब है कि किसी ने न्यायालय को ऐसा करने के लिए जरूर कहा।उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा कि राज्य सरकार इस मामले में आरोपियों को सजा दिलवाने के लिए किसी भी सीमा को लांघ सकती है। ऐसे में राज्य के न्यायालय में बचाव पक्ष को न्याय मिलना संभव नहीं है। न्यायालय ने मामले को पांडिचेरी के न्यायालय में स्थानांतरित कर दिया। स्थानांतरण का फैसला सुनाते वक्त न्यायालय ने टिप्पणी की कि मामले की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल के पुलिस अधीक्षक व निरीक्षक द्वारा सरकारी गवाह रवि सुब्राह्मण्यम पर शंकराचार्य जी के वकील को भी मामले में उलझाने के लिए दबाव डाला गया। इससे लगता है कि इस मामले में सरकार की नीयत साफ नहीं है। अब शंकराचार्य जी के वकीलों को अपनी प्रतिष्ठा को बचाने की ज्यादा चिंता है। ऐसे में अभियोजन पक्ष के गवाहों खासकर पुलिस अधिकारियों से सच उगलवाने के लिए जिरह कौन करेगा। सुनवाई के दौरान शंकराचार्य जी के वकील श्री नरीमन ने न्यायालय को बताया कि जिस भी पत्रकार या वकील ने अभी तक शंकराचार्य जी की वकालत की, पुलिस ने उसे किसी न किसी झूठे मामले में उलझा कर तंग किया। हालांकि न्यायालय में लोक अभियोजक ने कहा कि मामले वापस ले लिए जाएंगे लेकिन अभी तक ऐसा नहीं किया गया। इस पर न्यायालय ने कहा कि यह संविधान की धारा-19 का उल्लंघन है।इससे पूर्व तमिलनाडु पुलिस ने दंड प्रक्रिया संहिता-102 के तहत मठ के सभी बैंक खातों को सील कर दिया था। इससे एक ओर जहां मठ के कर्मियों को परेशानी हुई, वहीं मठ में पूजा-पाठ करने वाले लोगों में भय का माहौल पैदा हुआ। न्यायालय की टिप्पणी थी कि इस मामले में सरकार की गतिविधियों से पारंपरिक पूजा-पाठ करने के पवित्र कार्य में भी व्यवधान पैदा हुआ है।हालांकि इस मामले में जयललिता सरकार की भूमिका प्रारंभ से ही संदेहास्पद रही है। शंकराचार्य द्वारा पुलिस हिरासत के दौरान अपराध कबूलने की बात का झूठा प्रचार करना भी सरकारी षड्ंत्र का ही एक हिस्सा था। न्यायालय भी पेश किए गए इस साक्ष्य से संतुष्ट नहीं है। न्यायालय के आदेश से स्पष्ट हो गया है कि बकरीद के अवसर पर शंकराचार्य जी के खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल करने की घटना जयललिता द्वारा मुस्लिम वोट बैंक को तुष्ट करने का ही एक घिनौना षडंत्र था।प्रतिनिधिNEWS
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