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विकलांगता को कूची से पछाड़ा1995 की एक मातमी सांझ। मोटर वाइंडिंग का काम कर जिंदगी व्यतीत करने वाले बसंत अपना काम खत्म करके घर लौट रहे थे कि एक ट्रक ने उन्हें अपनी चपेट में ले लिया। रीढ़ की हड्डी टूट गई। चिकित्सकों ने 24 घंटे की उम्र आंकी। पर ईश्वर को कुछ और ही मंजूर था। इलाज जारी रहा। बसंत ने इस दौरान साल भर बिस्तर पर ही बिताया। उठना-बैठना तो दूर नित्य क्रियाओं के लिए भी वे दूसरों पर आश्रित हो गए। कठिन घड़ी में संघर्ष जारी रहा। जीवन की हलचल पलंग तक सिमट गई। समय काटने के लिए उन्होंने पेंसिल पकड़कर लकीरें खींचनी शुरू कीं। उस समय उन्हें शायद यह आभास नहीं था कि समय काटने के लिए उठाया गया यह कदम उनके लिए पंख साबित होगा।बसंत कहते हैं, “पहले मैं सिर्फ चलता था अब तो उड़ने की ताकत है मुझमें”। कैनवस और कूची अब उनकी जिंदगी का हिस्सा हैं। काम के प्रति उनकी लगन देखकर पत्थर भी पिघल जाए, पर प्रशासन कैसे पिघले? उनकी एकल प्रदर्शनी देखकर छत्तीसगढ़ के संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और शिक्षा मंत्री अजय चंद्राकर ने सहायता का वचन तो दे दिया, लेकिन मदद के नाम पर अभी तक कुछ भी नहीं किया गया है।बसंत की कमर से नीचे का भाग संवेदनहीन है। उंगलियों से काम करना भी संभव नहीं है। वह हथेली में ब्राश बांधकर चित्र बनाते हैं। जब पीठ में दर्द होने लगता है तो पेट के बल लेटकर काम को पूरा करते हैं। अब तक वे 350 से भी अधिक चित्र बना चुके हैं। उनकी तीन एकल प्रदर्शनियां छत्तीसगढ़ में प्रदर्शित हुई हैं। कुछ कलाकृतियों का प्रदर्शन दिल्ली में भी हुआ है। अब उनकी इच्छा ललित कला अकादमी में प्रदर्शनी लगाने की है। लेकिन छत्तीसगढ़ के कुरूह निवासी बसंत की गाड़ी संसाधनों के अभाव में अटक जाती है। उनके मित्रों- सुरेश अग्रवाल, महेश यादव और सूर्यकांत को इसका मलाल है। सुरेश के अनुसार, “नकली चित्रकार चांदी काट रहे हैं जबकि बसंत जैसी विलक्षण प्रतिभा अभावग्रस्त है।” ढंग की व्हील चेयर भी नहीं है उनके पास। कभी- कभार बिके चित्रों से जो आय होती है, वह निर्माण सामग्री पर खर्च हो जाती है। बसंत का पसंदीदा क्षेत्र है तैल चित्र। दक्षता ऐसी है कि राज्य के संस्कृति व पुरातत्व आयुक्त प्रदीप पंत ने जब उनकी कृतियों को देखा तो उन्होंने बिना कुछ सोचे 16 चित्र खरीद लिए। एक दुर्घटना ने बसंत की जिंदगी को कुछ क्षणों के लिए ठहरा भले ही दिया हो पर उन्होंने अपनी इच्छाशक्ति से नए मार्ग खोल दिए।(स्रोत: इंडिया टुडे, 21 सितम्बर, 05)NEWS
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