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साधना का पर्याय “साधना” गांवअंग्रेजी के प्राध्यापक रहे वसंतराव देशपांडे की साधना फलीभूत नहीं हो पा रही थी। वह एक ऐसी जगह की तलाश में थे, जहां मानसिक विकलांगता से पीड़ित बच्चों के लिए आश्रम खोल सकें। 1993 में उन्हें सफलता मिल ही गई। पुणे से करीब 40 किलोमीटर दूर कोलवन घाटी में स्थित साधना गांव में उन्होंने आश्रम स्थापित किया।आश्रम में 10 कर्मचारी व देशपांडे के “खास दोस्त” (विकलांग) रहते हैं। 18 से 50 वर्ष के इन विकलांगों की देखभाल “हाउस पैरेंट्स” करते हैं, जो प्रशिक्षित समाजसेवी हैं। वे इन्हें जीने व रोजगार का हुनर सिखाते हैं। इसके अलावा इन्हें जल संरक्षण, दुग्ध संकलन, मोमबत्ती, चावल पैकिंग करना भी सिखाया जाता है। खास बात यह है कि इस रोजगार सृजन में ग्रामीणों की भी सहभागिता होती है और उन्हें भी रोजगार मिलता है। ग्रामीणों को बकरी व मुर्गीपालन का भी प्रशिक्षण आश्रम में दिया जाता है।देशपांडे को इस आश्रम को स्थापित करने की प्रेरणा न्यूयार्क के कैंपहिन विलेज में मिली, जहां कुछ वर्ष पूर्व वह अपनी सबसे बड़ी बेटी का इलाज कराने गए थे। वह किसी रहस्यमय संक्रमण के चलते अपना मानसिक संतुलन खो बैठी थी। 72 वर्षीय देशपांडे अपनी पत्नी के साथ अक्सर साधना गांव स्थित आश्रम पहुंच जाते हैं। यहां उन्हें वह घटना याद आती है जब ग्रामीणों ने आश्रम का विरोध किया था। उन्हें लग रहा था कि उनके गांव में घुसपैठ की जा रही है। लेकिन एक दशक बाद ग्रामीणों की धारणा बदल चुकी है, क्योंकि आश्रम ने ग्रामीणों के लिए रोजगार के अवसर पैदा किये हैं। इससे उनके जीवन स्तर में भी सुधार आया है। सबसे बड़ी बात है कि देशपांडे के खास दोस्तों को आश्रम में सही जिंदगी जीने का मौका मिला।(स्रोत: इंडिया टुडे, 13 जून, 05)NEWS
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