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विकृति से लड़ने का संकल्पउत्तराञ्चल में नशे के बढ़ते प्रभाव और कामुकता का असर उतना ही है जितना देश के अन्य शहरी क्षेत्रों में। पर बड़ी बात यह है कि यहां अनेक सामाजिक संगठन इन बुराइयों के खिलाफ लड़ रहे हैं और सामान्यत: उनका बहुत अच्छा प्रतिसाद भी मिल रहा है। गढ़वाल क्षेत्र में जहां दैवी आपदा पीड़ित सहायता समिति सक्रिय है, जिसके प्रणेता डा. नित्यानंद ने गढ़वाल के युवाओं का एक आदर्श समूह तैयार किया है, वहीं देहरादून और उसके आस पास सेवा भारती, संस्कार भारती जैसे संगठन भी सक्रिय हैं। सेवा भारती के माध्यम से श्री प्रेम बुड़ाकोटी, जो स्वयं अपने जीवन और कर्मठता से शारीरिक अपंगता को चुनौती देते हुए युवाओं के प्रेरक बने हुए हैं, बताते हैं कि गढ़वाल में पर्यटन उद्योग के कारण इन तमाम विकृतियों का प्रभाव अधिक पड़ा है। सेवा भारती और संस्कार भारती के माध्यम से गढ़वाल में युवाओं को राष्ट्रीय विचारों और भागवत कथाओं के माध्यम से आधुनिक प्रगतिशील लोगों को भविष्योन्मुखी जीवन जीते हुए कुरीतियों के विरुद्ध लड़ने का वातावरण बनाया जा रहा है।देहरादून की एक अन्य विभूति हैं श्री राकेश ओबराय, जो गढ़वाल के लगभग प्रत्येक सामाजिक कार्य के साथ तन-मन-धन से जुटे रहते हैं। उनके पिता स्व. सरदारी लाल ओबराय भी सामाजिक, धार्मिक एवं राष्ट्रीयता को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों को बढ़ावा और सहयोग देते रहे। श्री राकेश ओबराय देहरादून में न केवल अनुसूचित जाति एवं जनजातीय बच्चों के विकास के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं और पूज्य रज्जू भैया के आशीर्वाद से उन्होंने अनुसूचित जनजातियों के बच्चों के लिए एक राष्ट्रीय स्तर का अनुकरणीय विद्यालय प्रारंभ किया, बल्कि गढ़वाल के युवाओं को सामाजिक बुराइयों से दूर करने के अनेक उपक्रमों में वे सक्रियता के साथ जुड़े हैं।सांस्कृतिक एवं कलात्मक कार्यों के माध्यम से गढ़वाल की मूल चेतना को जाग्रत करते हुए सामाजिक कुरीतियों एवं गलत परंपराओं के विरुद्ध विद्रोह का स्वर गुंजाने वाले अखिल भारतीय ख्याति के कलाकार श्री अवी नंदा ने अपने सैकड़ों नुक्कड़ नाटकों एवं संगीतात्मक प्रस्तुतियों द्वारा गढ़वाल की चेतना को बुराइयों के प्रति जगने के लिए सचेत किया।स्थानीय रंगमंच में टी.के. अग्रवाल और उत्तर चचरा, जहां इस क्षेत्र के नामी सुधारवादी अभियानों से जुड़े कलाकार रहे हैं वहीं विरासत के माध्यम से देहरादून का पर्यावरण संरक्षण एवं कलात्मक अभिरुचि के समूह उन युवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं जो पहाड़ की सांस्कृतिक थाती को सहेज कर नये युग की ओर बढ़ रहे हैं।जहां तक कुरीतियों के प्रसार की बात है तो वह प्राय: अधिक रेखांकित और ज्यादा दिखती हैं। इसका कारण यह भी है कि समाचार पत्रों में अच्छे कार्य का विवरण कम और बुराइयों का अधिक होता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि उत्तरांचल के राज्यपाल श्री सुदर्शन अग्रवाल ने उत्तरांचल में सामाजिक बुराइयों और गलत परंपराओं, विशेषकर कन्याओं के प्रति पूर्वाग्रहग्रस्त दृष्टि बदलने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अद्भुत कार्य किया है। उन्होंने हिम ज्योति फाउंडेशन स्थापित कर गढ़वाल की गरीब कन्याओं के विकास एवं शिक्षा के लिए विशेष कार्य प्रारंभ किए, वहीं अनुसूचित जनजातियों के देश भर से आए विद्यार्थियों की शिक्षा तथा सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हर प्रकार की मदद की है। गत दिनों दिल्ली में हुए राज्यपालों के सम्मेलन में राष्ट्रपति डा. अब्दुल कलाम ने भी उनके बारे में कहा था कि देश के अन्य राज्यपालों को श्री सुदर्शन से कुछ सीखना चाहिए।रामप्रताप मिश्रउत्तरांचल, विशेषकर देहरादून एक लम्बे अर्से से समाज विज्ञानियों के लिए चिंता का कारण बनता जा रहा है। इसका कारण है यहां के छात्रों-युवाओं में फैशन तथा मादक द्रव्यों के विक्रेताओं का जाल फैलना। हाल ही में क्लेमेन्टाउन क्षेत्र में रह रहे एक दम्पति को मादक द्रव्यों की आपूर्ति के आरोप में गिरफ्तार किया गया। यह पति-पत्नी यूं तो विद्यालयों तथा कुछ छात्रावासों को भोजन आपूर्ति का काम करते थे लेकिन इसकी आड़ में यहां के विद्यार्थियों को नशे का आदी भी बना रहे थे।पिछले दो दशकों में देहरादून के युवाओं में अजीबो-गरीब परिवर्तन देखने को मिले हैं। इसके पीछे कामुक पत्र-पत्रिकाओं के प्रचलन, टी.वी., वीडियो, कम्प्यूटर, नशे का बढ़ता चलन तथा फैशनपरस्त शिक्षा तंत्र को ही जिम्मेदार माना जा रहा है। उत्तराञ्चल के प्रमुख शिक्षालयों में विद्यार्थियों की बातचीत के दौरान जो तथ्य सामने आये हैं उनके अनुसार इस सबसे पठन-पाठन पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। इस संदर्भ में मनोरोग विशेषज्ञ (मेजर) डा. नन्द किशोर मानते हैं कि मुम्बई तथा दिल्ली जैसे शहरों की तरह देहरादून में भी युवकों, खासकर कम उम्र के युवकों में फैशनपरस्ती, नशे की लत और कामुक पत्रिकाओं का प्रभाव तेजी से बढ़ा है। डा. नन्द किशोर स्वीकार करते हैं कि अधिकांश लोग फोन पर अथवा अन्य माध्यमों से नशे के आदी व अन्य व्यसनों में लिप्त अपने बच्चों के बारे में उनसे सलाह तो लेते हैं लेकिन अपनी पहचान छुपाने के लिए उन तक नहीं पहुंचते। उन्होंने कहा है कि विद्यार्थियों, विशेष रूप से अविवाहित युवकों में ऐसी पत्र-पत्रिकाओं का पढ़ना आम बात है जिनमें कामुकता से भरे आलेख तथा चित्र होते हैं। इस संदर्भ में वे अभिभावकों व उनके बच्चों को संयम बरतने की सलाह देते हैं।डा. नन्द किशोर यह स्वीकारते हैं कि बच्चों में फैशनपरस्ती और उपभोक्तावादी संस्कृति का गहरा प्रभाव पड़ा है। इसके लिए वे मीडिया क्रान्ति, नई तकनीकी जैसे कम्प्यूटर, इंटरनेट तथा पश्चिमी संस्कृति के प्रचार को जिम्मेदार मानते हैं। डा. नन्द किशोर के अनुसार बच्चों का कामुकता और नशे की ओर मुड़ना पारिवारिक अनदेखी के कारण भी हो रहा है। उच्च आय वर्ग के लगभग 20 से 25 प्रतिशत बच्चे अपने को विशिष्ट दिखाने के लिए नशे तथा फैशन के आदी हो रहे हैं। 8 से 10 प्रतिशत वे बच्चे हैं जो घर की उपेक्षा से इन दुर्गुणों में फंस रहे हैं। लगभग 5 से 13 प्रतिशत प्रतिशत वे बच्चे हैं जो निम्न आय वर्ग के हैं, किन्तु उच्च आय वर्ग अथवा मध्यम आय वर्ग के बीच अपने को “बड़ा” दिखाना चाहते हैं।21 वर्षीय सुनील नेगी डी.ए.वी. कालेज में स्नातक तृतीय वर्ष के छात्र हैं। नेगी मानते हैं कि फैशन आज समय की मांग हो गई है लेकिन वे उतना ही फैशन करना चाहते हैं जहां तक उनकी अपनी पहुंच हो। पढ़ाई के साथ-साथ कुछ आय के लिए नौकरी भी कर रहे नेगी का कहना है कि कालेज नशेड़ियों तथा फैशनपरस्तों का अड्डा बन गया है। कालेज में नशीली चीजों के प्रचलन से नेगी क्षुब्ध हैं। उनका कहना है कि कई बार कालेज प्रशासन जानकारी होने के बावजूद इन पर रोक नहीं लगा पाता। देखा-देखी कई अन्य लोग भी इन दुर्गुणों के जाल में फंस जाते हैं। स्वामी विवेकानन्द को अपना आदर्श मानने वाले सुनील नेगी का कहना है कि वे नशे तथा अश्लील साहित्य- दोनों से काफी दूर हैं, पर उन्हें यह स्वीकारने में कोई हिचक नहीं कि छात्र-छात्राओं के बीच इसका प्रचलन पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ा है।20 वर्षीय रमेश चौहान गढ़वाल विश्वविद्यालय में बी.ए. द्वितीय वर्ष के छात्र हैं। वे भविष्य में प्रशासनिक सेवाओं में जाने के इच्छुक हैं। कालेजों में पैर पसारते कामुक बाजार और नशीले पदार्थों के बढ़ते चलन से वे भी चिन्तित हैं। कहते हैं, “नशा और अश्लील पत्रिकाएं छात्र-छात्राओं को पतन के गर्त में ले जा रही हैं।” रमेश कहते हैं कि जो फैशन मन को भाये, उसे स्वीकारना चाहिए। वे मानते हैं कि पर्वतीय क्षेत्र में देशी शराब पीना, बीड़ी, सिगरेट आदि का उपयोग एक आम बात है पर अब नशे के पदार्थ और तरीके बदल रहे हैं। रमेश मानते हैं कि, “एक सीमा तक फैशन ठीक है लेकिन फैशन मर्यादा में होना चाहिए।” रमेश यह भी मानते हैं कि अश्लील पत्र-पत्रिकाओं से कहीं भी अधिक आज कुछ अंग्रेजी के अखबारों, इलैक्ट्रानिक मीडिया तथा टी.वी. पर रीमिक्स गानों द्वारा अश्लीलता परोसी जा रही है। इस पर अंकुश लगना चाहिए।महादेवी कन्या पाठशाला की एक परास्नातक छात्रा, जो एक ऊंचे घराने से सम्बंध रखती हैं, ने इस शर्त पर साक्षात्कार दिया कि उसका परिचय न दिया जाए। उक्त छात्रा का कहना है कि पुरुष महाविद्यालयों के साथ-साथ महिला महाविद्यालयों में भी नशे का प्रचलन तथा अश्लील साहित्य पढ़ने की लत बढ़ रही है। अंग्रेजी की तीन-चार पत्रिकाओं का उल्लेख करते हुए उक्त छात्रा का यह भी कहना था कि इन पत्रिकाओं में जिस ढंग के दृश्य तथा आलेख प्रस्तुत किए जाते हैं वे युवा वर्ग को भ्रमित कर रहे हैं। वह मानती हैं कि बच्चों के दिशाहीन होने में मां-बाप का भरपूर समय न मिल पाना भी एक प्रमुख कारण है। उनके अनुसार मात्र 2 से 5 प्रतिशत छात्राएं ही नशे की लत में फंसती हैं, पर भविष्य के लक्षण अच्छे नहीं हैं।NEWS
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