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बिहार में अराजकता का प्रतीक बनीसोनिया की लालू सरकार….वरना यदि सोनिया चाहतीं कि बिहार में नरसंहार, अपहरण और डकैतियां न हों तो क्यों लालू को समर्थन देतींलालू के कुशासन को कांग्रेस की बैसाखी-शाहनवाज हुसैन, पूर्व केन्द्रीय मंत्रीबिहार चुनाव के संदर्भ में पाञ्चजन्य से बातचीत में भाजपा नेता सैयद शाहनवाज हुसैन द्वारा व्यक्त विचार। सं.प्रस्तुति: आलोक गोस्वामीबिहार वह धरती है जिसमें देश की अनेक महान विभूतियों ने जन्म लिया, लोकनायक जयप्रकाश हों या डा. राजेन्द्र प्रसाद जैसे राजनेता। लेकिन आज बिहार का नाम सुनते ही शेष भारत के लोगों के मन में एक अजीब सा, कसैला सा भाव आ जाता है। उसका कारण यह है कि जब भूकम्प आता है तो अच्छे से अच्छी इमारत भी एकबारगी हिल जाती है और उसका चेहरा बिगड़ जाता है। उसी प्रकार, दुर्भाग्य से लालू प्रसाद यादव एक श्राप की तरह बिहार में सत्ता पर काबिज हुए। बिहार को नजर लग गई। लालू यादव ने बिहार को जातियों में बांट दिया। पहले जो बिहारी वास्तव में बिहारी था, अब नहीं है। बिहार में आज सबसे पहले आपकी जाति पूछी जाती है यानी हिन्दू और मुस्लिम दोनों में जातियां महत्वपूर्ण हो गई हैं।लालू यादव ने समाज को तोड़ने का काम किया है। उन्होंने अपराधी तत्वों को शह देकर उन्हें बढ़ाने का काम किया। यही कारण है कि आज बिहार की छवि को बहुत ठेस लगी है। बिहारियों में बहुत सामथ्र्य होता है, इसलिए आज भले बिहार पिछड़ा हुआ है, बिहारी दुनिया में नाम कमा रहे हैं।हम आज बिहार के स्वाभिमान की लड़ाई लड़ रहे हैं। हम बिहारी स्वामिमान को जगाना चाहते हैं। हिन्दू हो, मुसलमान, राजपूत या भूमिहार। बिहार से बाहर हमारी बोली-भाषा, रंग-रूप एक सा होने के कारण लोग हमें बिहारी के नाते ही जानते हैं, लेकिन जब हम अपने बिहार में लौटते हैं तब हमारा परिचय बिहारी के रूप में नहीं बल्कि जातिगत आधार पर होता है। यहां जातिवाद का घुन बुरी तरह लगा है। इसी कारण आज “बिहारी” शब्द एक कसैला भाव पैदा करता है।मैं जहां-जहां चुनावी सभाओं, रैलियों और क्षेत्रों में जा रहा हूं, वहां एक ही बात कहता हूं कि आज बिहार के अस्तित्व का सवाल है। हम आज बिहार के सम्मान की लड़ाई लड़ रहे हैं। 15 साल में जो लोग बिहार की तकदीर नहीं संवार सके, आगे अब उनके वश में कुछ नहीं है। इसलिए हम जनता के बीच जाकर कह रहे हैं कि हमें जिताने के लिए नहीं, बिहार के स्वाभिमान को बचाने के लिए वोट दीजिए।लालू यादव कांग्रेस के ही समर्थन से बिहार में कुशासन कर रहे हैं। अगर कांग्रेस चाहे तो आज इस पर विराम लग सकता है। केन्द्र में जब कांग्रेस अपने बूते सरकार नहीं बना पाई तो लालू की लाठी का सहारा लिया। भले उसमें कांटे चुभते हों, पर कांग्रेस उसे थामे हुए है। इसलिए सोनियां गांधी हों, रामविलास पासवान हों या लालू, ये सब आपस में “मैच फिÏक्सग” जैसा ही कर रहे हैं। लालू-विरोधी मत का बंटवारा करने के लिए अभी भले ही कांग्रेस और पासवान की लोजपा अलग-अलग दिखाई देती हों, चुनाव के बाद सब एक मंच पर चढ़ जाएंगे और उसके बाद पासवान का रटा-रटाया बयान आएगा– “साम्प्रदायिक शक्तियों को रोकने के लिए हम लालू प्रसाद का समर्थन करना चाहते हैं।” लेकिन मुझे नहीं लगता कि बिहार की जनता यह नौबत आने देगी।चुनावी मुद्दों की चर्चा करें तो इस बार बिहार में साम्प्रदायिकता कोई मुद्दा नहीं है। कहीं भी हिन्दू-मुस्लिम तनाव नहीं है। बिहार में जातीयता भले ही मुद्दा हो, साम्प्रदायिकता नहीं। यहां ईरान-इराक और गुजरात के नाम पर नहीं, बिहार के नाम पर चुनाव होगा। लालू यादव भले अपनी गोधरा समिति की रपट लेकर घूम रहे हों, पर हाल ही में लालू द्वारा ही नियुक्त राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने अपनी रपट दी है कि देशभर में मुसलमानों की सबसे खराब हालत बिहार में है। 15 साल तक लालू यादव मुसलमानों के वोट लेते रहे हैं लेकिन उन्होंने मुसलमानों के हित में कोई कदम नहीं उठाया। वे सिर्फ रा.स्व.संघ और भाजपा का हौव्वा दिखाकर मुसलमानों को डराए रखना चाहते हैं। इसी डर के आधार पर वे वोट लेते रहे हैं। न्यायमूर्ति यू.सी.बनर्जी द्वारा दी गई गोधरा की अंतरिम रपट में वही बातें लिखी गई हैं जो लालू पहले से कहते आ रहे थे। इसलिए बिहार में इस रपट की कोई विश्वसनीयता नहीं है। यहां बनर्जी समिति की अंतरिम रपट कोई मुद्दा नहीं है।NEWS
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