बिहार भाजपा के नेता
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बिहार भाजपा के नेता

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Jun 2, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 02 Jun 2005 00:00:00

कैलाशपति मिश्र सुशील कुमार मोदी डा. सी.पी. ठाकुर शाहनवाज हुसैनइनके जिम्मे रहा बिहार! क्या ये बचा पाएंगे?राजीव प्रताप रूढ़ी रविशंकर प्रसाद शत्रुघ्न सिन्हा कीर्ति आजादअब बस “वोट कटवा” रह गई है कांग्रेसपटना से कल्याणी1995 के विधानसभा चुनाव से बिहार में कांग्रेस पार्टी की छवि एक राष्ट्रीय पार्टी की न होकर “वोट कटवा” की बनकर रह गई है। अधिकतर कांग्रेसी नेता कांग्रेस को “लालू कांग्रेस” कहते हैं। उन्हें लगता है कि 2005 के चुनाव के बाद कांग्रेस शायद “वोट कटवा” की हैसियत में भी न रह पाए। पिछले दिनों जहां दूसरे दलों में टिकट पाने के लिए मारा मारी चल रही थी, वहीं कांग्रेस पार्टी के कई दिग्गज नेताओं ने टिकट मिलने पर भी चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। इन नेताओं ने साफ-साफ कह दिया कि वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर अपनी रही-सही राजनीतिक साख भी गंवाना नहीं चाहते। कांग्रेस पार्टी इससे सकते में है। दल के अंदर मंथन चल रहा है कि इस नई चुनौती से कैसे निबटा जाए। कांग्रेस के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस के कम से कम तीन वरिष्ठ नेताओं धनराज सिंह, मनोरमा सिंह और सत्येन्द्र सिंह ने प्रदेश नेतृत्व को चुनाव लड़ने से साफ इनकार कर दिया है। कारण एक ही है- कांग्रेस और राजद के बीच अजीबोगरीब तालमेल से उपजी स्थिति के कारण अधिकतर कांग्रेसी गुस्से में हैं।सन् 2000 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की स्थिति बहुत खराब थी। उसे सिर्फ 12 सीट (बिहार क्षेत्र) मिली थीं और उनके अधिकतर उम्मीदवारों की स्थिति “वोट कटवा” की हो गई थी। पिछले चुनाव में कांग्रेस कहने को तो राजद से बिना तालमेल के चुनाव लड़ी थी, लेकिन अंदर-अंदर ही कई स्थानों पर तालमेल भी था। जनता ने कांग्रेस के इस दोहरे चरित्र को नकार दिया और चुनाव के मैदान में उसे मुंह की खानी पड़ी। इस बार कांग्रेस इस स्थिति से बचना चाहती थी, लेकिन लगता है कि इस बार उसकी स्थिति पिछले चुनाव से भी बदतर हो सकती है। इस चुनाव में कांग्रेस, राजद के साथ मिलकर चुनाव लड़ना चाहती थी। इसके लिए लालू और अर्जुन सिंह के बीच कई दौर की वार्ता हुई। लालू किसी भी हालत में कांग्रेस को 30 से अधिक सीट देने को राजी नहीं हुए जबकि कांग्रेस तालमेल के तहत कम से कम 80 सीटें लेने पर अड़ गयी थी। लालू ने साफ कह दिया कि वह इतनी सीटें नहीं दे सकते। अभी तक जो स्थिति सामने आई है उसके अनुसार राजद, कांग्रेस की 12 मौजूदा सीटों (जिन पर सन् 2000 में कांग्रेस के प्रत्याशी जीते थे) पर अपने उम्मीदवार नहीं खड़े करेगा। इसके बदले कांग्रेस, राजद की 129 मौजूदा सीटों पर अपने प्रत्याशी नहीं उतारेगी। यानी 243 सदस्यीय विधानसभा में 141 सीटों के बारे में समझौते की गुंजाइश बनती है। शेष 102 सीटों पर क्या होगा, इसका उत्तर न तो कांग्रेस के पास है और न ही राजद के पास।यह घपला कैसे?भाकपा (माले) का पटना में राज्य मुख्यालय है, बिल्कुल भाजपा कार्यालय से सटा हुआ। भाजपा में टिकटार्थियों एवं समर्थकों की भीड़ बढ़ी तो कम्युनिस्ट संगठन के लोगों की भौंहें चढ़ीं। पता किया तो जानकारी मिली कि उसके ही टिकटार्थी एवं समर्थक भाजपा मुख्यालय जाकर हुल्लड़ एवं नारेबाजी करते हैं। कुछ दिन पहले ऐसी ही एक घटना को स्थानीय व राष्ट्रीय समाचार पत्रों ने खूब उछाला था। भाजपा दफ्तर पर तोड़-फोड़ और खींचतान। अब पता चला घपला क्या था।क्या इन शेष बची सीटों पर कांग्रेस-राजद आमने-सामने होंगे? कांग्रेस बची हुई सीटों पर किस स्थिति में है? कई सवाल ऐसे हैं, जिनके बारे में घोर अनिश्चितता की स्थिति है। कांग्रेस क्या करे? कारण, प्रदेश कांग्रेस और केन्द्रीय नेतृत्व के बीच कभी भी राजद के साथ समझौते को लेकर एक मत नहीं रहा है। बिहार कांग्रेस के नेताओं का मानना है कि सोनिया गांधी को लालू ने अपने दांव-पेंच में जकड़ रखा है। लालू जो कहते हैं, सोनिया वही सुनती हैं। लालू जो दिखाते हैं, सोनिया वही देखती हैं। बिहार में कांग्रेस की दुर्दशा का यही कारण है। एक राष्ट्रीय पार्टी बिहार में एक क्षेत्रीय पार्टी की भी हैसियत नहीं रखती है।बिहार में कांग्रेस पार्टी अपनी स्थिति को अच्छी तरह समझती है। उसका अपना कोई वोट बैंक नहीं रह गया है, इसलिए वह कभी लालू से तो कभी रामविलास पासवान से गठबंधन करना चाहती थी। पर लालू के सामने उसकी एक न चलने पर पासवान से तो समझौता हो गया है। लोगों का मानना है कि यह केवल दिखावा है। अभी भी कांग्रेसी नेताओं और लालू यादव के बीच भीतरी सांठगांठ है। गठबंधन न होने के बावजूद राजद ने कुछ वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के विरुद्ध अपने प्रत्याशी नहीं उतारे हैं।NEWS

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