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डा. रवीन्द्र अग्रवालकेसर की महक बनाम उधार की खेतीगत 20 जून को केन्द्र सरकार ने “पंचायती राज के माध्यम से गरीबी उन्मूलन और ग्रामीण समृद्धि” नाम से राज्यों के मुख्यमंत्रियों का सम्मेलन बुलाया। नयी सरकार का यह पहला बड़ा आयोजन था। इस सम्मेलन का उद्घाटन किया स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने। उम्मीद थी कि अपने पहले सार्वजनिक भाषण में प्रधानमंत्री ग्रामीण इलाकों के लिए किसी नई पहल की घोषणा करेंगे। परन्तु प्रधानमंत्री के इस भाषण से ग्रामीण इलाकों को निराशा के अलावा कुछ हाथ नहीं लगा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपने भाषण में ऐसा कुछ नहीं कहा जो अभी तक पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी और स्व. राजीव गांधी न कह चुके हों। उनके भाषण में एक नयी बात अवश्य थी- “चायनीज माडल के ग्रामीण व्यावसायिक केन्द्रों से सबक लेने” का आह्वान। बहुत सम्भव है कि चीनी माडल के ग्रामीण व्यावसायिक केन्द्रों से सबक लेने की बात वामपंथियों से सहयोग लेने की बाध्यता के चलते कही गयी हो। यदि ऐसा नहीं है तो प्रधानमंत्री को यह स्पष्ट करना चाहिए कि लोकतांत्रिक भारत के किसानों की जरूरत के अनुसार यह माडल कितना उपयुक्त है? यह स्पष्ट करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि भारत के किसानों को अभी तक विदेशी माडल के प्रयोग ही कराए जाते रहे। कहना न होगा कि किसी भी प्रयोग के भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल न होने के कारण, किसानों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ी। किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याएं विदेशी माडल की सघन खेती अपनाए जाने का ही दुष्परिणाम हैं।प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने खेती का रूसी माडल अपनाने के साथ की थी, बाद में अमरीकी माडल अपनाया गया। नरसिंह राव जब प्रधानमंत्री बने तब इस्रायल से दोस्ती का हाथ बढ़ाते-बढ़ाते इस्राइली माडल की खेती की बात करने लगे। और अब मनमोहन सिंह अपने वामपंथी सहयोगियों के प्रभाव में चीनी माडल से प्रभावित हैं। विदेशी माडल अपनाने की बात बार-बार तब कही जा रही है, जबकि दुनियाभर में यह स्थापित हो चुका है कि भारतीय कृषि परम्परा सबसे सम्पन्न कृषि परम्परा है। दुर्भाग्य यह है कि जब भारतीय कृषि परम्परा की बात की जाती है, जब कथित “प्रगतिशील टोले” को खेती में भी भगवा रंग दिखने लगता है। भगवा रंग से आक्रांत प्रगतिशील खेमा कश्मीर की क्यारियों में पैदा होने वाली केसर के रंग को क्या कहेगा? जिस प्रकार कश्मीर की पहचान केसर से है, उसी तरह भारत की पहचान उसकी कृषि परम्परा से है। भारत के गांवों का सर्वांगीण विकास उसकी अपनी समृद्ध परम्परा के आधार पर ही सम्भव है। आवश्यकता किसी अमरीकी, रूसी या चीनी माडल को अपनाने की नहीं, बल्कि अपने ही माडल को आधुनिक तकनीक से परिष्कृत कर उपयोग में लाने की है। तभी कश्मीर की क्यारियों में खिली केसर से पूरा देश महक सकेगा।32
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