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भारत के सुप्रसिद्ध बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक श्री महाकालेश्वर उज्जैन नगरी की विश्वप्रसिद्ध पहचान हैं। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव के तीन लोकों में तीन लिंग स्थापित हैं। कहा
गया है-
आकाशे तारक लिंगम्, पाताले हाटकेश्वरम्।
मृत्युलोके महाकालं, लिंगम् त्रय: नमोस्तुते।।
इस प्रकार ब्राह्माण्ड में श्रेष्ठ माने गए इन तीन लिंगों में से एक महाकालेश्वर भूलोक के प्रधान हैं। अति प्राचीन काल से महाकाल की पूजा-अर्चना इस नगरी में की जाती रही है। भगवान श्री महाकालेश्वर की त्रेतायुग में भगवान श्रीराम, द्वापर में योगेश्वर श्रीकृष्ण और वर्तमान युग में करोड़ों श्रद्धालुओं द्वारा पूजा-अर्चना, अभिषेक, अनुष्ठान और वन्दना-आराधना की जाती रही है। महाकालेश्वर के महात्म्य का वर्णन पुराण और तांत्रिक ग्रंथों में भी मिलता है। संस्कृत साहित्य के महाकवि बाण और कालिदास आदि अनेक प्रसिद्ध कवियों ने श्री महाकालेश्वर मन्दिर का सुन्दर वर्णन किया है।
ई. सन् 1060 में परमारवंशीय राजा उदयादित्य ने इस मन्दिर का पुनर्निर्माण करवाया और ग्यारहवीं शताब्दी में ही भोजराज ने भी मन्दिर की व्यवस्था में कुछ सुधार किए। राजा प्रद्योत के समय यह मन्दिर अपने उत्कर्ष पर था। परंतु दिल्ली के गुलामवंश के शासक इल्तुतमिश ने 1235 में महाकालेश्वर मन्दिर को नष्ट कर दिया था। इल्तुतमिश के लगभग 500 वर्ष बाद 1734 में इस मन्दिर का जीर्णोद्धार पेशवाओं के प्रिय तथा राणोजी सिंधिया के दीवान रामचंद्र शेणवी ने करवाया। तभी से इस मन्दिर में पूजन-अर्चन की व्यवस्था राज्य की ओर से की जाने लगी। अनेक मुस्लिम शासकों द्वारा भी श्री महाकालेश्वर मन्दिर में नंदा दीप और पूजा कार्य व्यवस्था हेतु सनदें जारी की जाती रही हैं। यहां के पुजारियों के जीवनयापन की व्यवस्था भी राज्य द्वारा ही की जाती थी। सिंधिया राज्य के संस्थापक महादजी सिंधिया ने मन्दिर और पुजारियों की व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया। ग्वालियर राज्य, होलकर राज्य और भोज के वंशजों द्वारा भी श्री महाकालेश्वर की पूजा शास्त्रोक्त विधि से की जाने के लिए सहायता की जाती थी।
एक जनश्रुति के अनुसार यह मन्दिर 121 गज ऊ‚ंचा था तथा इस मन्दिर प्रांगण के विशाल स्तंभों की संख्या भी 121 थी। यह मन्दिर अनेक रत्नालंकरणों से जड़ित था, इसके परिसर में मणि-मुक्ताओं के झूमर-तोरण लगे थे। प्रवेशद्वार पर लटकती हुई घंटिकाएं सोने की बनी थीं और उनके चारों ओर मोतियों की झालरें लटकती रहती थीं।
वर्तमान में श्री महाकालेश्वर मन्दिर के तीन खण्ड हैं। गर्भगृह में महाकालेश्वर की विशाल मूर्ति स्थापित है। भूतल खण्ड पर ओंकारेश्वर और द्वितीय तल पर श्री नागचंद्रेश्वर आसीन हैं। मन्दिर के सभागृह में नन्दी की विशाल चांदी से जड़ी प्रतिमा है। पश्चिम की ओर भगवान गणेश, उत्तर की ओर मां पार्वती और पूर्व में भगवान कार्तिकेय की सुन्दर प्रतिमाएं विराजमान हैं। मन्दिर में विशाल जलाशय है जिसे कोटितीर्थ कहते हैं। यहां निरन्तर नन्दादीप प्रज्वलित रहते हैं। मन्दिर की भव्यता दर्शनीय है। वर्षभर यहां विश्वभर से श्रद्धालुजन दर्शनार्थ आते रहते हैं।
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