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चर्चा-सत्र

by
Oct 10, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 10 Oct 2004 00:00:00

राजेश गोगनाभारत की संप्रभुता का मजाककहीं-किन्हीं कंदराओं में बैठे ओसामा बिन लादेन और भारत पर इस्लामी झंडा फहराने की मंशा रखने वाले जिहादी संगठनों ने उस सुबह एक सुखद अहसास महसूस किया होगा।यह सुखद अहसास उनके संघर्ष में किसी सफलता के कारण नहीं था। यह अहसास इस बात को लेकर था कि भारतवर्ष में आज भारत की संप्रभुता को सबके सामने चोट पहुंचायी जा सकती है और संप्रभुता के रक्षक चुपचाप खड़े रहकर हमलावरों को देखते रहेंगे, क्योंकि सत्ता में रहने के मोह के सामने देश, उसका सम्मान या उसकी अस्मिता कोई मायने नहीं रखती है।21 सितम्बर, 2004 को भारत के राष्ट्रपति ने “गैरकानूनी गतिविधि (निरोधक) संशोधन अध्यादेश” जारी किया गया।इस अध्यादेश में भारत में काम कर रहे तथा प्रतिबंधित आतंकवादी संगठनों की सूची भी जारी की गई थी। सूची में पाए गए किसी संगठन के नाम पर कोई आश्चर्य नहीं था, क्योंकि वे सब संगठन हिंसक तथा आतंकवादी कार्यवाहियों में पूरी तरह संलग्न थे तथा भारत के बहुत से हिस्से करना चाहते थे। लश्कर-ए-तोइबा, जैश-ए-मोहम्मद, अल कायदा के साथ-साथ सी.पी.आई. (एम.एल.), पीपुल्स वार ग्रुप तथा उनके सभी संगठनों और इकाइयों को भी इस सूची में (कुल 32 संगठन) कांग्रेसनीत संप्रग सरकार द्वारा ही प्रतिबंधित जारी रखा गया।इस अध्यादेश में प्रावधान है कि इन सब आतंकवादी संगठनों की कार्यवाही में हिस्सा लेने वाले या इन संगठनों को समर्थन देने वाले किसी भी व्यक्ति को 10 वर्ष की कैद की सजा हो सकती है। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार के गृह मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार सी.पी.आई. (एम.एल.), पी.डब्ल्यू.जी. तथा अन्य आतंकवादी संगठनों द्वारा जून, 2003 तक 9,773 लोगों की हत्या की जा चुकी थी।यह संख्या आज तक इस्लामी जिहादियों द्वारा मारे गए अमरीकी नागरिकों एवं सैनिकों की संख्या की दोगुनी है।अमरीका अपनी संप्रभुता एवं सम्मान की रक्षा के लिए इस्लामी जिहादियों पर पूरी दुनिया में सैन्य कार्यवाही कर रहा है और यह उसकी प्राथमिकता है।अब भारत के संदर्भ में भी गौर कीजिए। साम्यवाद का हिंसक साम्राज्य स्थापित करने का स्वप्न देखने वालों से भारत सरकार याचना करती है- “कृपया आप गांवों में हथियार लेकर न जाया करें, हमारे कानूनों का उल्लंघन होता है। यह शोभा नहीं देता। हमारी समस्याएं समझने की कोशिश करें। हमारे यहां मीडिया है, विपक्ष है।”हिंसक आतंकवादी संगठन नहीं मानते और सरकार शांत होकर बैठ जाती है। फिर होता है भारत की संप्रभुता पर प्रहार करने का खेल।प्रतिबंधित कम्युनिस्ट आतंकवादी संगठन सी.पी.आई. (एम.एल) व पीपुल्स वार ग्रुप ने अपने प्रमुख गुटों जनशक्ति तथा तेलंगाना राष्ट्र समिति के नाम से 30 सितम्बर को हैदराबाद में एक लाख से अधिक लोगों की सभा की।इस सभा ने भारत के राष्ट्रपति द्वारा जारी अध्यादेश को चुटकुला बना डाला । यह काम सी.पी.आई. (एम.एल.) तो पहले से ही करती आ रही है। भारत सरकार, मीडिया, प्रशासन यह शर्मनाक कार्य चुपचाप देख रहे हैं और कोई प्रतिक्रिया भी नहीं है। चरारे शरीफ में बच निकला मस्तगुल भी अब सोच सकता है कि वह श्रीनगर में वैसी ही सभा करेगा और उसकी फोटो अखबारों में छपेगी। भारत सरकार को इससे कोई चिन्ता नहीं होगी, क्योंकि भारत सरकार वोट बैंक रखने वाले आतंकवादी संगठनों से परोक्ष सहानुभूति रखती है। वह यह जानने की कोशिश करती रहेगी कि आखिरकार इस तमाशे के पीछे क्या मानसिकता रही होगी। एक ओर पुलिस से कहा जाता है कि इन प्रतिबंधित संगठनों के खिलाफ कार्यवाही करो, ये आतंकवादी कम्युनिस्ट निर्दयतापूर्वक पुलिसकर्मियों की हत्याएं करते हैं। उसके बाद वही कांग्रेस सरकार कम्युनिस्ट आतंकवादियों के साथ बातचीत की पेशकश करती है और पुलिस से कहती है, खामोश रहो, इनकी रैली में आने वालों की सुरक्षा का प्रबंध करो। सरकार के द्वारा प्रतिबंधित संगठनों की सूची फाइल में बेजान दबी पड़ी रहती है। (लेखक दिल्ली उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता हैं)6

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