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वरिष्ठ बाल साहित्यकार जयप्रकाश भारती ने कहा-नवीनता है बाल साहित्य मेंबाल साहित्य का नाम लेते ही बच्चों के “भैया” और नंदन के पूर्व सम्पादक श्री जयप्रकाश भारती का नाम सर्वप्रथम मस्तिष्क में उभरता है। बाल साहित्य के शिल्पी श्री भारती ने सत्तर से अधिक पुस्तकें लिखी हैं, जिनका अंग्रेजी, गुजराती, मराठी, उर्दू सहित अनेक भाषाओं में अनुवाद भी हुआ है। भारतीय बाल शिक्षा परिषद् के महासचिव श्री भारती को देश-विदेश की अनेक संस्थाओं ने सम्मानित किया है। बाल साहित्य की रचना के लिए हैंस क्रिश्चियन ऐंडरसन सम्मान पाने वाले वे एकमात्र भारतीय लेखक हैं। गत 25 अप्रैल को बालकन जी बारी इंटरनेशनल द्वारा उन्हें जगमोहन कृष्ण न्यास सम्मान – 2004 से अलंकृत किया गया। इस अवसर पर पाञ्चजन्य ने उनसे बाल साहित्य के महत्व और भारत में उसकी स्थिति व भविष्य के विषय पर बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं उस वार्ता के मुख्य अंश।बाल मनोविज्ञान में साहित्य का क्या महत्व है?बच्चे के जन्म से ही साहित्य उसके साथ जुड़ जाता है। हम कह सकते हैं कि बाल साहित्य का मनुष्य से जितना संबंध है, उतना अन्य किसी साहित्य का नहीं। हालांकि बाल साहित्य हमारे यहां काफी उपेक्षित रहा है। इसलिए बाल साहित्य को वह प्रतिष्ठा नहीं मिली, जो मिलनी चाहिए थी।बच्चों को कैसा साहित्य आकर्षित करता है?बच्चों को मनोरंजक साहित्य अच्छा लगता है। उसमें शिक्षा एवं नीति आदि की बातें बाद में जोड़नी चाहिए। राजा-रानी की कहानियां, परी कथाएं- जादू की कथाएं- यह सब उनके साहित्य में होना चाहिए।इस दृष्टि से जो “कामिक्स” और चित्र कथाएं आजकल बाजार में हैं, वे कितनी सार्थक हैं?अच्छी व स्वस्थ कथाएं हों तो कामिक्स मे कोई बुराई नहीं है। लेकिन केवल पैसा कमाने के लिए जैसी-तैसी कहानियां छापने से कोई लाभ नहीं है।टेलीविजन और इंटरनेट के इस दौर में बच्चे पुस्तकों से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में उन्हें साहित्य से कैसे जोड़ा जा सकता है?टेलीविजन अपनी जगह है और पुस्तकें अपनी जगह। टेलीविजन तो सब जगह नहीं होता। बड़े शहरों को छोड़ दें तो और कहीं भी टेलीविजन आदि का इतना जोर नहीं है। वहां आज भी बाल साहित्य चाव से पढ़ा जाता है।सब प्रकार का साहित्य महंगा क्यों होता जा रहा है?ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। महंगाई तो सभी जगह है। अन्य चीजों की तुलना में पुस्तकें आज भी सस्ती हैं। जब आप आठ-नौ सौ रुपए की कमीज पहन सकते हैं तो डेढ़-दो सौ रुपए की पुस्तक भी खरीद सकते हैं।भारत में बाल साहित्य की स्थिति कैसी है?पहले जितना बाल साहित्य दस वर्ष में छपता था, अब एक वर्ष में छपता है। साज-सज्जा, चित्रण, प्रस्तुतिकरण में भी नवीनता आई है। लेखकों की संख्या बढ़ी है। नई शैली, नए प्रयोग, नई विधाएं विकसित हो रही हैं। परंतु इस स्थिति को लोग स्वीकारते नहीं हैं। विशेषकर हिन्दी बाल साहित्य के बारे में अंगेजी वाले दुष्प्रचार करते हैं। वे हिन्दी को नीचा दिखाना चाहते हैं।बाल साहित्य के विकास के लिए और क्या-क्या किया जाना चाहिए?अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों को पुस्तकों की दुकान पर ले जाएं, पुस्तकालय ले जाएं, उन्हें अच्छी पुस्तकें खरीदकर दें। साथ ही सभी मोहल्लों में पुस्तकालय बनाए जाएं। सभी मन्दिरों में भी छोटा-सा पुस्तकालय होना चाहिए। समाज में पुस्तक संस्कृति का विकास करना चाहिए। जन्मदिन आदि समारोहों में पुस्तकें भेंट में दी जानी चाहिए। बच्चों पर ध्यान दिया जाना जरूरी है। बच्चों पर ध्यान देंगे तो बाल साहित्य का प्रचार स्वयं ही होगा। प्रस्तुति : रविशंकर29
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