|
क्यों होते हैं पर्चे “लीक”?बिन पढ़े पास होने का चस्कामार्च और अप्रैल के महीने विद्यार्थियों की दृष्टि से महत्वपूर्ण होते हैं। रात-दिन अथक पढ़ाई के बाद विद्यार्थी जब परीक्षा के लिए मानसिक तौर पर तैयार होता है तो खबर आती है कि फलां पर्चा “लीक” हो गया अत: परीक्षा तिथि टल गई। कैसा महसूस करता होगा एक छात्र? कैसा भीषण मानसिक संत्रास। चंद पैसे वाले अभिभावक अपने पुत्र-पुत्री को बिना पढ़े अव्वल दर्जा दिलवाने के लिए लाखों रुपए भरकर शिक्षा के ठेकेदारों से पर्चे खरीदते पाए गए। विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाले ये लोग कौन हैं और क्यों होता है यह “लीक” का खेल? क्या शिक्षा व्यवस्था में कहीं कोई खामी है? परीक्षा प्रणाली में कोई दोष है? क्या महत्वाकांक्षाएं आसमान छू रही हैं? परीक्षा आयोजन की प्रक्रिया क्या है? क्या सावधानी बरती जाती है? ऐसे कुछ प्रश्नों पर पाञ्चजन्य ने केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सी.बी.एस.ई.) के अध्यक्ष श्री अशोक गांगुली तथा एन.सी.ई. आर.टी. के निदेशक प्रो. जगमोहन सिंह राजपूत सहित राजधानी के कुछ वरिष्ठ शिक्षाविदों से बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं उनके द्वारा दी गई जानकारी के प्रमुख अंश।केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष अशोक गांगुली ने कहा-शिक्षा में व्यावसायिक प्रवृत्ति चिंता का विषय है10 अप्रैल को आपका अ.भा. चिकित्सा प्रवेश परीक्षा का प्रश्नपत्र “लीक” हुआ। फिर 10वीं और 12वीं के पर्चे भी बाजार में आ गए यह कैसे हुआ, क्यों हुआ?यह बड़ी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है जो तेजी से हो रहे सामाजिक अवमूल्यन की ओर इशारा करती है। इस पूरी प्रक्रिया में सबसे खेद की बात यही रही कि जो बिन्दु कमजोर माने गए थे यानी जहां से “लीक” की संभावना थी, वहां पूरी सतर्कता बरती गई थी फिर भी यह हो गया। प्रश्नपत्रों की छपाई, परिवहन तथा भण्डारण के स्तर पर भी काफी परिवर्तन किए गए थे। फिर भी ऐसी घटना का होना हम सभी के लिए आश्चर्य और विस्मय की बात है।दरार कहां पड़ी? कड़ी कहां से टूटी?हमारे गोपनीय विभाग के ही एक कर्मचारी, जो कम्प्यूटर के काम में दक्ष है, युवा है, ने इस घृणित काम को किया।गोपनीयता में कहीं कोई दोष अथवा किसी तरह की लापरवाही रही?हमारा कार्य बहुत विशाल है। हम चिकित्सकीय, इंजीनियरिंग, बोर्ड परीक्षाओं के अलावा जवाहर नवोदय विद्यालय में कक्षा 6 और 9 के लिए प्रवेश परीक्षा का आयोजन करते हैं। कक्षा 10, 12 और पी.एम.टी. की परीक्षाओं के आयोजन की जिम्मेदारी परीक्षा नियंत्रक की होती है। इसके अलावा गोपनीय विभाग का भी इन परीक्षाओं पर नियंत्रण रहता है। पूरी सावधानी बरती गई भी। परन्तु दुर्भाग्यवश ऐसा हो गया।पी.एम.टी. की परीक्षा के लिए इतना उन्माद क्यों है कि अभिभावक लाखों रुपए देकर प्रश्नपत्र खरीदते पाए गए?इन परीक्षाओं की प्रतिष्ठा इतनी बढ़ गई है कि समाज में अभिभावकों का एक वर्ग किसी भी कीमत पर प्रश्नपत्र खरीदना चाहता है। यह चिंताजनक बात है। इसे दूर करना केवल सी.बी.एस.ई. की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि समाज के प्रतिष्ठित प्रतिनिधियों को आगे आना होगा।बदलते समय के अनुसार परीक्षा आयोजन में आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी की कितनी सहायता ली जा रही है?हम परीक्षा आयोजन में उच्च तकनीकी की मदद लेते हैं ताकि मानवीय दखल न्यूनतम हो। हर वर्ष कोई नया आयाम हम इसमें जोड़ते हैं। इसका दूसरा पक्ष भी है कि अपराधी प्रवृत्ति वाले तत्व परीक्षा प्रक्रिया में उन नए परिवर्तनों का पता लगाने की चेष्टा में लगे रहते हैं। मैं मानता हूं कि तालाब को एक मछली गंदा कर सकती है, परन्तु अगर उस मछली को निकाल दिया जाए तो तालाब साफ हो सकता है।आपने बताया कि उच्च तकनीकी का सहारा लिया जा रहा है, गोपनीयता बढ़ाई गई है, हर साल नए तौर-तरीके अपनाए जा रहे हैं। लेकिन इस सबके बावजूद साल दर साल पर्चे “लीक” होने की घटनाएं भी उसी अनुपात में बढ़ती जा रही हैं। ऐसा क्यों है?उच्च तकनीकी के साथ पर्याप्त अणु-सुरक्षा (ई-सिक्योरिटी) भी जरूरी है। पी.एम.टी. प्रश्नपत्र का ही उदाहरण लें तो उस प्रश्नपत्र का मूल खाका बाद में कम्प्यूटर से मिटा दिया गया था। गुप्त कोड भी था। परन्तु तब भी उस पकड़े गए कम्प्यूटर कर्मचारी ने लघुवर (सोफ्टवेयर) प्राप्त करके उस प्रश्न पत्र के अंशों को पुन: हासिल किया, गुप्त कोड का पता लगा लिया। इससे स्पष्ट है कि उच्च तकनीकी के साथ पर्याप्त ई-सुरक्षा न होने पर इस तरह की समस्याएं आ सकती हैं।बोर्ड की परीक्षाओं में इस बार 10वीं, 12वीं के प्रश्नपत्रों में अनियमितताएं पाई गईं। प्रश्न सही नहीं थे, उनके जवाब खोजने मुश्किल थे, पाठ्यक्रम से बाहर का प्रश्न था, आदि। छात्र-छात्राएं काफी परेशान हुए। इसका जिम्मेदार कौन है?हम 10वीं, 12वीं के प्रश्नपत्रों को चार वर्गों में तैयार करते हैं- ज्ञानाधारित प्रश्न, कौशल आधारित प्रश्न, समझ आधारित और अनुप्रयोग आधारित प्रश्न है। हम परीक्षा के जरिए जांचना यह चाहते हैं कि बच्चों में समझ कितनी है और ज्ञान को वे कितना क्रियान्वित कर पाए। इसमें बच्चे उलझ जाते हैं। ऐसे में कहा जाता है कि ये प्रश्न पाठ्यक्रम से बाहर से थे। उपरोक्त चार वर्गों के प्रश्न निश्चित रूप से पाठ्यपुस्तकों की परिधि में नहीं आते।इस बार 12वीं के अंग्रेजी प्रश्नपत्र में एक प्रश्न था जिसमें- “मिस वल्र्ड यूनिवर्सिटी” के बारे में पूछा गया था। मीडिया ने भी छात्रों के स्वर में स्वर मिला दिया कि यह शब्द प्रयोग गलत है, इसकी बजाय “मिस वल्र्ड” या “मिस यूनिवर्स” ही होना चाहिए था। क्यों? “वल्र्ड यूनिवर्सिटी” की “मिस” क्यों नहीं हो सकती? “वल्र्ड यूनिवर्सिटी” की सुन्दरी के बारे में प्रश्न था, पर लोग उसे उलझाने लगे।बोर्ड प्रश्नपत्र बनाने का जटिल कार्य कैसे सम्पन्न करता है?हमारा बोर्ड एकमात्र ऐसा परीक्षा बोर्ड है जो एक ही विषय के लगभग 9 अलग-अलग प्रश्नपत्र बनाता है जिनकी 3000 से अधिक पाण्डुलिपियां बनती हैं ताकि किसी स्थान पर “लीक” जैसी समस्या आ भी जाए तो भी अन्य स्थानों पर परीक्षा सुचारु रूप से कराई जा सके।इतने व्यापक पैमाने पर चलने वाले अभियान में चूक की सम्भावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता। यह एकमात्र परीक्षा बोर्ड है जो परीक्षा प्रारम्भ होने से पहले सभी विद्यालयों में प्रश्नपत्रों का एक खाका भेजता है और विद्यालय के प्रधानाचार्य और शिक्षकों से उम्मीद की जाती है कि उस प्रश्नपत्र में अगर उन्हें कोई बात नहीं जंचती या पर्चा मुश्किल लगता है तो वे अपनी प्रतिक्रिया तुरन्त बोर्ड को भेजें। जिन दिन विषय विशेष की परीक्षा होती है उस दिन सुबह बोर्ड में उस विषय के विशेषज्ञों की बैठक होती है जिसमें प्रश्नपत्रों के सभी 9 समूहों को देखा जाता है। मूल्यांकन के समय हम मूल्यांकन की योजना तय करते हैं।कुल मिलाकर क्या यही माना जाए कि प्रश्नपत्र में किसी बिन्दु पर छात्र अटक जाते हैं तो गलती उनकी समझ की है, बोर्ड अपनी जगह सही है?मैं किसी को गलत या सही नहीं कर रहा हूं। मैं तो यथार्थ स्थिति बता रहा हूं।प्रश्नपत्र बनाने वाले शिक्षकों के चयन का मापदण्ड क्या है?हमारे प्रश्नपत्र बनाने वाले शिक्षकों और संचालकों का शैक्षिक स्तर बहुत ऊंचा होता है। ये सामान्यत: वही प्रधानाचार्य अथवा उच्च शिक्षा संस्थाओं के प्रोफेसर होते हैं जिनका अपने विषय पर अधिकार होता है।छात्रों को भारी-भारी बस्ते अपने झुके कंधों पर कब तक टांगने होंगे? पढ़ाई इतनी ज्यादा करनी होती है कि बाल मन समय से पहले कुम्हलाता दिखता है। बोर्ड इस बारे में क्या सोच रहा है?यह एक महत्वपूर्ण विषय है जिस पर गत 3-4 वर्ष में सी.बी.एस.ई. ने गहन विचार-विमर्श किया है। यह सही है कि हम सतत और व्यापक मूल्यांकन की बात करते हैं परन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि हर सप्ताह या पखवाड़े बच्चों को परीक्षा देनी पड़े। हमने सोचा है कि क्यों न कक्षा 8 तक सतत और व्यापक मूल्यांकन की प्रक्रिया चलाएं और कक्षा 9 तथा 10 में अंकों के रूप में होने वाले मूल्यांकन, जिसमें 90 और उससे अधिक प्रतिशत पाने की होड़ लगी हुई है, की दिशा में थोड़ा सुधार किया जाए।हमने विद्यालयों को यह भी कहा है कि कक्षा 2 तक के विद्यार्थी पठन सामग्री (काफी, किताब आदि) विद्यालय में ही रखें। अपने साथ घर से केवल भोजन और खेल सामग्री ही लाएं। सोचा यह भी गया है कि कक्षा 2 तक के बच्चों को किसी तरह का गृहकार्य न दिया जाए। इसके लिए “गृहकार्य के विकल्प” का भी प्रस्ताव हम विद्यालयों को भेजने वाले हैं। हमने लिखित परीक्षा में सुधार करते हुए कक्षा 8 तक परीक्षाफल में सफल (“पास”) या असफल (“फेल”) की संज्ञा से बचने का प्रस्ताव किया है। हम चाहते हैं कि अद्र्धवार्षिक और वार्षिक परीक्षा के आधार पर बच्चों की योग्यता का आकलन न किया जाए। इसलिए कक्षा 5 तक हमने एक प्रारूप विकसित किया है, जिसमें केवल शैक्षिक कौशल ही नहीं, बच्चा अगर कला में या खेलकूद में, संगीत आदि में अच्छा है तो क्यों न उस विधा में भी उसे बढ़ावा दें और उसकी वार्षिक रपट में उसे किसी चिह्न (उदाहरण के लिए ए।) से इंगित करें। यही है सतत और व्यापक मूल्यांकन पद्धति।कुकुरमुत्ते की तरह उगते फर्जी शिक्षण संस्थानों, जो गांरटी के साथ 10वीं या 12वीं करवाते हैं, पर क्या कोई लगाम नहीं कसी जा सकती? क्या भ्रष्टाचार की शुरुआत ऐसे “शिक्षण केन्द्रों” से नहीं होती?शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ती व्यावसायिक प्रवृत्ति चिंता का विषय है। इसी कारण अनेक स्वयंभू शिक्षण संस्थान चल रहे हैं। लेकिन ऐसी फर्जी संस्थाओं को अकेले सी.बी.एस.ई.नहीं रोक सकती, लोगों का भी सहयोग चाहिए।क्या देश में विद्यालयों की कमी के कारण ये विद्यालय नहीं खुल रहे हैं?आज देश में केवल 1 लाख 20 हजार माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हैं जिनमें 14-18 आयु वर्ग के करीब 3 करोड़ बच्चे पढ़ रहे हैं। जबकि देश में 14-18 आयु वर्ग के बच्चों की संख्या 9.7 करोड़ है यानी करीब 6 करोड़ बच्चे अब भी माध्यमिक शिक्षा से वंचित हैं। हमें इस समय 3 लाख माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों की आवश्यकता है।बड़े पैमाने पर परीक्षाएं आयोजित करने वाले इस बोर्ड में लोगों की विश्वसनीयता बनी रहे, इसके लिए क्या आश्वस्ति देंगे?हम तंत्र की स्वच्छता के लिए कड़े उपाय कर रहे हैं। मैं पुन: कहूंगा कि एक व्यक्ति के पकड़े जाने से आप पूरी व्यवस्था को दोष नहीं दे सकते।8
टिप्पणियाँ