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सर्व सांझी यात्रा पर<p style=font-weight:bold;text-

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Aug 8, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Aug 2004 00:00:00

सर्व सांझी यात्रा पर

व्यर्थ में विवाद

श्री गुरुचरण सिंह गिल

नानकशाही तिथि पत्रक के अनुसार आगामी 1 सितम्बर (विक्रमी संवत् के अनुसार 2 सितम्बर) को श्री गुरुग्रंथ साहिब के प्रकाश के 400 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। श्री गुरुग्रंथ साहिब का प्रकाश सर्वत्र फैले, गुरुवाणी का संदेश सब तक पहुंचे और सम्पूर्ण समाज के बीच भाईचारा और अधिक प्रगाढ़ हो, इस निमित्त देश की चारों दिशाओं के पांच प्रमुख स्थानों से “सरब सांझी गुरुवाणी यात्रा” निकाली जानी थी। एक, पांच और छह अगस्त से शुरू होने वाली इन यात्राओं की कुछ अन्य उप यात्राएं भी होनी थीं। सभी यात्राओं के दिल्ली में एकत्र होने के बाद इनका सामूहिक समापन 30 अगस्त को अमृतसर में होना था। परन्तु श्री गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में घुसे कांग्रेसी-वामपंथी तथा अलगाववादी तत्वों को यह नहीं सुहाया। इसलिए इन लोगों ने शोर मचाना शुरू कर दिया। विरोध को देखते हुए श्री अकाल तख्त साहिब की ओर से 23 जुलाई को एक संदेश जारी कर सभी सिख संगतों, सिंह सभाओं को यह निर्देश दिया गया कि वे “सरब सांझी गुरुवाणी यात्रा” को किसी प्रकार का सहयोग न दें। इस संदेश के बाद आयोजन समिति ने इस यात्रा कार्यक्रम को स्थगित कर दिया है।

सूत्रों के अनुसार राष्ट्रीय सिख संगत ने श्री गुरुग्रंथ साहिब का 400वां प्रकाश वर्ष बहुत धूमधाम के साथ मनाने की योजना बनायी थी। इसके लिए सिख संगत के प्रमुख अधिकारियों ने सिख समाज की सभी प्रमुख जत्थेबंदियों और श्री अकाल तख्त साहिब से भी सम्पर्क किया था। सभी से सहमति मिलने के बाद एक आयोजन समिति का गठन किया गया। “श्री गुरुग्रंथ साहिब 400 साला प्रकाश उत्सव कमेटी” नाम से गठित इस आयोजन समिति के संयोजक बने रा.सिख संगत के पूर्व अध्यक्ष सरदार चिरजीव सिंह। व्यापक विचार-विमर्श एवं सहमति के बाद देशभर में “सरब सांझी गुरुवाणी यात्रा” निकालने की घोषणा की गई। इन यात्राओं के लिए पांच विशिष्ट प्रकार के रथ भी तैयार किए गए, जो जयपुर में खड़े हैं।

ये यात्राएं अनेक पंथों और सम्प्रदायों के प्रमुख स्थानों से होकर गुजरने वाली थीं। विशेषकर उन पंथों और सम्प्रदायों के स्थानों को जिनका उल्लेख श्री गुरुग्रंथ साहिब में है। इसके लिए आयोजन समिति तथा यात्रा समिति ने काशी के कबीर मठ (लहरतारा), गुरु रविदास के स्थान शीरगोरधन, काशी स्थित विशिष्ट द्वैत मत के प्रवर्तक रामानन्द जी के स्थान, भक्त जयदेव के स्थान (केंदुली), समर्थगुरु रामदास के स्थान (सतारा) सहित सभी से सम्पर्क किया और सहमति ली। सिख पंथ के भी संत बाबा लक्खा सिंह जी, सेवापंथी बाबा तीरथ सिंह जी, संत बाबा कश्मीरा सिंह जी, संत बाबा अरविन्दानंद जी, नानकसर के बाबा सुखदेव सिंह जी का आशीर्वाद भी इस यात्रा को प्राप्त हुआ था। आयोजन समिति ने इस यात्रा की पूरी योजना बनाकर श्री अकाल तख्त साहिब के समक्ष दिनांक 16 अप्रैल को प्रस्तुत की थी और सहमति प्राप्त होने के बाद यात्रा समिति ने इन यात्राओं की जोर शोर से तैयारी प्रारंभ कर दी। यात्रा मार्ग में आने वाले सभी स्थानों पर स्वागत समितियां गठित हो गईं। गुरुसिंह सभा, सनातन धर्मसभा सहित सभी पंथों की समितियों को उससे जोड़ा गया। यात्रा के स्वागत हेतु स्थानीय समितियों द्वारा धन संग्रह भी प्रारंभ हो गया था।

परन्तु 23 जुलाई को अचानक श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा इस यात्रा को सहयोग न दिए जाने के संदेश से सब ओर निराशा फैल गई। अपने संदेश में श्री अकाल तख्त साहिब ने कहा है कि अनेक सिख संगतों की ओर से यह रोष प्रकट किया गया है कि श्री गुरुग्रंथ साहिब के 400वें प्रकाश वर्ष पर रा.स्व.संघ तथा राष्ट्रीय सिख संगत द्वारा सिख कौम से झूठी हमदर्दी प्रकट करने की यह चाल है और “सरब सांझी गुरुवाणी यात्रा” सिख पंथ के भीतर घुसपैठ करने तथा उसे खोखला करने का आडम्बर मात्र है। इसलिए श्री अकाल तख्त साहिब (अमृतसर) के जत्थेदार श्री जोगिन्दर सिंह वेदांती, तख्त श्री हरमिंदर साहिब (पटना) के जत्थेदार श्री इकबाल सिंह, तख्त श्री दमदमा साहिब (भटिंडा) के जत्थेदार श्री बलवंत सिंह, तख्त श्री केशगढ़ साहिब (रोपड़) के जत्थेदार श्री त्रिलोचन सिंह तथा श्री दरबार साहिब (अमृतसर) के ग्रंथी ज्ञानी गुरुवचन सिंह द्वारा हस्ताक्षरित यह संदेश प्रसारित कर दिया गया कि सभी सिख संगत, सिख सभाएं, सिख संगठन, धार्मिक सभा इस यात्रा एवं आयोजन समिति को किसी प्रकार का सहयोग न दें।

सूत्रों के अनुसार श्री अकाल तख्त साहिब के इस संदेश के बाद यात्रा संचालन समिति के प्रमुख श्री गुरचरण सिंह गिल (जो राष्ट्रीय सिख संगत के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हैं) ने श्री अकाल तख्त साहिब को एक पत्र भी लिखा। पत्र में श्री गिल ने यह विस्तार से बताया था कि आप सभी की सहमति के बाद ही यह कार्यक्रम घोषित किए गए थे। परन्तु अब हमारा पक्ष सुने बिना यात्रा को सहयोग न देने का संदेश जारी कर दिया गया, इस पर पुनर्विचार किया जाए। सूत्रों के अनुसार पत्र में यह भी कहा गया कि यदि आयोजन समिति अथवा यात्राओं के नाम को लेकर कोई आपत्ति हो तो सिंह साहिबान उनमें बदल करने के निर्देश दें, हम उनका पालन करेंगे। पत्र में कहा गया था कि यह यात्राएं पहले ही श्री अकाल तख्त साहिब की कृपा एवं आशीर्वाद से चलाने की योजना थी, अब यदि श्री गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी चाहे तो वह न केवल इन यात्राओं को नेतृत्व करे बल्कि यात्राओं के कार्यक्रम, मर्यादा प्रबंध तथा दानपात्र भी स्वयं संभाल ले, हम उन्हें पूर्ण सहयोग देंगे। पर इस पत्र के बाद भी कोई निर्देश जारी न होता देख यात्रा प्रमुख श्री गुरुचरण सिंह गिल ने श्री अकाल तख्त साहिब को पत्र लिखकर सूचित कर दिया कि तख्त द्वारा जारी संदेश का पूर्ण सम्मान करते हुए वे इस यात्रा को स्थगित कर रहे हैं।

सूत्रों के अनुसार श्री गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी में घुसे वामपंथी और कांग्रेसी सदस्य तथा कुछ अलगाववादी संगठन इस बात को लेकर बेचैन थे कि राष्ट्रीय सिख संगत का सिख समुदाय में प्रभाव बढ़ता जा रहा है। इस यात्रा के द्वारा व्यापक जन सम्पर्क की संभावना को देखने हुए उनकी बेचैनी और बढ़ गई थी, इस कारण उन्होंने यात्रा का विरोध करना शुरू कर दिया। इसे विडम्बना ही कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण समाज के बीच एकात्मता एवं सामाजिक-सांस्कृतिक बंधुत्व को और प्रगाढ़ करने में सहायक सिद्ध होने वाली इस यात्रा को अंतत: स्थगित कर देना पड़ा। इस सम्बंध में पूछे जाने पर यात्रा प्रमुख श्री गुरचरण सिंह गिल ने कहा कि श्री अकाल तख्त साहिब में पूर्ण श्रद्धा व्यक्त करते हुए, उनके निर्देश का पूर्ण सम्मान करते हुए हमने यात्रा स्थगित कर दी है। यात्रा में सहयोग न देने के संदेश के बाद भी यात्रा को चलाए रखने से तनाव बढ़ता। पवित्र श्री गुरुग्रंथ साहिब की उच्च मर्यादा को बनाए रखने के लिए हमने श्री अकाल तख्त साहिब के निर्णय को पूरी विनम्रता से स्वीकार किया है और अब हम श्री गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी द्वारा तैयार किए गए कार्यक्रमों में पूर्ण सहयोग देंगे। श्री गिल ने कहा कि एकात्मता एवं बंधुत्व भाव बढ़ाने, साझी विरासत और संतों की वाणी को प्रसारित करने के जिस उद्देश्य को लेकर हम यह यात्रा प्रारंभ कर रहे थे, उसके अकारण विरोध से हमें बहुत दु:ख पहुंचा है। हम लोग इस यात्रा के माध्यम से 40 पृष्ठों की एक छोटी पुस्तिका जन-जन तक पहुंचाने वाले थे। “गुरु मान्यो ग्रंथ” नामक इस पुस्तिका में श्री गुरुग्रंथ साहिब का संदेश है। हमने अभी तक 60 हजार पुस्तकें वितरित की हैं, लाखों वितरित करने की योजना थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो संगठन समाज के विभिन्न वर्गों को एकसूत्र में बांधे रखने, उनकी सांझी विरासत और सांझी संस्कृति को बनाए रखने के लिए प्रयत्नशील है, कुछ लोग निहित स्वार्थों के कारण उसका विरोध कर रहे हैं। जितेन्द्र तिवारी

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