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आतंकवादियों द्वारा घाटी में पुन: विस्फोटों का सिलसिला,15 जवान और 18 परिजन शहीदफिर सुलगा कश्मीर!!सत्ता पलट के शोर में गुम हुई कश्मीर में जवानों की शहादत-विनीता गुप्ताहा, लाल! फवारा (श्रीनगर) में हुए बम विस्फोट ने दो मासूमों की जीवन लीला समाप्त कर दी। चार वर्षीय सजाद अहमद का शव ले जाते हुए उनके परिजन!बम विस्फोट में ध्वस्त हुई बस के अवशेषों का अवलोकन करते हुए सुरक्षाकर्मी22मई, 2004। नई दिल्ली में राजनीति का पारा तेजी से चढ़ रहा था। 8-9 दिन ऊहापोह के बाद आखिरकार डा. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इधर देश को मिला नया प्रधानमंत्री और नया मंत्रिमंडल, उधर जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों ने सीमा सुरक्षा बल के जवानों और उनके परिजनों को ले जा रही बस को विस्फोट से उड़ाकर नयी सरकार को बता दिया कि उनका घृणित खेल अब भी जारी है। अब इसमें तेजी और आएगी।देश में जब-जब कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ, या देश ने नयी दिशा में कदम बढ़ाया, तब-तब आतंकवादियों ने किसी बड़ी घटना को अंजाम देकर अपनी उपस्थिति और ताकत का अहसास कराया है। चाहे वाजपेयी की लाहौर यात्रा हो या मुर्शरफ का भारत में वार्ता के लिए आना हो। इस बार भी ऐसा ही हुआ। अभी डा. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री पद की शपथ लिए 16 घंटे भी नहीं बीते थे कि आतंकवादियों ने श्रीनगर से जम्मू जा रही सीमा सुरक्षा बल की एक बस को काजीगुंड के पास बारूदी सुरंग में विस्फोट द्वारा उड़ा दिया।विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि बस के परखचे उड़ गए, देखते ही देखते 15 जवानों सहित उनके 18 परिजन काल के गाल में समा गए। दिल्ली में सत्ता पलट का शोर इतना तेज था कि हमारे सुरक्षा प्रहरियों को सपरिवार लील जाने वाले विस्फोट के धमाके उस शोर में कहीं गुम हो गए। मृतकों में 6 महिलाएं व तीन बच्चे थे। ये जवान अपने परिजनों के साथ छुट्टी पर जा रहे थे। आतंकवादियों के निशाने पर सीमा सुरक्षा बल के वाहनों का पूरा काफिला था, जिसमें बसें और ट्रक भी शामिल थे। जैसे ही बस काजीगुंड को पारकर जवाहर सुरंग से कुछ दूरी पर स्थित लोअर मुंड्डा गुलबाग के निकट पहुंची कि जोरदार धमाका हुआ। और बस पास ही खड्ड में गिर गई। धमाका इतना जबरदस्त था कि जिस स्थान पर विस्फोट हुआ, वहां सड़क पर दो मीटर गहरा गड्ढा बन गया। विस्फोट होते ही बस में आग लग गई और कुछ ही देर में बस के ईंधन के टैंक में विस्फोट हुआ और बस में सवार जवान व उनके परिजन लपटों में घिर गए। शव इतनी बुरी तरह जल गए थे कि कई लोगों की पहचान नहीं हो सकी।अगले ही दिन आतंकवादियों ने फिर खूनी खेल खेला और 7 निर्दोष व्यक्तियों को मौत के घाट उतार दिया, जिनमें भारतीय सेना के दो जवान भी शामिल थे। 23 मई की रात आतंकवादी राजौरी जिले के मोहरा सनजोत क्षेत्र में रहने वाले तलाबुद्दीन के घर में घुस गए और सुरक्षा बल का मुखबिर होने की आशंकाओं में अगले दिन उसकी व उसके पुत्र जाकिर हुसैन की हत्या कर दी। इसी दिन हुई एक अन्य घटना में दो आतंकवादी राजौरी जिले में थानामांदी क्षेत्र के कारमोत गांव में फैयाज हुसैन के घर में घुसे और उसकी हत्या कर दी। आतंकवादियों ने सुरनकोट तहसील के हुडासन बाल गांव में कांस्टेबल तनवीर हुसैन का अपहरण कर लिया और बाद में उसकी हत्या कर दी। इसी दिन जम्मू जिले की, अखनूर तहसील के भद्रा तालाब में एक सिपाही का शव मिला। काजीगुंड में विस्फोट के कुछ ही घंटे बाद उधमपुर के लांचा क्षेत्र के गूल माहौर में आतंकवादियों द्वारा किए गए विस्फोट में दो व्यक्ति मंजूर और वजीर मारे गए।इस घटना को दो दिन ही बीते थे कि आतंकवादियों ने बारामूला के अशम कस्बे के एक स्कूल में पढ़ रहे 500 बच्चों को बंधक बना लिया। राष्ट्रीय राइफल्स के एक गश्ती दल पर हमले के बाद आतंकवादियों और राष्ट्रीय राइफल्स के जवानों के बीच मुठभेड़ शुरू हुई। इस मुठभेड़ के बाद आतंकवादी जबरन पास के नूर-उल-इस्लाम हाईस्कूल में घुस गए और एक तरह से वहां पढ़ रहे 500 बच्चों को बंधक बना लिया और गोलीबारी शुरू कर दी। सुरक्षा बल के जवानों ने सूझ-बूझ के साथ आतंकवादियों का मुकाबला किया और सभी बच्चों को स्कूल की इमारत से सुरक्षित निकाला। सुरक्षा बलों की गोलियों से बचने के लिए आतंकवादी एक घर में जबरन जा घुसे और घर में आराम कर रहे एक पुलिसकर्मी अब्दुल मजीद गनई को गोलियों से ढेर कर दिया। इसी दिन श्रीनगर से 80 किलोमीटर दूर कुपवाड़ा जिले के नीलीपोड़ा इलाके में आतकंवादियों के साथ मुठभेड़ में चार सैनिक शहीद हुए जिनमें एक मेजर ए.के. त्रिपाठी भी थे।नई दिल्ली में राजनीतिक अस्थिरता का लाभ आतंकवादियों ने खूब उठाया। इधर दिल्ली में सरकार बनाने के लिए उखाड़-पछाड़ चल रही थी, उधर आतंकवादी अपना रंग दिखा रहे थे। 20 मई को एक ही दिन में पूरे कश्मीर में हुए विभिन्न आतंकवादी घटनाओं में 6 लोगों की मृत्यु हुई और 24 घायल हुए। मृतकों में 3 वर्षीया मासूम सीरत बानो और 5 वर्षीय सज्जाद अहमद खोजा भी थे। बारामूला जिले के चक अरसलाखन और बांदीपुरा में आतंकवादियों ने दो व्यक्तियों की गला रेतकर हत्या कर दी। ये आंकड़े तो झलक मात्र हैं कश्मीर की स्थिति की। ऐसी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं और रक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले दिनों में इनमें लगातार वृद्धि होगी। हालांकि पिछले पांच साल में विभिन्न सफल सैन्य अभियानों के कारण इस प्रकार की घटनाओं में कमी आई थी और सरकार के शांति बहाली के प्रयासों के परिणाम भी दिखाई देने लगे थे। लेकिन आतंकवादी जैसे किसी ऐसे अवसर की तलाश में थे, जब वे अपनी सशक्त मौजूदगी दर्ज करा सकें, और उन्होंने वह दिन चुना 22 मई। नई सरकार के लिए आतंकवादियों की चुनौती। इसे एक चुनौती की तरह स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ जंग में कोई समझौता नहीं होगा। अपने मंत्रिमंडल की पहली बैठक में उन्होंने सीमा सुरक्षा बल के जवानों और उनके परिजनों की हत्या की निंदा करते हुए कहा कि यह हिंसक घटना इस बात का संकेत देती है कि आतंकवाद हमारे देश की अखंडता और प्रगति के लिए कितना बड़ा खतरा बना हुआ है। हम इसका दृढ़ता से मुकाबला करेंगे।शांति का वातावरण चाहे वार्ताओं के माध्यम से बने या सख्त कार्रवाइयों के जरिए, लेकिन आतंकवाद से तंग आ चुके जम्मू-कश्मीरवासी हर हाल में शांतिपूर्ण और सामान्य जीवन जीना चाहते हैं। लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले कुछ महीने हमारे लिए बहुत चुनौती भरे होंगे। नेशनल सिक्योरिटी गार्ड के पूर्व ब्रिगेडियर इंचार्ज लेफ्टिनेंट जनरल शंकर प्रसाद का कहना है, “गर्मी का मौसम होने के कारण कई बर्फीले दर्रे खुल जाएंगे और सीमापार से घुसपैठ का खतरा बढ़ जाएगा। इसलिए हमारी सेना का पहला लक्ष्य होगा घुसपैठ को रोकना। सेना की ग्रीष्म रणनीति भी नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ रोकना है। इसके लिए सीमा पर तैनात सैनिकों की संख्या बढ़ाई गई है। रात्रि दृश्यता उपकरण (नाइट विजन डिवाइस) सर्वेक्षण रडार, रिमोट सेंसर आदि संवेदनशील उपकरणों का प्रयोग भी किया जा रहा है और सीमा पर काफी लम्बी दूरी तक कंटीली बाढ़ भी लगा दी गई है। आतंकवादी गुट भी अपनी पूरी तैयारी में हैं और सीमा पर से घुसपैठ की कोशिश करेंगे। (घुसपैठियों और भाड़े के आतंकवादियों को दबाव बनाते हुए अपने आकाओं को कुछ कर दिखाना है। इसलिए वे ऐसी वारदातें कर सकते हैं। गर्मियों में चूंकि बर्फ पिघल रही है, इसलिए आतंकवादियों की गतिविधियां बढ़ने की पूरी संभावना है। गर्मियों का मौसम कश्मीर में आतंकवादियों के लिए फलने-फूलने का मौसम है, इसे वे “कैम्पेनिंग सीजन” भी कहते हैं। इसलिए उन्हें अपने आकाओं के सामने अपनी क्षमताओं को साबित करना है। चूंकि उन्हें इन कामों के लिए धन मिलता है, इसलिए जान भले ही जाए, लेकिन हिंसा को कार्यरूप देना उनके लिए जरूरी हो जाता है। इसलिए अगले दो महीने हमारे लिए बेहद सावधानी बरतने के हैं। चाहे आतंकवादी कुछ भी सोचें, चाहे भारत और पाकिस्तान की सरकारें सोचें कि माहौल कुछ बदला है, लेकिन सेना ऐसा नहीं सोच सकती। उसके सामने तो आतंकवाद हर दिन, हर रात, हर घंटे के एक भयावह चुनौती की तरह खड़ा है।”इस चुनौती के सम्बंध में रक्षा विशेषज्ञ और इंडियन डिफेंस रिव्यू के सम्पादक कैप्टन (से.नि.) भरत वर्मा कहते हैं,”आतंकवाद से लड़ने के लिए हमें अपनी रणनीति बदलनी होगी और ठोस कदम उठाने होंगे। सिर्फ शांति के सपने देखने से काम नहीं चलेगा। बिना सार्थक शांति के कोरी वार्ताओं का कोई अर्थ नहीं है। ऐसे उपाय हम पहले भी कर चुके हैं, लेकिन ठोस परिणाम नहीं निकला। कभी-कभी शांति के लिए युद्ध भी करना पड़ता है। आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध हमें कई आयामों को देखकर लड़ना होगा। आक्रामक नीतियां बनानी होंगी। यह नहीं चलेगा कि भारत के सीने में बंदूक तानकर पाकिस्तान कहे कि शांति वार्ता करनी है। आज का सच तो यह है कि सीमापार लगभग 3000 आतंकवादी भारत में घुसपैठ के लिए तैयार बैठे हैं, बर्फ पिघलने के इंतजार में। इसलिए हमें बहुत चौकन्ना रहना होगा। क्योंकि आतंकवादियों को बाहर से पूरा समर्थन मिल रहा है। फिर स्थानीय स्तर पर भी युवकों में अलगाववादी और आतंकवादी प्रवृत्ति पनप रही है। युवकों को काम चाहिए। हाथों को काम नहीं मिलेगा तो वे बंदूक उठाने की ओर आसानी से बढ़ंेगे। हमें वहां सामाजिक, आर्थिक विकास की ओर ध्यान देना होगा और बेरोजगारी पर नियंत्रण पाना होगा।”कैप्टन (से.नि.) वर्मा आगे कहते हैं कि ऊपर से देखने में लगता है कि अमरीका आदि के दबाव में पाकिस्तान की ओर से भारत के विरुद्ध आतंकवादी कार्रवाइयों पर लगाम लगाई गई है। सीमापार चल रहे आतंकवादियों के प्रशिक्षण शिविर ध्वस्त कर दिए गए हैं। लेकिन सच यह नहीं है। वहां सभी प्रशिक्षण शिविर ज्यों के त्यों हैं, यह बात अलग है कि उनके “साइन बोर्ड” हटा दिए गए हैं। शिविरों को छिपाकर रखा जा रहा है। और किसी भी दबाव में पाकिस्तानी सेना यदि उन्हें ध्वस्त करती है या उन पर कोई कार्रवाई करती है तो वह खुद परेशानी में पड़ जाएगी।रक्षा विश्लेषक मेजर जनरल (से.नि.) अफसिर करीम काजीगुंड में हुई नृशंस घटना को आतंकवादियों की बौखलाहट का परिणाम मानते हैं। उनका कहना है कि पिछले कुछ महीनों में भारतीय सुरक्षा बलों ने आतंकवादियों के इतने कमांडर मारे हैं कि वे बौखला गए हैं और बदला लेने के लिए इस तरह की हरकतें कर रहे हैं। वहां आतंकवाद पर तब तक काबू पाना मुश्किल है, जब तक कि घाटी में भीतर पल रहे आतंकवाद को समाप्त नहीं कर देते।22 मई की घटना एक झलक मात्र है आगे आने वाले दिनों की। इसके जरिए आतंकवादियों ने अपनी भावी रणनीति का संकेत दे दिया है। और वे तेजी से निर्दोष नागरिकों को अपना निशाना बना रहे हैं। 13 मई को चुनाव परिणाम आने के बाद दस दिन के भीतर जम्मू-कश्मीर में 50 से ज्यादा लोगों को आतंकवादियों ने मौत के घाट उतार दिया। राज्य में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और कांग्रेस गठंबधन वाली सरकार की नीतियां यदि इसी प्रकार की रहीं तो स्थितियां और विकराल रूप धारण कर सकती हैं। जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा आतंकवाद निषेध अधिनियम (पोटा) को पूरी तरह नजरन्दाज किए जाने से भी हालात बिगड़े हैं।इस संदर्भ में उल्लेखनीय है कि नेशनल कांफ्रेंस सरकार के समय पोटा के अंतर्गत 150 मामले दर्ज किए गए थे, लेकिन वर्तमान सरकार ने पुलिस को निर्देश दिया है कि पोटा के अंतर्गत मामले दर्ज न किए जाएं। यही नहीं पोटा के अंतर्गत चल रहे मामलों पर भी सरकार ने ध्यान नहीं दिया। इस कारण भीषण नरसंहारों और बम विस्फोटों के अपराधी छूट गए। इसमें राजीव नगर में 30 निर्दोष लोगों की हत्या करने वाले आतंकवादी भी छूट गए। छूटने वालों में एक पाकिस्तान का नागरिक भी है, जिस पर पोटा के अंतर्गत मामला चल रहा था। इन्हें सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत नजरबंद कर दिया गया है। नियम के अनुसार पोटा के तहत जिसे गिरफ्तार किया जाता है, तीन महीने में उसके विरुद्ध आरोपपत्र दाखिल कर दिया जाता है। सरकार ने इस संदर्भ में लापरवाही बरती, जिसके चलते आतंकवादियों के हौंसले बुलन्द हुए।इस संबंध में राज्य सरकार की एक नीति का उल्लेख करना भी आवश्यक है। इस नीति के अनुसार जो भी आतंकवादी आत्मसमर्पण करेगा, उसे हर महीने 2,000 रुपए भत्ते के रूप में दिए जाएंगे। यही नहीं सावधि जमा राशि के रूप में उसे डेढ़ लाख रुपए दिये जाएंगे। ऐसा किया भी जा रहा है। जबकि दिन-रात आतंकवादियों से जूझने वाले विशेष पुलिस अधिकारी को सिर्फ 1500 रुपया प्रतिमाह ही दिया जा रहा है। यदि आतंकवाद पर पूर्ण नियंत्रण पाना है, और यह सुनिश्चित करना है कि इस प्रकार की नृंशस घटनाएं न हों, तो हमें बहुआयामी रणनीति तैयार करनी होगी।5
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