हिन्दू ऐक्य वेदी के महासचिव कुम्मनम राजशेखरन ने कहा- दिंनाक: 12 May 2004 00:00:00 हिन्दू ऐक्य वेदी के महासचिव कुम्मनम राजशेखरन ने कहा- जबरन मतान्तरण एक तरह की हिंसा है गत दिनों केरल में कालीकट के ओलावन्ना क्षेत्र में "मिशनरीज आफ चेरिटी" की ननों और स्थानीय जनता के बीच हिंसक झड़प हो गई थी। सेकुलर पत्र-पत्रिकाओं ने इस पर हंगामा खड़ा कर दिया और कहा कि "यह संघ परिवार का ईसाइयत पर हमला है।" अंग्रेजी अखबारों ने इस घटना को सभी भारतीयों के लिए चिंताजनक बताया। इस पृष्ठभूमि में हमने केरल के हिन्दू ऐक्य वेदी संगठन के महासचिव श्री कुम्मनम राजशेखरन से बातचीत की। प्रस्तुत हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश- -प्रदीप कुमार ओलावन्ना में कटी घटना की सचाई क्या है? ओलावन्ना में ननों पर जहां हमला हुआ, वहां पिछले तीन वर्षों से ईसाई मत प्रचारक अपनी गतिविधियां चला रहे हैं। हरिजन बस्ती ओलावन्ना "मिशनरीज आफ चेरिटी" के निशाने पर रही है। उन्होंने भारत भर में गरीबों की करीब 30 बस्तियां चुनी हैं। पिछले तीन वर्षों से इस क्षेत्र के लोग मिशनरीज की मंशा के बारे में सवाल उठा रहे हैं। स्थानीय लोगों ने मांग थी कि सेवा की आड़ में लोगों का मत परिवर्तन नहीं करना चाहिए। 25 सितम्बर को भी मिशनरीज के कार्यकर्ता बस्ती में गए और उन्होंने लोगों को अपने आने का उद्देश्य बताया। इस पर स्थानीय लोगों की उनसे बहस हो गई। परिणामत: उनमें हाथापाई हुई। लेकिन लोगों के मन में उठती आशंकाओं का समाधान करने की बजाय ननों ने बात को एक बड़ा मुद्दा बना दिया। शायद इसलिए कि उन्हें इस संबंध में राजनीतिक समर्थन मिलने का भरोसा था। उन्होंने कालीकट के अपने स्थानीय कार्यालय स्नेह भवन में टेलीफोन किया। पंद्रह मिनट के अंदर ननों का एक और बड़ा गुट वहां आ पहुंचा। तब तक करीब 100 स्थानीय लोग भी वहां एकत्र हो चुके थे। उन्होंने बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने पर ननों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन किया। इसकी प्रतिक्रियास्वरूप ननों ने जो कहा, उससे मामला हाथ से निकल गया। ननों ने घोषणा की कि वे चाहे करने या प्रचार करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं। उनसे प्रश्न करने का अधिकार किसी को नहीं है। ननों के दूसरे गुट के साथ आए ब्रादर बर्नार्ड ने, जो केन्या निवासी हैं, जब स्थानीय लोगों के साथ गाली-गलौज शुरू की तब लोगों ने भी उसका प्रतिकार किया। बात बढ़ गई। ननों पर हुए हमले को क्या आप सही ठहराते हैं? हम इस घटना की भत्र्सना करते हैं। हिंसा किसी समस्या का हल नहीं हो सकती। हमें पूरा विश्वास है कि लोकतांत्रिक तरीकों से हम मतान्तरण की सामाजिक बुराई का विरोध कर सकते हैं। मतान्तरण के विरुद्ध हम विरोध प्रदर्शन, मोर्चा आदि निकालेंगे। ओलावन्ना की उस घटना के लिए "मिशनरीज" की नन ही तरह जिम्मेदार हैं। क्या ओलावन्ना में वास्तव में मतान्तरण की कोई घटना हुई थी? मिशनरीज वाले अगर अपने कहे के प्रति गंभीर हैं तो मतान्तरण को अपराध ठहराने वाले कानून के बनने पर उन्हें आपत्ति क्यों है? जब तमिलनाडु सरकार ने मतान्तरण पर रोक लगाने वाला अध्यादेश पेश किया था तब मिशनरीज ने उस सरकार को बर्खास्त करने की मांग क्यों की थी? गरीब और जरूरतमंत लोगों की मदद करना ही अगर उनका उद्देश्य है तो अपने उपनियम में उन्होंने क्यों घोषित किया है कि उनका अंतिम लक्ष्य ईसाईकरण करना है? इसीलिए, ओलावन्ना में भी उनका उद्देश्य स्थानीय लोगों का मतान्तरण करना ही था। गौर करने की बात है कि इस बस्ती की पंचायत पर माकपा का अधिकार है। यह बात भी सही है कि संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा और वाम लोकतांत्रिक मोर्चा गरीब लोगों के विकास की योजनाएं बनाने में असफल रहे हैं। बड़े-बड़े दावों के साथ शुरू की गर्इं योजनाएं बुरी तरह असफल रहीं और गरीब, गरीब ही रहे। इस बस्ती के 105 परिवारों के लिए पीने के पानी तक की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। उनके झोंपड़े रिसते हैं और आवाजाही के लिए सड़कें भी नहीं हैं। इन सभी प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करना सरकार का काम है। हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन संसाधनों के अभाव के बावजूद जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं। गरीबों की कोई मदद करना चाहे तो हमें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन मदद की आड़ में उनका मतान्तरण करने का हम विरोध करते हैं। हमें लगता है कि किसी का मतान्तरण करने के उद्देश्य से की गई "सेवा" एक तरह की हिंसा ही है, क्योंकि यह व्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। कहा जाता है कि केरल में अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं। इस बारे में आपकी क्या राय है? कई बार भी छिट-पुट स्थानीय घटनाओं, जिनका मत-पंथ से कोई लेना-लेना नहीं होता, को भी बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है ताकि हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों पर दोषारोपण किया जा सके। अल्पसंख्यकों के साथ घटने वाली छोटी से छोटी घटना को भी माक्र्सवादी निश्चित उद्देश्य से किए गए हमले बताते हैं। वे हिन्दुओं और ईसाइयों के बीच खाई पैदा करना चाहते हैं। सांप्रदायिक वैमनस्य की आग में माक्र्सवादी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना चाहते हैं। अल्पसंख्यकों पर तथाकथित हमले की कई घटनाएं जांच के बाद स्थानीय समस्याएं साबित हुई हैं, जिनका मत-पंथ से कोई लेना-देना नहीं था। हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों ने केन्या के नागरिक ब्रादर बर्नार्ड की गिरफ्तारी की मांग की है, जबकि उनका आव्रजन (वीसा) 2005 तक वैध है। ऐसे में क्या किया जाना चाहिए? केन्या जैसे अविकसित और अपेक्षाकृत निर्धन देश का व्यक्ति भारत में आकर अनाज और वस्त्र क्यों बांटेगा? केन्या के प्रथम राष्ट्राध्यक्ष जोमो केन्याटा ने कहा था, "हमारे देश में बाइबिल लेकर ईसाई मत प्रचारक आए। उन्होंने हमसे आंखें बंद कर प्रार्थना करने के लिए कहा। हमने जब आंखें खोलीं तो उनके हाथ की बाइबिल हमारे हाथ में थी और हमारी जमीन उनकी हो चुकी थी!" मतान्तरण के पीछे छिपी क्रूरता का वह वर्णन कर रहे थे। ईसाई संस्थाओं का दावा है कि वे पूरे एशिया का ईसाईकरण करेंगे। इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द उनकी गतिविधियां केन्द्रित रहती हैं। इसी उद्देश्य से ब्रादर वर्नार्ड वहां आए थे और स्थानीय लोगों को उन्होंने अपने व्यवहार से उत्तेजित किया। इसीलिए हम उनकी गिरफ्तारी की मांग की है। 30
हिन्दू ऐक्य वेदी के महासचिव कुम्मनम राजशेखरन ने कहा- दिंनाक: 12 May 2004 00:00:00 हिन्दू ऐक्य वेदी के महासचिव कुम्मनम राजशेखरन ने कहा- जबरन मतान्तरण एक तरह की हिंसा है गत दिनों केरल में कालीकट के ओलावन्ना क्षेत्र में “मिशनरीज आफ चेरिटी” की ननों और स्थानीय जनता के बीच हिंसक झड़प हो गई थी। सेकुलर पत्र-पत्रिकाओं ने इस पर हंगामा खड़ा कर दिया और कहा कि “यह संघ परिवार का ईसाइयत पर हमला है।” अंग्रेजी अखबारों ने इस घटना को सभी भारतीयों के लिए चिंताजनक बताया। इस पृष्ठभूमि में हमने केरल के हिन्दू ऐक्य वेदी संगठन के महासचिव श्री कुम्मनम राजशेखरन से बातचीत की। प्रस्तुत हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश- -प्रदीप कुमार ओलावन्ना में कटी घटना की सचाई क्या है? ओलावन्ना में ननों पर जहां हमला हुआ, वहां पिछले तीन वर्षों से ईसाई मत प्रचारक अपनी गतिविधियां चला रहे हैं। हरिजन बस्ती ओलावन्ना “मिशनरीज आफ चेरिटी” के निशाने पर रही है। उन्होंने भारत भर में गरीबों की करीब 30 बस्तियां चुनी हैं। पिछले तीन वर्षों से इस क्षेत्र के लोग मिशनरीज की मंशा के बारे में सवाल उठा रहे हैं। स्थानीय लोगों ने मांग थी कि सेवा की आड़ में लोगों का मत परिवर्तन नहीं करना चाहिए। 25 सितम्बर को भी मिशनरीज के कार्यकर्ता बस्ती में गए और उन्होंने लोगों को अपने आने का उद्देश्य बताया। इस पर स्थानीय लोगों की उनसे बहस हो गई। परिणामत: उनमें हाथापाई हुई। लेकिन लोगों के मन में उठती आशंकाओं का समाधान करने की बजाय ननों ने बात को एक बड़ा मुद्दा बना दिया। शायद इसलिए कि उन्हें इस संबंध में राजनीतिक समर्थन मिलने का भरोसा था। उन्होंने कालीकट के अपने स्थानीय कार्यालय स्नेह भवन में टेलीफोन किया। पंद्रह मिनट के अंदर ननों का एक और बड़ा गुट वहां आ पहुंचा। तब तक करीब 100 स्थानीय लोग भी वहां एकत्र हो चुके थे। उन्होंने बहुसंख्यक समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने पर ननों के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन किया। इसकी प्रतिक्रियास्वरूप ननों ने जो कहा, उससे मामला हाथ से निकल गया। ननों ने घोषणा की कि वे चाहे करने या प्रचार करने के लिए पूरी तरह स्वतंत्र हैं। उनसे प्रश्न करने का अधिकार किसी को नहीं है। ननों के दूसरे गुट के साथ आए ब्रादर बर्नार्ड ने, जो केन्या निवासी हैं, जब स्थानीय लोगों के साथ गाली-गलौज शुरू की तब लोगों ने भी उसका प्रतिकार किया। बात बढ़ गई। ननों पर हुए हमले को क्या आप सही ठहराते हैं? हम इस घटना की भत्र्सना करते हैं। हिंसा किसी समस्या का हल नहीं हो सकती। हमें पूरा विश्वास है कि लोकतांत्रिक तरीकों से हम मतान्तरण की सामाजिक बुराई का विरोध कर सकते हैं। मतान्तरण के विरुद्ध हम विरोध प्रदर्शन, मोर्चा आदि निकालेंगे। ओलावन्ना की उस घटना के लिए “मिशनरीज” की नन ही तरह जिम्मेदार हैं। क्या ओलावन्ना में वास्तव में मतान्तरण की कोई घटना हुई थी? मिशनरीज वाले अगर अपने कहे के प्रति गंभीर हैं तो मतान्तरण को अपराध ठहराने वाले कानून के बनने पर उन्हें आपत्ति क्यों है? जब तमिलनाडु सरकार ने मतान्तरण पर रोक लगाने वाला अध्यादेश पेश किया था तब मिशनरीज ने उस सरकार को बर्खास्त करने की मांग क्यों की थी? गरीब और जरूरतमंत लोगों की मदद करना ही अगर उनका उद्देश्य है तो अपने उपनियम में उन्होंने क्यों घोषित किया है कि उनका अंतिम लक्ष्य ईसाईकरण करना है? इसीलिए, ओलावन्ना में भी उनका उद्देश्य स्थानीय लोगों का मतान्तरण करना ही था। गौर करने की बात है कि इस बस्ती की पंचायत पर माकपा का अधिकार है। यह बात भी सही है कि संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा और वाम लोकतांत्रिक मोर्चा गरीब लोगों के विकास की योजनाएं बनाने में असफल रहे हैं। बड़े-बड़े दावों के साथ शुरू की गर्इं योजनाएं बुरी तरह असफल रहीं और गरीब, गरीब ही रहे। इस बस्ती के 105 परिवारों के लिए पीने के पानी तक की सुविधा भी उपलब्ध नहीं है। उनके झोंपड़े रिसते हैं और आवाजाही के लिए सड़कें भी नहीं हैं। इन सभी प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करना सरकार का काम है। हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन संसाधनों के अभाव के बावजूद जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं। गरीबों की कोई मदद करना चाहे तो हमें कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन मदद की आड़ में उनका मतान्तरण करने का हम विरोध करते हैं। हमें लगता है कि किसी का मतान्तरण करने के उद्देश्य से की गई “सेवा” एक तरह की हिंसा ही है, क्योंकि यह व्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला है। कहा जाता है कि केरल में अल्पसंख्यकों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं। इस बारे में आपकी क्या राय है? कई बार भी छिट-पुट स्थानीय घटनाओं, जिनका मत-पंथ से कोई लेना-लेना नहीं होता, को भी बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है ताकि हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों पर दोषारोपण किया जा सके। अल्पसंख्यकों के साथ घटने वाली छोटी से छोटी घटना को भी माक्र्सवादी निश्चित उद्देश्य से किए गए हमले बताते हैं। वे हिन्दुओं और ईसाइयों के बीच खाई पैदा करना चाहते हैं। सांप्रदायिक वैमनस्य की आग में माक्र्सवादी अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकना चाहते हैं। अल्पसंख्यकों पर तथाकथित हमले की कई घटनाएं जांच के बाद स्थानीय समस्याएं साबित हुई हैं, जिनका मत-पंथ से कोई लेना-देना नहीं था। हिन्दुत्वनिष्ठ संगठनों ने केन्या के नागरिक ब्रादर बर्नार्ड की गिरफ्तारी की मांग की है, जबकि उनका आव्रजन (वीसा) 2005 तक वैध है। ऐसे में क्या किया जाना चाहिए? केन्या जैसे अविकसित और अपेक्षाकृत निर्धन देश का व्यक्ति भारत में आकर अनाज और वस्त्र क्यों बांटेगा? केन्या के प्रथम राष्ट्राध्यक्ष जोमो केन्याटा ने कहा था, “हमारे देश में बाइबिल लेकर ईसाई मत प्रचारक आए। उन्होंने हमसे आंखें बंद कर प्रार्थना करने के लिए कहा। हमने जब आंखें खोलीं तो उनके हाथ की बाइबिल हमारे हाथ में थी और हमारी जमीन उनकी हो चुकी थी!” मतान्तरण के पीछे छिपी क्रूरता का वह वर्णन कर रहे थे। ईसाई संस्थाओं का दावा है कि वे पूरे एशिया का ईसाईकरण करेंगे। इसी मुद्दे के इर्द-गिर्द उनकी गतिविधियां केन्द्रित रहती हैं। इसी उद्देश्य से ब्रादर वर्नार्ड वहां आए थे और स्थानीय लोगों को उन्होंने अपने व्यवहार से उत्तेजित किया। इसीलिए हम उनकी गिरफ्तारी की मांग की है। 30
यहां/नीचे/दिए गए स्थान पर पोस्ट की गई टिप्पणियां पाञ्चजन्य की ओर से नहीं हैं। टिप्पणी पोस्ट करने वाला व्यक्ति पूरी तरह से इसकी जिम्मेदारी के स्वामित्व में होगा। केंद्र सरकार के आईटी नियमों के मुताबिक, किसी व्यक्ति, धर्म, समुदाय या राष्ट्र के खिलाफ किया गया अश्लील या आपत्तिजनक बयान एक दंडनीय अपराध है। इस तरह की गतिविधियों में शामिल लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
टिप्पणियाँ