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पाठकीय

by
May 12, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 May 2004 00:00:00

अंक-संदर्भ, 7 नवम्बर, 2004

पञ्चांग

संवत् 2061 वि.

वार

ई. सन् 2004

मार्गशीर्ष कृष्ण 8

रवि

5 दिसम्बर

,, ,, 9

सोम

6 दिसम्बर

,, ,, 10

मंगल

7 दिसम्बर

,, ,, 11

बुध

8 दिसम्बर

,, ,, 12

गुरु

9 दिसम्बर

,, ,, 13

शुक्र

10 दिसम्बर

,, ,, 14

शनि

11 दिसम्बर

महंगी पड़ सकती है नरमी

“आप लड़ो माओवादियों से और हम उन्हें सहारा देंगे”, रपट केन्द्र सरकार की ढुलमुल नीति को उजागर करती है। मंथन स्तम्भ के अन्तर्गत श्री देवेन्द्र स्वरूप का आलेख “तथ्य एक नहीं, केवल गालियां” भी सोचने पर विवश करता है। लगता है 1967 के चुनाव के बाद जो स्थिति प. बंगाल में हुई थी, वैसी ही स्थिति वहां पुन: पैदा हो रही है। 70 के दशक में जब माकपा सशस्त्र क्रांति की राह छोड़कर गणतांत्रिक प्रणाली से सत्ता में आई थी तो माओवादियों ने इसका घोर विरोध किया था। प. बंगाल में भय का वातावरण था। कई लोग मारे जा चुके थे। शाम होते ही लोग अपने-अपने घरों में दुबक जाते थे। यानी इन माओवादियों को जनतांत्रिक प्रणाली पर तनिक भी विश्वास नहीं है। इस स्थिति में आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा पीपुल्स वार ग्रुप पर लगा प्रतिबंध हटा लेने से कई प्रकार प्रकार के प्रश्न उठ खड़े हुए हैं। इसलिए केन्द्र सरकार को इस सम्बंध में बहुत सोच-विचार कर कदम उठाना चाहिए।

-हरि सिंह महतानी

89/7, पूर्वी पंजाबी बाग, नई दिल्ली

पुरस्कृत पत्र

मंदिर कब्जाने का षड्यंत्र

दक्षिण भारत के कुछ प्रान्तों में स्थानीय सरकारों ने बड़े पैमाने पर मंदिरों को अपने नियंत्रण में लेना शुरू कर दिया है। इसका सबसे दुखद पहलू आंध्र प्रदेश में देखने को मिल रहा है। तिरुमला स्थित हाथीराम जी मठ और तिरुमला तिरुपति देवस्थानम की जमीनों के अधिग्रहण के सम्बंध में आंध्र प्रदेश सरकार को सफाई देनी चाहिए। यहां के प्राचीन एक हजार स्तम्भ वाले मंडप को तोड़ने सम्बन्धी समाचार भी सुनने में आए हैं। हिन्दू धर्म के स्वाभाविक विकास के लिए मंदिरों का सांस्कृतिक और सामाजिक संस्था के रूप में कार्य करते रहना बहुत जरूरी है। परन्तु जिस प्रकार आंध्र प्रदेश सरकार ने मंदिरों के अधिग्रहण की परंपरा आरम्भ की है, वह निश्चय ही परोक्ष रूप से हिन्दू धर्म पर आक्रमण है।

मंदिरों की करीब 3.5 लाख एकड़ भूमि आंध्र प्रदेश सरकार के नियंत्रण में है। कहा जा रहा है कि आंध्र प्रदेश सरकार मंदिरों की आय का 85 प्रतिशत राजकोष में जमा करती है। साथ ही मंदिरों की 188 एकड़ जमीन नक्सलियों में वितरित की गई है। इन सबके पीछे राज्य सरकार की मंशा “सामाजिक न्याय लागू करने” की है। सरकार का मानना है कि मंदिर की अतिरिक्त भूमि भूमिहीनों में वितरित की जाए। यह प्रस्ताव निश्चय ही सराहनीय है उस अवस्था में, जब इसमें हिन्दुओं के विरुद्ध ज्यादती न हो। अनेक राज्यों में तो मंदिरों के चढ़ावे से प्राप्त होने वाली राशि का उपयोग मदरसों और चर्चों के विकास के लिए किया जा रहा है। मंदिर कभी भी सामाजिक न्याय को लागू करने की दिशा में बाधक नहीं बने हैं वरन् सामाजिक समरसता के निर्माण में सकारात्मक भूमिका ही निभाई है। मंदिरों की आय का साधन उनकी जमीन है। उनका अधिग्रहण तो सीधे-सीधे पूजा को प्रभावित करने जैसा है। इन मंदिरों की भूमि का अधिग्रहण कर लिया तो ये मंदिर आर्थिक रूप से खस्ताहाल हो जाएंगे। यह अजीब बात है कि देश की पंथनिरपेक्ष व्यवस्था में सर्वाधिक आस्था दिखाने वाले राजनीतिक दल की सरकार पंथनिरपेक्षता के स्वरूप का पूरा पालन नहीं कर रही है। जहां एक ओर देश में हज यात्रियों के लिए सरकार प्रतिवर्ष दो सौ करोड़ रु. की सब्सिडी वहन करती है, वहीं मंदिरों को अधिग्रहीत कर हिन्दुओं के साथ अन्याय कर रही है।

कैसी विडम्बना है कि देश में मुस्लिमों और ईसाइयों से जुड़ी विभिन्न संस्थाएं विदेशों से सहायता प्राप्त करने के बाद भी पूर्ण रूप से स्वतंत्र हैं, वहीं हिन्दुओं के मंदिरों पर प्रशासनिक नियंत्रण कसा जा रहा है। मंदिरों का अधिग्रहण करने की प्रवृत्ति सम्पूर्ण देश में देखी जा रही है। प्रत्येक राज्य के बड़े मंदिरों के प्रबंधन को सत्तारूढ़ दल अपने कार्यकर्ताओं को समायोजित करने के एक प्रयास के रूप में लेते हैं। इसी प्रकार कई स्थानों पर ऐसे उदाहरण भी देखने को मिले हैं, जहां मंदिर की प्रबंध समिति का नेतृत्व गैरहिन्दू करते हैं। संसद ने 1991 में पूजा स्थल अधिनियम पारित किया था जिसके अनुसार देश के सभी उपासना स्थलों को 15 अगस्त, 1947 की स्थिति में ही रखने का निर्णय लिया गया था। मंदिरों के अधिग्रहण से संसद के इस कानून का उल्लंघन होता दिखता है। पंथनिरपेक्षता की मूल भावना का आदर करते हुए मंदिरों का पूरा भार हिन्दुओं की किसी स्वायत्त संस्था को सौंप दिया जाना चाहिए। हां, उससे यह अपेक्षा जरूर हो कि उसके प्रशासन और आय-व्यय के विवरण में पूरी पारदर्शिता रखी जाय।

-अमिताभ त्रिपाठी

संकट मोचन आश्रम, सेक्टर-6, रामकृष्णपुरम, नई दिल्ली

——————————————————————————–

हर सप्ताह एक चुटीले, हृदयग्राही पत्र पर 100 रु. का पुरस्कार दिया जाएगा।सं.

हमें भी विश्वास है

भाजपा पुन: एक ताकत बनकर उभरेगी, इसमें कोई शक नहीं है। उल्लेखनीय है कि जनसंघ के दीपक को बुझाने के लिए कितने लोगों ने प्रयास किए थे फिर भी वे लोग सफल नहीं हुए थे। दिनों-दिन उसकी लौ तेज होती गई और उसी आधार पर भाजपा आज यहां तक पहुंची है। हालांकि समय के साथ कुछ उतार-चढ़ाव होता रहता है। फिर भी मुझे विश्वास है कि भाजपा का कमल अवश्य खिलेगा।

-सुरेन्द्र शर्मा

नसीराबाद (राजस्थान)

भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद पर श्री लालकृष्ण आडवाणी के आने से भाजपा के कार्यकर्ताओं में उत्साह बढ़ा है, इसमें कोई शक नहीं। श्री आडवाणी ने राष्ट्रीय परिषद् की बैठक में कहा कि कांग्रेसी भ्रष्टाचारी होते हुए भी चुनाव जीत जाते हैं, जबकि हमारे प्रत्याशी हार जाते हैं, इसके लिए व्यवहार-कुशल होने की आवश्यकता है। आडवाणी जी की यह बात तो शत-प्रतिशत सही है, परन्तु दु:ख इस बात का है कि ये सब बातें सत्ता से हटने के बाद याद आती हैं।

-वीरेन्द्र सिंह जरयाल

5809, सुभाष मोहल्ला – 2,

गांधी नगर, दिल्ली

एकदम सटीक

सम्पादकीय “भाजपा का परीक्षा-पर्व” सटीक लगा। आम चुनावों और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में मिली हार ने भाजपा को आत्मविश्लेषण का रास्ता दिखाया है। उसके कुछ नेताओं को इस सबसे सबक लेना चाहिए। नए अध्यक्ष श्री आडवाणी ने निराश और हतोत्साहित नेताओं के मन की स्थिति को समझ लिया है और अब शायद वे सर्वप्रथम इन्हीं कार्यकर्ताओं को नये सिरे से गतिशील बनाने को प्राथमिकता देंगे। साथ ही यह टिप्पणी एकदम सही है कि अब बंगलों और होटलों में बैठकर निर्णय लेने से अच्छा है, मैदानी कसरत की जाए। पार्टी के अस्तित्व के लिए यह नितांत आवश्यक है।

-दीपक नाईक

14, विद्युत नगर, हरनियाखेड़ी (म.प्र.)

आतंकवाद और मुस्लिम

कई समाचार पत्रों में पढ़ने को मिला कि अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार और वर्तमान राष्ट्रपति जार्ज बुश की हार के लिए कुछ कट्टरवादी मुस्लिमों ने भरसक कोशिश की। यह सब शायद इसलिए हुआ क्योंकि श्री बुश ने स्वयं आतंकवाद पर शिकंजा कसने का प्रयास किया और इस सम्बंध में पाकिस्तान को कई बार कार्रवाई करने के लिए बाध्य भी किया। मुस्लिमों का यह कदम आतंकवाद के प्रति उनकी सोच को उजागर करता है।

-रमाकान्त गुप्ता

मिलिट्री कैम्प, जूही, कानपुर (उ.प्र.)

वे हाशिए पर क्यों?

मुजफ्फर हुसैन के आलेख “यही है इनका सेकुलरवाद” में सही है कहा गया है कि आजादी के पूर्व और आजादी के बाद भी हमारे राष्ट्रवादी मुसलमान हाशिये पर हैं। इनकी गलती बस इतनी है कि ये भारत को अपनी धरती और भारत के विकास को ही अपनी इज्जत समझते हैं। लेकिन दु:ख की बात यह है कि हमारे सेकुलरवादियों और उलेमाओं को यही बात सांप्रदायिक और गैर-इस्लामी लगती है। संभवत: इनकी नजर में वही व्यक्ति सच्चा मुसलमान है जो भारत के प्रति विषवमन करता हो।

-शक्तिरमण कुमार प्रसाद

श्रीकृष्णनगर, पथ सं. 17,

पटना (बिहार)

रेल मंत्री लालू यादव द्वारा बहादुरशाह जफर को साम्प्रदायिक कहना पूर्णतया गलत है। बहादुरशाह जफर ने साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए गो-हत्या बन्द करवाई थी। यहां तक कि वे ईद के अवसर पर गाय-बैल, भैस और भैसों की गणना करवाते थे- यह जानने के लिए कि कहीं किसी ने उनकी हत्या तो नहीं की है।

-रजत कुमार

278, भूड़, बरेली (उ.प्र.)

राजनेताओं के शाही खर्चे

सत्ता परिवर्तन के बाद महंगाई काफी बढ़ी है। राजनेता यदि अपने शाही खर्चों में सुधार कर लें तो कुछ राहत हो सकती है। इससे जनसाधरण को भी प्रेरणा मिलेगी।

-लखन लाल गुप्ता

आसनसोल (प. बंगाल)

संस्कृत से ही बचेगी संस्कृति

पाञ्चजन्य (17 अक्तूबर) में “अजहरुद्दीन और सद्दाम गुनगुनाते हैं संस्कृत श्लोक”, पढ़कर बड़ा आनन्द हुआ। आज के परिवेश में मुसलमानों व ईसाइयों द्वारा संस्कृत पढ़ना एक आश्चर्य की बात है। संस्कृत भारती द्वारा संस्कृत भाषा को जनभाषा अथवा सम्पर्क भाषा के रूप में स्थापित करने का सराहनीय कार्य चल रहा है। देशभर में अनेक संस्कृत विद्यालय/महाविद्यालय हैं, वे भी संस्कृत के प्रचार-प्रसार में अमूल्य योगदान दे रहे हैं।

भारत में, विशेषकर सुदूर पूर्वोत्तर राज्यों में ईसाई मिशनरियों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। उनके शिक्षण संस्थानों में बहुत बड़ी संख्या में हिन्दू छात्र पढ़ते हैं। वहां पर ईसाई संस्कार दिए जाते हैं, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत को खोखलाकर रहे हैं। यह एक चिंताजनक स्थिति है। इसी परिस्थिति में मणिपुर के चारहजारे गांव में सनातन संस्कृत विद्यालय चल रहा है। यहां प्रथमा तक की पढ़ाई होती है। कुल 360 छात्र-छात्राएं हैं, जिनमें 30 छात्र-छात्राएं अनुसूचित जनजाति की हैं। यहां सभी कक्षाओं में संस्कृत के साथ आधुनिक विषयों का अध्ययन-अध्यापन होता है। संस्कृत में विज्ञान है। पाणिनी द्वारा रचित अष्टाध्यायी को विज्ञान का प्रारम्भ मान सकते हैं। भारतीय संस्कृति के संरक्षण एवं संवद्र्धन के लिए संस्कृत भाषा की उन्नति और प्रयोग दोनों ही अत्यावश्यक हैं।

-रमेश खतिवडा

ग्रा. – चारहजारे, पो. -मोलवुंग,

जि. सेनापति, मणिपुर-795107

षड्यंत्र के शिकार

हत्या के आरोप में, फंसे शंकराचार्य

कैसा अजब विधान है, कैसा है यह न्याय?

कैसा है यह न्याय, हिन्दू किस दिन जागेगा

अपने अपमानों का कब हिसाब मांगेगा?

कह “प्रशांत” इसके पीछे षड्यन्त्र बड़े हैं

तमिलनाडु की राजनीति के सब पचड़े हैं।।

-प्रशांत

सूक्ष्मिका

प्रलोभन

प्रलोभन की

थपकियां देकर, हमें वे

टूटी खाट पर

सुलाते हैं

और…

आश्वासन के प्याले में

शोषण की शराब-

पिलाते हैं।

-डा. गोविन्द “अमृत”

स्टेशन रोड, पो. -पेन्ड्रारोड, जिला-बिलासपुर-495117

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