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पूज्य शंकराचार्य की ससम्मान रिहाई तक
संत करेंगे देशव्यापी आन्दोलन
कांची कामकोटी पीठ के शंकराचार्य स्वामी जयेन्द्र सरस्वती जी की गिरफ्तारी के विरोध में देश के संत समाज में व्याप्त असंतोष गत 21 नवम्बर को धिक्कार सभा में व्यक्त हुआ। सभा में देश के कोने-कोने से आए संतों ने इस अन्याय के विरुद्ध संयुक्त संघर्ष समिति बनाने की घोषणा की और कहा कि पूरे देश में नगर स्तर पर तब तक आंदोलन चलाया जाएगा जब तक शंकराचार्य जी पर लगाए गए झूठे आरोप वापस लेकर उन्हें ससम्मान मुक्त नहीं कर दिया जाता।
धिक्कार सभा का आयोजन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद्, अ.भा. संत समाज तथा इन्द्रप्रस्थ विश्व हिन्दू परिषद् ने संयुक्त रूप से किया था। लाल किले के सामने गौरी शंकर मंदिर पर धिक्कार सभा से पूर्व संतों ने रामलीला मैदान से रोष यात्रा भी निकाली।
शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी के विरुद्ध किए जा रहे आंदोलन को विश्व हिन्दू परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व भाजपा द्वारा दिए गए समथर्न में राजनीति ढूंढने वालों को कड़ा जवाब देते हुए अखाड़ा परिषद् के महामंत्री महंत परमानंद सरस्वती ने कहा कि हम तो इसका नेतृत्व सोनिया गांधी को सौंपना चाहते थे, परन्तु शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी के बाद उन्होंने मौन साध लिया, जबकि विश्व हिन्दू परिषद ने आगे बढ़कर संतों के आंदोलन को समर्थन देने की घोषणा की।
उन्होंने चेतावनी दी कि यदि पूज्य शंकराचार्य जी को तत्काल मुक्त नहीं किया गया तो पूरे देश में सांसदों व विधायकों का घेराव किया जाएगा। महामंडलेश्वर बालकानंद गिरि ने कहा कि राजनीति धर्म से चलती है, धर्म राजनीति से नहीं चलता। डा. रामविलास वेदांती ने कहा कि संतों को चेन्नै जाकर तमिलनाडु विधानसभा का घेराव करना चाहिए। स्वामी भक्त हरि ने कहा कि जो व्यवहार आज शंकराचार्य जी के साथ किया गया है वैसा व्यवहार मुगलों और अंग्रेजों के काल में भी नहीं हुआ था। दंडी स्वामी अच्युतानंद तीर्थ ने कहा कि शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी भारतीय संस्कृति पर आक्रमण है।
जूना अखाड़ा के महंत हरिगिरि महाराज ने कहा कि सेकुलरवादी कानून को तोड़-मरोड़ कर हमारी भावनाओं से खिलवाड़ कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि शंकराचार्य जी का मामला तमिलनाडु से बाहर चलाया जाना चाहिए। अवधूत सुरेन्द्र नाथ ने कहा कि सत्ताधीशों को शंकराचार्य को गिरफ्तारी करने का दु:साहस केवल इसलिए हुआ क्योंकि वह जानते हैं कि हिन्दू किसी भी प्रकार का दुव्र्यवहार सहन कर लेगा। शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी हमारी कमजोरी का नतीजा है। उन्होंने कहा कि यह हिन्दू समाज को समाप्त करने का षड्यंत्र है।
धिक्कार सभा में मठों और मंदिरों पर सरकार की कुदृष्टि के खिलाफ भी संतों में रोष था। राजनेताओं की इस मंशा का विरोधक करते हुए महंत परमानंद सरस्वती ने कहा कि मठ-मंदिरों का अधिग्रहण करने वालों का विरोध करें और संत किसी भी प्रकार का टैक्स न दें।
महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा कि संत जब कुपित होते हैं तो राजसत्ता उलट जाती है। उन्होंने सरकार को चेतावनी दी कि संतों का यह आंदोलन उग्र हो इससे पहले ही सरकार को शंकराचार्य जी को मुक्त कर देना चाहिए। संत आसाराम बापू ने कहा कि हिन्दू यदि सहिष्णु और उदार हैं तो इसका अर्थ यह नहीं कि वे कायर भी हैं। उन्होंने कहा कि जुल्म करना अगर पाप है तो जुल्म सहना दोगुना पाप है। इसलिए राजनेताओं से लोहा लेने के लिए संतों को तैयार रहना होगा।
विश्व हिन्दू परिषद् के कायर्कारी अध्यक्ष श्री अशोक सिंहल ने शंकराचार्य जी की गिरफ्तारी को सोमनाथ पर हुए आक्रमण के समकक्ष बताया और कहा कि जिस प्रकार सोमनाथ मंदिर टूटने के बाद हिन्दू समाज की क्षति हुई थी, कहीं इस बार वैसा ही न हो। उन्होंने कहा कि आज जो कुछ भी रहा है वह राजनीति से प्रेरित है। उन्होंने आरोप लगाया कि कांची मठ की संपत्ति हड़पने के लिए ही तमिलनाडु सरकार ने यह षड्यंत्र रचा है।
धिक्कार सभा से पूर्व रामलीला मैदान से गौरीशंकर मंदिर तक निकाली गई संत रोष यात्रा में अ.भा. अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास, हंसदास जी, निरंजनी अखाड़ा के स्वामी परमानंद, डा. रामविलास वेदांती, महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द जी, स्वामी अच्युतानंद तीर्थ, स्वामी परमानंद, महंत हरिगिरि, स्वामी विवेकानंद, महंत रामानंद पुरी, महंत गंगा पुरी, महंत मित्र प्रकाश सिंह, महंत भगवान दास, स्वामी दिव्यानंद तीर्थ,श्री नवल किशोर दास, अवधूत सुरेन्द्र नाथ आदि सात सौ से अधिक संतों ने भाग लिया। कुरुक्षेत्र, अयोध्या, उज्जैन, हरिद्वार, ऋषिकेश, वृंदावन आदि स्थानों से साधु-संत रोष यात्रा में भाग लेने के लिए आए थे। इससे पूर्व 20 नवम्बर की सायंकाल दिल्ली पहुंचे संतों ने 3 अलग-अलग स्थानों पर भी रोष यात्रा निकाली व सभाएं कीं। 22 नवम्बर की दोपहर संतों ने राष्ट्रपति भवन जाकर राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा और शंकराचार्य जी की अविलम्ब रिहाई की मांग की।
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