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चर्चा-सत्र

by
May 9, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 09 May 2004 00:00:00

जयदीप मुखर्जीजब भी धर्म अपमानित हो तोहिन्दू आवाज बुलंद करेंएक चिन्तित और आग्रही भारतीय श्री जयदीप मुखर्जी भारतीय प्रबंधन संस्थान, अमदाबाद (आई.आई.एम.) से परास्नातक हैं और इलेक्ट्रानिक इंजीनियर भी। वे अमरीका की एक विख्यात बहुराष्ट्रीय सोफ्टवेयर कम्पनी में कार्यरत हैं। -सं.उस दिन यूं ही अमरीका में अपने दफ्तर में बैठा मैं बी.बी.सी. का अंत:क्षेत्र देख रहा था। उसमें एक रपट पर नजर गई और मैं ठगा सा रह गया। खबर यह थी:”लंदन के हैरोड्स डिपार्टमेंटल स्टोर ने हिन्दू देवियों की छाप वाले विवादित अंत:वस्त्र बेचने पर अपने ग्राहकों से माफी मांगी है।”रपट में आगे लिखा था कि अंत:वस्त्र और तैराकी परिधानों सहित गर्मी के कपड़ों को कुछ समय से वहां रखे आदमकद प्रदर्शनी पुतलों पर सजाया हुआ था- लेकिन एक सजग भारतीय व्यक्ति अमिताभ सोनी ने इस पर कड़ा एतराज जताया। रपट में एक झीने से गुलाबी तैराकी वस्त्र के बीचोंबीच देवी दुर्गा का चेहरा लगा चित्र भी दिखाया गया था। केवल यही नहीं, रपट में आगे धर्म को लेकर किए गए कई नए प्रयोगों का भी जिक्र था। उसमें एक दुकानदार की चर्चा थी जो हिन्दू देवताओं के चित्र छपी चप्पलें बेचने पर मुसीबत में फंस गया था। जबकि एक अन्य ने शौचालय की “सीट” पर ही एक हिन्दू देवता का चित्र छापा था। इन दोनों ही मामलों पर यू.के. के जागरूक हिन्दू धार्मिक संगठनों के प्रयास से प्रतिबंध लगा था।यह सब देखकर क्रोध आना स्वाभाविक ही था। लेकिन गुस्से के आरंभिक आवेग के उतर जाने के बाद पूरे मामले पर गंभीरता से विचार किया। दिमाग में कई एक बातें घुमड़ने लगीं। जैसे- 1. मुद्दे की बात यह नहीं है कि डोडी फायद- हैरोड्स स्टोर का मालिक- एक मुस्लिम है। मुद्दे की बात तो यह है कि क्या हैरोड्स ऐसे अंत:वस्त्र जिन पर इस्लामी आयतें लिखी होतीं या ईसा मसीह की शक्ल छपी चप्पलें बेचने या बनाने की हिमाकत कर पाता?अभी हाल में, सऊदी अरब के खोबर क्षेत्र में एक आतंकवादी हमले में 22 लोगों की जानें गईं, जिनमें 8 भारतीय और एक अमरीकी भी था। उसमें मारे गए अमरीकी और अन्य पश्चिमी नागरिकों के बारे में तो अमरीकी मीडिया ने प्रमुखता से खबरें प्रसारित कीं। उनके घरों से लेकर उनसे जुड़े सभी पहलुओं पर विशेष “रिपोर्टिंग” देखने में आई। लेकिन कहीं भी, कैसे भी मीडिया ने इस तथ्य की ओर ध्यान तक नहीं दिया कि मारे जाने वालों में 30 प्रतिशत मृतक भारत के थे। पता नहीं भारत में उनके बारे में कितना-कुछ छपा, पर इस पूरे प्रकरण पर न तो भारत के प्रधानमंत्री की ओर से अथवा न ही विदेश मंत्री की ओर से सऊदी अरब के राजदूत को बुलाकर चिंता प्रकट करने की बाबत कुछ देखने में आया। मुझे याद है जब गुजरात दंगों में यू.के. के 4 नागरिक मारे गए थे तो किस तरह पूरी दुनिया के मीडिया और अन्य मंचों पर गुस्से का इजहार किया गया था।जब एम.एफ. हुसैन सरस्वती का नग्नता भरा चित्र बनाते हैं तो लोकतंत्र और संस्कृति के झण्डाबरदार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर एकजुट होकर उसका बचाव करते हैं। लेकिन जब वही हुसैन अपनी फिल्म से एक पूरा गीत केवल इसलिए निकाल देते हैं, क्योंकि एक इस्लामी संगठन उस गीत के बोलों के कारण इस्लाम की तौहीन होने का अंदेशा जाहिर करता है, तो वही झण्डाबरदार आश्चर्यजनक रूप से अपने मुंह पर ताला ठोंके दिखते हैं!मैं अंग्रेजी फिल्मों का दीवाना हूं और स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्में देखकर चौंधिया ही जाता हूं, क्या गजब फिल्में होती हैं उनकी। मैं काली मां और उनके पुजारी रामकृष्ण परमहंस का भी भक्त हूं। उसी स्पीलबर्ग ने अपनी एक इंडियाना जोन्स फिल्म में देवी काली को अंधकार और शैतान की देवी के रूप में दर्शाया। मुझे ध्यान है कि भारत में उस फिल्म के जारी होने पर रोक लगा दी गई थी, पर इस फिल्म के इंडियाना जोन्स डी.वी.डी. संग्रह मुम्बई और बंगलौर जैसे महानगरों में इन दिनों धड़ल्ले से बिक रहे हैं।मुम्बई पुलिस ने जब हिन्दू देवी-देवताओं के नाम पर अपने शराबखानों का नाम रखने वाले शराबखाना मालिकों के खिलाफ कार्रवाई की तो मालिकों के संगठन के नेता, जो एक सिख थे, ने टेलीविजन के जरिए इस कार्रवाई का विरोध किया और कहा कि यह उनकी रोजी-रोटी पर चोट करने जैसा है। पता नहीं वे सज्जन इसी तरह की बात तब भी कह पाते जब पुलिस कार्रवाई जारी रखते हुए “गुरु नानक डांस बार” नामक किसी शराबखाने को बंद करा देते।कुछ वर्ष पहले पूरा देश उस दृश्य को देखकर स्तब्ध रह गया था जिसमें बंगलादेशी ग्रामीण भारतीय जवानों के क्षत-विक्षत शवों को मरे हुए जानवर की तरह डंडे पर बांधकर लाए थे। शांति के पुजारी हमारे प्रधानमंत्री और उनके सहयोगियों ने बंगलादेशी सैनिकों के वापस लौट जाने के बाद कड़ी चेतावनी जारी कर दी और बस, वह सीमा विवाद खत्म मान लिया गया। दुनियाभर में, हिन्दुओं पर “मूर्तिपूजक देशज” का लेबल चस्पां किया जाता है, जिनका कठोर सामाजिक ढांचा है और जो दिमागी संकीर्णता की निशानी है। फिर भी, आज से करीब 200 साल पहले, जब ऐसा सामाजिक ढांचा कहीं ज्यादा ठोस था, विचारवान और सामाजिक स्वतंत्रता के अलम्बरदार माने जाने वाले मैक्समूलर ने कहा था- “अगर मुझसे पूछा जाता कि दुनिया के किस कोने में इंसानी दिमाग प्रखरतम ऊंचाइयों पर पहुंचा है तो मैं भारत की ओर इशारा करता।”फिल्मकार इस्माइल मर्चेंट को हमेशा राष्ट्रीय अखबार पहले पन्ने पर जगह देंगे, जबकि उन्होंने अपनी नई फिल्म में टीना टर्नर जैसी चरित्र वाली महिला से देवी काली की भूमिका करवाई है।मैं अपने देश या अपनी आस्था के नाम पर कोई अतिवादी व्यक्ति नहीं हूं, इसलिए मैं इस सब बहस में नहीं जाना चाहता कि ऊपर लिखे हर उदाहरण की प्रतिक्रिया में क्या कदम उठाए जाने चाहिए थे। लेकिन आज, मुझे अपने भीतर, पहले से कहीं ज्यादा, इन सब बातों को परखने, जानने की इच्छा होती है। और ऐसा करते हुए अपने धर्म द्वारा सिखलाई गई बातों यानी सबके प्रति क्षमाभाव और धैर्य आदि को ताक पर रख देना चाहता हूं। मुझे अपने धर्म का अभिमान है और यह गौरव जगजाहिर करने में भी मुझे संकोच नहीं है। मैं चाहता हूं कि जब भी भारत या भारत के बाहर हिन्दू धर्म का अपमान हो तो हर हिन्दू उसके खिलाफ आवाज बुलंद करे। और पहले से कहीं ज्यादा इस बात की जरूरत महसूस होती है कि जब भी हिन्दू अपनी आवाज बुलंद करें तो वह “आवाज” भारत का आधिकारिक मत होनी चाहिए। जब हैरोड्स इस तरह की कोई हरकत करता है तो दिल्ली में यू.के. दूतावास के सांस्कृतिक अधिकारी को तलब करके यहां से चले जाने को कहा जा सकता है। हो सकता है वे यू.के. में मौजूद हमारे सांस्कृतिक अधिकारी को भी वापस लौट जाने को कहें- लेकिन अंतर क्या पड़ेगा, वह तो वैसे भी अपना काम कर ही नहीं रहा। कोई फर्क नहीं पड़ता अगर मेरा देश सेकुलर नहीं कहलाता- अमरीका में कहीं भी लाउडस्पीकरों पर मस्जिदों की अजान नहीं होती- फिर भी अमरीकी सेकुलर कहलाते हैं। अपनी आस्था और सत्यनिष्ठा में भरोसे के प्रति श्रद्धा से ही शक्ति का सृजन होता है। इस शक्ति का ही सम्मान होता है।5

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