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सोनिया-वामपंथी सरकार ने थोपा जजियापायनियर के 24 अगस्त, 2004 अंक में स्तम्भकार संध्या जैन का लिखा आलेख “यू.पी.ए”ज जजिया थ्रू बैक डोर” (पिछले दरवाजे से संप्रग का जजिया) एक ऐसे, ही तुगलकी फरमान की ओर इंगित करता है। इस सरकार ने सभी सैन्य कमांडरों को ऐसा फरमान जारी किया था कि कमांडरों, अधिकारियों के पैरों तले की जमीन खिसक गई। सेना में “सेकुलर छवि” को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जारी इस सरकारी आदेश के विरुद्ध सैन्य अधिकारियों ने भारत के राष्ट्रीय प्रतिरक्षा महाविद्यालय के पूर्व अधिकारी अभिजीत भट्टाचार्य से मामले की तह तक जाने की गुहार की। श्री भट्टाचार्य ने यह कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न किया। संध्या जैन लिखती हैं, “चूंकि यह भारत के स्वदेशी सभ्यतामूलक मूल्यों और विरासत पर हमला है, इस पर व्यापक बहस होनी चाहिए। सांस्कृतिक पहचान पर चोट करने की इस हरकत पर मीडिया, राजनीतिक दलों और मुखर रहने वाले तथाकथित बुद्धिजीवियों की चुप्पी शर्मनाक है।” सरकार का यह आदेश सेवारत सैन्य अधिकारियों, सैनिकों को किसी भी प्रकार के हिन्दू धार्मिक चिन्ह, जैसे- पवित्र धागा, विभूति, तिलक यहां तक कि नग वाली अंगूठियां पहनने की मनाही करता है। देवी-देवताओं की मूर्तियों पर भी प्रतिबंध लगाया गया है।संध्या लिखती हैं, “यह आदेश खासतौर पर हिन्दू अधिकारियों और सैनिकों, जो नि:संदेह सैन्य सेवा में अधिक संख्या में हैं, को ध्यान में रखकर जारी किया है और क्योंकि यह देश अब भी हिन्दूबहुल देश है (लेकिन यह कब तक ऐसा है, इस पर सवालिया निशान लगा है)। हिन्दू महिला अधिकारियों के कान के कुंडल और जेवर पहनने पर प्रतिबंध लगाया गया है; एकमात्र छूट सिंदूर की है और वह भी टोपी के नीचे ढका रहना चाहिए। इस तरह सेकुलरवाद ने आगे की ओर लम्बी छलांग लगाते हुए एक हिन्दू की व्यक्तिगत पहचान पर हमला बोला है और धर्म-अनुसार रिवाजों पर चलने की मनाही की गई है। सिंदूर को शायद संप्रग की अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा बख्शा गया है, जो हकबकाए लोगों के सामने अपनी राजनीतिक वैधता की हामी भरवाने के लिए अपनी मांग के सिंदूर की दुहाई देती हैं। यह कतई संभव नहीं है कि इस स्तर का आदेश उनकी जानकारी के बिना जारी किया जा सकता है। अत: उन्हें इन कदमों और उनके उद्देश्यों पर अपना नजरिया जनता के सामने साफ करना चाहिए।” प्रतिनिधि4
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