|
-स्वामी विवेकानन्द (विवेकानंद साहित्य, तृतीय खण्ड, पृ.43)
इशारा साफ है
जर्मनी की यात्रा पर गए प्रधानमंत्री वाजपेयी से बातचीत में जर्मनी के चांसलर गेरहार्ड श्रोडर ने स्पष्ट कहा कि भारत की पहल का पाकिस्तान समुचित जवाब दे। प्रधानमंत्री ने वहां अपने एक वक्तव्य में भारत के मित्र व सहयोगी देशों से पाकिस्तान पर सीमापार आतंकवाद रोकने के लिए दबाव डालने की अपील की। उन्होंने साफ कहा कि आतंकवाद पर दोहरे मापदंड अपनाना गलत है। उनका संकेत अमरीका की ओर था। तमाम अंतरराष्ट्रीय दबावों के बावजूद पाकिस्तान अगर अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा, तो इसका क्या अर्थ लगाया जाए? पाकिस्तान के एक साप्ताहिक साउथ एशिया ट्रिब्यून में प्रकाशित यह खबर, पता नहीं, कितनी सच है कि यदि भारत-पाकिस्तान के बीच प्रस्तावित शांति-वार्ता विफल रही तो पाकिस्तान कश्मीर में आत्मघाती हमलों की झड़ी लगा देगा। वैसे पाकिस्तान में जो कुछ चल रहा है, वह परवेज मुशर्रफ की मीठी-मीठी बातों से मेल नहीं खाता। पाकिस्तान सीमापार आतंकवाद पर या आई.एस.आई. पर कुछ अंकुश लगा रहा है, ऐसा यथार्थ के धरातल पर तो नजर नहीं आता। संभवत: इसीलिए प्रधानमंत्री वाजपेयी ने दो टूक शब्दों में कहा कि पाकिस्तान को अभी माहौल बनाने के लिए बहुत कुछ करना है। उनकी यह बात भी उतनी है महत्वपूर्ण है कि बातचीत के वातावरण के कारण सुरक्षा से किसी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा।
यूं ही चल रही है गाड़ी
एक पखवाड़ा भी नहीं बीता था फ्रंटियर मेल में लगी आग को, कि 28 मई को तेज गति से भागती एक और रेलगाड़ी आग की लपलपाती लपटों में घिर गई। इंजन सहित तीन डिब्बे धूं-धूं कर जलने लगे। लेकिन सुखद बात यह रही कि उन डिब्बों में यात्रा कर रहे 400 यात्री सुरक्षित निकल आए। इस बार रेल के इंजन से डीजल रिसने के कारण यह आग लगी। यह कैसे हुआ? एक ही उत्तर है-लापरवाही। फ्रंटियर मेल दुर्घटना में भी कारण लापरवाही ही था। लापरवाही चाहे रेल विभाग की हो या फिर यात्रियों की।
कितनी सुरक्षित है अब रेल यात्रा? बार-बार यह प्रश्न मस्तिष्क में कौंध जाता है। लेकिन विकल्प भी क्या है? भारत में बढ़ती रेल दुर्घटनाएं निश्चित रूप से चिंता का विषय है। 13 साल में पांच बार रेल के डिब्बे आग की लपटों में घिरे और सैकड़ों यात्री मौत की नींद सो गए। इसमें गोधरा में हुआ नरसंहार भी शामिल है।
1990 में पहली बार किसी रेल में आग लगी थी। पटना के पास हुई वह दुर्घटना रेल में रखे आक्सीजन के दो सिलेंडरों पर जलती सिगरेट फेंके जाने से हुई थी। इसमें 93 यात्री जिंदा जल गए थे। दूसरी घटना मुम्बई के पास गीतांजलि एक्सप्रेस में हुई जिसमें 66 यात्री मारे गए थे। तीसरी घटना गोधरा की थी और चौथी फ्रंटियर मेल अग्निकांड। स्टोव फटने से रेल के डिब्बों मे लगी आग में 40 यात्री मारे गए थे। इन सभी दुर्घटनाओं से प्रश्न उठता है कि क्या रेलगाड़ियों में ज्वलनशील पदार्थों को ले जाने से रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है? रेल में बीड़ी-सिगरेट पीने पर पाबंदी है और पकड़े जाने पर 100 रुपए जुर्माना या छह महीने जेल की सजा है। लेकिन ऐसे कानून सिर्फ नाममात्र के लिए हैं। खुले आम इन्हें धता बतायी जाती है। पिछले दिनों न्यायमूर्ति जी.एन.राय ने गाइसाल रेल दुर्घटना जांच रपट में स्पष्ट कहा था कि रेल संचालन के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को संबंधित नियमों की जानकारी नहीं है। बस गाड़ी यूं ही चल रही है। यात्रियों के लिए रेल यात्रा से पहले स्पष्ट निर्देश और उनका पालन कराने वाले चुस्त-दुरुस्त, ईमानदार रेल कर्मचारी हों तभी शायद रेल यात्रा सुरक्षित बन सकेगी।
3
टिप्पणियाँ