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साधु: सत्कृतिसाधुमेव भजते नीचोऽपि नीचं जनं।

by
Apr 5, 2003, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Apr 2003 00:00:00

या यस्य प्रकृति: स्वभावजनिता केनापि न त्यजते।।

साधु सत्कार्य करने वाले साधु पुरुष की ही संगति करता है और नीच पुरुष नीच की ही संगति करता है। जिसकी जो स्वाभाविक प्रकृति है उसे कोई भी त्याग नहीं सकता है।

-अज्ञात

पीने का पानी

पानी को लेकर दो भाइयों में झगड़ा, 15 बुरी तरह घायल। दूध से भी महंगा पानी। रोज दूध 40-50 रुपए में आता है, लेकिन पानी के लिए एक-एक परिवार को तीन सौ रुपए रोज खर्च करने पड़ रहे हैं। यह दिल्ली के धनी इलाकों की बात है, लेकिन जिनकी जेब में इतना पैसा नहीं, वे क्या करें? प्यासे रहें? इलाके में पानी का टैंकर पहुंच जाता है और सैकड़ों महिलाएं, बच्चे, युवा बाल्टी, डिब्बे, कनस्तर लेकर पंक्ति में लगे रहते हैं। और कब पानी लेने की होड़ झगड़े और मारपीट में बदल जाए, पता नहीं लगता। एक नहीं, ऐसी अनेक घटनाएं, पिछले पन्द्रह दिनों में देश की राजधानी दिल्ली में घटी हैं। राजधानी में 13 अप्रैल को ही तापमान 42 डिग्री तक पहुंच गया था, मई-जून में क्या होगा? इससे भी ज्यादा भयंकर! उस पर दिल्ली की मुख्यमंत्री बयान दे रही हैं-पानी को लेकर बेकार का हो-हल्ला मचाया जा रहा है, संकट जैसी कोई बात नहीं है। यह संकट नहीं तो और क्या है कि पानी से प्यास बुझाने के लिए लोग एक-दूसरे के खून के प्यासे हो जाएं। 7-8 माह पूर्व दिल्ली सरकार ने वर्ष 2003 को जल व ऊर्जा संरक्षण वर्ष घोषित किया था। इधर जल व ऊर्जा संरक्षण वर्ष मनाया जा रहा है और उधर सरकार दिल्ली के यमुना पार इलाके में विशाल बूचड़खाना खोलने जा रही है, जिससे प्रतिवर्ष 10 लाख टन रक्त यमुना में बहेगा। इससे यमुना का जल तो प्रदूषित होगा ही, भूजल भी निश्चित रूप से प्रदूषित होगा। जबकि दिल्ली की जनसंख्या का आधे से ज्यादा भाग भूजल का प्रयोग करता है। सर्वेक्षणों से पता चला है कि दिल्ली की 60 प्रतिशत आबादी गंदला व विषाक्त पानी पीने को विवश है। बाकी 40 प्रतिशत आबादी को जलापूर्ति दिल्ली जल बोर्ड द्वारा की जाती है, किन्तु पिछले दिनों बोर्ड के जल की रासायनिक जांच की गई तो उसमें कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियां फैलाने वाले कीटाणु पाए गए थे। अब लोग प्यास से बेहाल हों या प्रदूषण से। उस पर अमरीका के ऊर्जा विभाग द्वारा दिल्ली को सबसे साफ-सुथरा शहर होेने का अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। पुरस्कार देने वालों को पता नहीं कौन-सी दिल्ली दिखाई गई? या फिर वातानुकूलित कमरों में बैठकर बनी फर्जी सर्वेक्षण रपटों को आंख मूंदकर सच मान लिया गया? लोनी के पास गंदे, सड़ांध मारते, कीड़े बुजबुजाते पानी में आधी से ज्यादा डूबी पेयजल पाइप लाइन में जगह-जगह से पाइपों की दरारों से रिसकर वह दूषित पानी पेयजल में मिल रहा है। यह तो देश की राजधानी दिल्ली का हाल है। देश के बाकी हिस्सों का क्या हाल होगा, यह कल्पना ही सिहरा देने वाली है।

मौसम विभाग के अनुसार इस वर्ष सामान्य से बहुत कम वर्षा होने का अनुमान है। संभव है देश के अनेक भागों पर अकाल और सूखे की मार पड़े। दिल्ली में यमुना नदी को नदी न कहकर पतली-सी जलधार कहा जाए तो गलत नहीं होगा। यमुना के जल का रंग भी बदल चुका है। काला, मानो कोलतार मिला दिया हो। आखिर कौन-सा पानी पियें? पानी के लिए हाहाकार मचा है, लेकिन राजनीति के गलियारों में एक-दूसरे की पोल खोलने की होड़, लाठी घुमावन, तेल पिलावन की धूम, रैलियों की चर्चा है। रैलियों पर बेशुमार खर्चा करने की बजाय ये राजनेता जल संकट पर भी कुछ ध्यान दें तो शायद जनता का ज्यादा भला होगा।

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