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-डा. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी, संविधानविद् एवं सांसद
भारतवर्ष की विदेश नीति की दृष्टि से 2003 स्वर्णिम वर्ष रहा। एक तरह से भारतवर्ष की कीर्ति बढ़ी, शक्ति बढ़ी और छवि अधिक उज्ज्वल हुई। भारतवर्ष के सरोकारों को लोगों ने नए सिरे से समझना शुरू किया। हमारे यहां आर्थिक दृष्टि से एक नई स्फूर्ति आई है। विदेशी मुद्रा का भण्डार बढ़ा, मुद्रास्फीति नहीं बढ़ी। विकास की दर भी बढ़ी है और इसके अधिक बढ़ने की संभावनाएं हैं। राजनीति के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि यह है कि आम लोगों में प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी और केन्द्र सरकार के प्रति एक प्रशस्ति का भाव है। लोग अब मानने लगे हैं कि इस सरकार में प्रशासन की क्षमता और विवेक का सन्तुलन है। गत वर्ष कला के क्षेत्र में दो बड़े काम हुए। पहला, कूडिप्यट्टम, जो केरल के नृत्य की एक विधा है, को अन्तरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई। दूसरा, वैदिक ऋचाओं को हमने अमूर्त भारतीय विरासत के रूप में स्थापित किया। नए सिरे से कई सांस्कृतिक केन्द्रों का विकास हुआ है, जैसे कुरूक्षेत्र, कुम्भलगढ़ या अजन्ता-एलोरा में। अब लाल किले को भी विशेष रूप से सजाने-संवारने का काम शुरू हो रहा है। प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी ने जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान का नारा दिया है। मेरे विचार से गत वर्ष इस नारे का अच्छा प्रभाव रहा। सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अच्छे काम हुए हैं। 2003 में अटल जी के उस भाषण ने जो उन्होंने राज्यसभा में दिया था, लोगों को बड़ा प्रभावित किया। उन्होंने कहा था कि हमारे लिए दुर्भाग्य की बात है कि अभी तक भ्रष्टाचार को हम नहीं मिटा पाए हैं। उस भाषण में उन्होंने देश की अन्तरात्मा को छुआ था। इस भाषण से लोगों को लगने लगा कि एक व्यक्ति ऐसा है, एक राष्ट्रनायक ऐसा है, जो पूरे राष्ट्र की आत्मा का प्रतिनिधित्व करता है। अटल जी के भाषण में राष्ट्र की आत्मा मुखरित होती है। इसलिए अटल जी गत वर्ष जहां भी गए, वहां विजयघोष गूंजा। भारतवर्ष की प्रतिष्ठा को लोगों ने स्वीकार किया।
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