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उमस भरी दोपहरी गढ़तीलू की नयी कथातपते सूरज के मन कीअब पूछे कौन व्यथाजितने मुंह उतनी बातेंअच्छी गरमी आईजाने किस कोने में दुबकाबादल हरजाई।आंचल-आंचल बहे पसीनागोरे तन चटकेहिरन प्यास के जाने-किस-किस देहरी पर भटकेनदी अचम्भा करेदेह क्यों उसकी संवलाईजितने मुंह उतनी बातेंअच्छी गरमी आई।पेड़ों से छनती उलझनतालाब-कुएं सूखेपछुआ ऐसी बदलीबोले बोल न दो रूखेउगते कांटे तन परफूलों की छवि मुरझाईजाने किस कोने में दुबकाबादल हरजाई।-सुशील सरित30
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