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उमस भरी दोपहरी गढ़ती
लू की नयी कथा
तपते सूरज के मन की
अब पूछे कौन व्यथा
जितने मुंह उतनी बातें
अच्छी गरमी आई
जाने किस कोने में दुबका
बादल हरजाई।
आंचल-आंचल बहे पसीना
गोरे तन चटके
हिरन प्यास के जाने-
किस-किस देहरी पर भटके
नदी अचम्भा करे
देह क्यों उसकी संवलाई
जितने मुंह उतनी बातें
अच्छी गरमी आई।
पेड़ों से छनती उलझन
तालाब-कुएं सूखे
पछुआ ऐसी बदली
बोले बोल न दो रूखे
उगते कांटे तन पर
फूलों की छवि मुरझाई
जाने किस कोने में दुबका
बादल हरजाई।
-सुशील सरित
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