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दिशादर्शन

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Feb 12, 2001, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 12 Feb 2001 00:00:00

बंगलादेश से आ रहे हिन्दू शरणार्थी

हम चुप नहीं रह सकते

द मोहनराव भागवत

सरकार्यवाह, रा.स्व.संघ

प्रति वर्ष दीपावली के समय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय स्तर पर प्रान्त प्रचारकों और अन्य कार्यकर्ताओं की बैठक आयोजित होती है।

इस वर्ष यह बैठक 14,15 व 16 नवम्बर को जशपुर में सम्पन्न हुई। इस में गत वर्ष हुए राष्ट्र जागरण अभियान के अनुवर्ती प्रयास के रूप में अखिल भारतीय स्तर पर संगठनात्मक स्थिति तथा कार्य विस्तार की दृष्टि से चर्चा हुई।

विशेष रूप से बंगलादेश में चुनावों के बाद वहां के हिन्दुओं पर हुए लोमहर्षक अत्याचारों के प्रति वहां की सरकार की आपराधिक उदासीनता तथा बड़ी संख्या में पीड़ित हिन्दुओं के वहां से विस्थापित होकर पश्चिम बंगाल में आने की स्थिति पर विचार किया गया। इस बैठक में सरसंघचालक श्री कुप्.सी.सुदर्शन, सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत, सह सरकार्यवाह श्री हो.वे.शेषाद्रि, भाजपा के पूर्व अध्यक्ष श्री कुशाभाऊ ठाकरे, स्वदेशी जागरण मंच के श्री मुरलीधर राव, भारतीय मजदूर संघ के श्री ओमप्रकाश अग्गी, किसान संघ के श्री संकटा प्रसाद, विद्यार्थी परिषद् के दत्तात्रेय, संस्कृत भारती के श्री च.मू.कृष्णशास्त्री, वनवासी कल्याण आश्रम के श्री गुणवंत सिंह कोठारी आदि अनेक कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। विश्व हिन्दू परिषद् के कार्याध्यक्ष श्री अशोक सिंहल भी एक दिन के लिए बैठक में आए थे।

बैठक में सरकार्यवाह श्री मोहनराव भागवत ने एक वक्तव्य जारी किया जो इस प्रकार है-

भारत में आश्रय तथा सुरक्षा हेतु बंगलादेश से आ रहे हिन्दू शरणार्थियों के निरन्तर प्रवाह ने एक बार फिर से सम्पूर्ण हिन्दू समाज को निष्ठुर असमंजस की स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। बंगलादेश में हुए चुनावों में अवामी लीग के पक्षधर मतदाता होने का बहाना लेकर मुसलमानों की हिंसक भीड़ ने अपने उच्चासीन राजनीतिज्ञों का समर्थन प्राप्त कर हिन्दू अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया है। मकान और आश्रय के स्थानों पर आक्रमण से बाधित असहाय हिन्दू अपने पारम्परिक स्थानों को छोड़कर अपनी जान, सम्मान और माल को बचाने के लिए भारत की तरफ भाग कर आ रहे हैं। बंगलादेश की सरकार तथा वहां के लोगों ने प्राय: जो घृणा और धार्मिक असहनशीलता को प्रकट किया है उसकी कोई सीमा नहीं है।

1947 में भारत के हृदय विदारक विभाजन से लेकर तदुपरान्त 1971 में बंगलादेश की स्वतंत्रता तक हिन्दुओं को सदैव ही आपदाओं का सामना करना पड़ा है। निरन्तर असुरक्षा की छाया में रहने वाले हिन्दुओं को भारत में आश्रय के बिना और कोई भी स्थान नहीं है। भूमि से वंचित कर दिया जाना, किशोरियों तथा स्त्रियों पर सामूहिक बलात्कार, रक्षा के लिए उनसे पैसे की मांग आदि बंगलादेश में यह सामान्य सी घटनाएं मानी जा रही है।

हिन्दुओं के बंगलादेश से निर्वासन तथा वहां उनके सतत उत्पीड़न को रोकने एवं उनको आश्रय तथा सहायता प्रदान करने में पश्चिम बंगाल सरकार की असमर्थता और केन्द्र सरकार की असहायता समझ आने योग्य नहीं है और परिणामस्वरूप इससे राष्ट्रीय भावना को गहरी चोट लग रही है।

इसके अतिरिक्त प. बंगाल की वामपंथी सरकार उनको अपने राज्य में प्रवेश की अनुमति नहीं दे रही है। तथाकथित सीमा उल्लंघन करके आए लोगों को पकड़कर जेलों में डाला जा रहा है। अपनी सुरक्षा के लिए इस ओर आने वाले लोग कभी सीमा सुरक्षा बल की गोली का निशाना भी बन जाते हैं। यह आश्चर्यजनक बात है कि सेकुलरवाद के पक्ष में बोलने वालों की आवाज बंद हो गई है। निजी तथा सरकारी संवाद माध्यमों ने इस दु:खद स्थिति की गंभीरता को प्रकट करने के लिए अपने स्वर धीमे कर दिए हैं।

हिन्दुओं के साथ बंगलादेश की सरकार का व्यवहार उनकी कृतघ्नता एवं आभार हीनता के सिवा कुछ भी नहीं है। भारतीय जनता तथा सेना द्वारा पाकिस्तान के पंजे से बंगलादेश को स्वतंत्र कराना एक निर्णायक पग था। बंगलादेश के व्यवहार का वर्तमान इतिहास सभ्य संसार के सम्मुख तिरस्कार योग्य है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह मत है कि अब यह सब बहुत हो चुका है। लोगों से आग्रह है कि अपनी गहन अन्तर्वेदना की अनुभूति को बंगलादेश की सरकार के प्रतिनिधियों के ध्यान में लाएं और इसके साथ ही राज्य और केन्द्र के शासनकर्ता बंगलादेश के हिन्दुओं पर आ पड़ी इस आपदा के लिए उत्तरदायी ठहराए जाने चाहिए।

इस बात की किसी भी प्रकार से संस्तुति नहीं की जा रही है कि बंगलादेश से आए हुए शरणार्थियों को स्थायी रूप से यहां बसाया जाए। उनकी जान, सम्मान और माल की पूर्ण सुरक्षा की वचनबद्धता के पश्चात ही उन्हें शीघ्रातिशीघ्र बंगलादेश भेज दिया जाए।

हमारे देश में तेजी से आ रहे शरणार्थियों की आवश्यकताओं के प्रति इस देश के लोग किसी भी प्रकार से संवेदनहीन नहीं रह सकते हैं। बंगलादेश के शरणार्थियों के साथ एकजुटता प्रकट करने के लिए 1 दिसम्बर से 8 दिसम्बर, 2001 तक सार्वजनिक प्रदर्शन आयोजित किए जाएं और साथ ही निम्नलिखित पते पर दिल खोलकर दानराशि भेजें-(चेक/ड्राफ्ट वास्तुहारा सहायता समिति के नाम पर बनाएं जो कोलकाता में देय हों।)

वास्तुहारा सहायता समिति

27/1 बी., विधान सरणी, कोलकाता-700006

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