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पाञ्चजन्य पचास वर्ष पहले

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Jan 4, 2001, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 04 Jan 2001 00:00:00

थ् वर्ष 5, अंक 19 थ् मार्गशीर्ष शुक्ल 8, सं. 2008 वि., 6 अक्तूबर, 1951 थ् मूल्य 3 आने

थ् सम्पादक : ज्ञानेन्द्र

थ् प्रकाशक – श्री राधेश्याम कपूर, राष्ट्रधर्म कार्यालय, सदर बाजार, लखनऊ

——————————————————————————–

कांग्रेसेतर राजनीतिक दल सावधान रहें!

कांग्रेस की राजनीतिक गुंडागर्दी का आरम्भ

प्रतिद्वन्द्वी उम्मीदवारों को दबाने के हथकण्डे

नेहरू जी ने सभी विरोधियों को कुचल देने की जो धमकियां दी हैं उनको देश भर में कार्यान्वित करने की शुरुआत हो चुकी है। चुनावों के दिन जैसे-जैसे निकट आते हैं वैसे-वैसे कई प्रदेशों से कांग्रेस प्रतिद्वन्द्वी उम्मीदवारों को अनेक प्रकार से परेशान करने के समाचार मिल रहे हैं। कांग्रेसजनों और कांग्रेस की सरकारों द्वारा ऐसे साधन अपनाए जा रहे हैं जिनसे निष्पक्ष और स्वतंत्र मतदान असम्भव हो गया है। सरकारी पदाधिकारी भी सत्तारूढ़ कांग्रेसजनों द्वारा इस प्रकार प्रभावित कर लिए गए हैं कि वे भी कांग्रेसी उम्मीदवारों की स्थिति को सुदृढ़ बनाने के लिए, और विरोधी उम्मीदवारों की स्थिति बिगाड़ने के लिए हर प्रकार के अनुचित उपायों का आश्रय लेने पर कमर कस चुके हैं।

आंसू बहाना है मना…

शरणार्थी शिविरों की हृदय विदारक घटनाएं

कलकत्ता-यहां के शरणार्थी शिविरों में मृत्यु का नग्न ताण्डव चल रहा है। कोई भी माता चाहे जब अपने शिशुओं को खो बैठ सकती है। एक ही शिविर में एक दिन में 20 बालकों की मृत्यु हुई। यह घटना सभ्य कही जाने वाली सरकार के माथे पर सदा के लिए कलंक लगाने वाली है। जिसके राज में मानव-पुत्र कीड़ों-मकोड़ों की मौत मर रहे हैं।

भोजन और चिकित्सा के अभाव में केवल मनुष्यों और स्त्रियों को ही नहीं, इस बंगभूमि में मृत्यु ने छोटे-छोटे शिशुओं को खासतौर से अपना निशाना बना लिया है। किसी भी शरणार्थी शिविर में प्रतिदिन सवेरे दर्जनों मृत शिशुओं के शव देखे जा सकते हैं।

यह दृश्य इतना हृदय विदारक है कि माताओं की आंखों से आंसू तक नहीं निकलते! सूखी आंखों से अपने लालों के लुटने का भयावना दृश्य वे देखती रहती हैं; और मृत्यु की विभीषिका के सामने अपने भाग्य की विडम्बना देखकर मूक रह जाती हैं। और उनका मन हृदय की सम्पूर्ण घृणा लेकर, यह दुनिया बनाने वाले भगवान को धिक्कारता रहता है लेकिन वाणी में शक्ति नहीं होती, मुंह से धिक्कार के शब्द भी नहीं निकलते!

नेहरू जी इस देश के प्रधानमंत्री होने योग्य नहीं

हिन्दू धर्म और संस्कृति का ह्मास न चाहने वाले उनको कदापि मत न दें प्रसिद्ध सन्त श्री प्रभुदत्त ब्राह्मचारी का वक्तव्य

थ्हिन्दू कोड धर्म पर प्रत्यक्ष आघात है। इस विधि को पास कराने की चुनौती देकर नेहरू जी ने धर्म को चुनौती दी है। थ् नेहरू जी को अपना मत देने के माने हिन्दू कोड को मत देना है- अधर्म को मत देना है। आज नेहरू जी किसी की कुछ सुनते ही नहीं। जो मन में आता है कर बैठते हैं।थ् वे इतने विचार-हीन, द्वेषपूर्ण हैं कि ऐसे विचार का व्यक्ति रूस आदि देशों में भले ही प्रधानमंत्री हो हमारे इस धर्मप्राण देश के वे मंत्री होने के कदापि योग्य नहीं।थ्मेरी एक शर्त है- श्री नेहरू जी कह दें कि हम हिन्दू कोड बिल को पारित कराने के हठ छोड़ देंगे। मैं तुरन्त चुनाव से अपना नाम हटा लूंगा। नेहरू जी निर्विरोध चुन लिए जाएंगे।

झूसी (प्रयाग), 29 नवम्बर। प्रधानमंत्री पं. नेहरू के विरुद्ध प्रयाग-जौनपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले झूसी के संत भी प्रभुदत्त जी ब्राह्मचारी महाराज ने अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि इस बात को सभी जानते हैं कि मैं एक धार्मिक व्यक्ति हूं। धर्म का प्रचार-प्रसार करना मेरा प्रथम कर्तव्य है। राजनीतिक मामलों में रुचि रखना मेरी वैयक्तिक बात है। मैं जीवन में कभी भी किसी चुनाव के चक्कर में नहीं पड़ा। बाल्यकाल से मुझे इस बात का क्षोभ था कि मेरे इतने प्यारे धर्म-प्रधान देश पर विदेशी विधर्मियों का राज है। महात्मा गांधी जी रामराज्य- रामराज्य की रट लगाते थे। धर्मपूर्वक कहता हूं, राम राज्य का तब मैं अर्थ वर्णाश्रम धर्मराज्य समझता था। इसलिए सन् 21 में मैंने यथाशक्ति काम किया और जेल गया। पं. नेहरू जी बड़ा मोटा जनेऊ पहनते थे। आंख मीचकर भजन करते थे। सबके सदुयोग से विदेशी अंग्रेज तो चले गए। मुसलमानों ने अपना राज्य बना लिया।

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