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1952 में बिहार विधानसभा की 320 में से 47 सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद जनसंघ को कोई स्थान प्राप्त नहीं हुआ था और मत भी मात्र 1.2 प्रतिशत ही मिले। पर जनसंघ की संघर्षमय यात्रा तो प्रारम्भ हो ही चुकी थी और वह सतत् चलती रही। 1972 में जनसंघ ने विधानसभा की 270 सीटों पर चुनाव लड़ा और 25 सीटें जीत भी लीं। इस बार मत प्रतिशत भी बढ़कर 11.7 हो गया। 1980 में भाजपा बनने के बाद भी उतार-चढ़ाव चलता रहा। फिर भी 1952से लेकर 1995 के 11 विधानसभा चुनावी नतीजों को देखें तो नहीं लगता कि बिहार में जनसंघ/भाजपा के लिए अच्छी संभावनाएं रही हैं। लेकिन 1995 में जब भाजपा बिहार विधानसभा में दूसरे स्थान पर पहुंच गई तो लगा कि भाजपा भी राज्य में सरकार बना सकती है। उल्लेखनीय है कि 1962 से 1972 के चुनाव आते-आते जनसंघ शक्ति का निरन्तर विस्तार हुआ। भाजपा का प्रादुर्भाव होने पर 1980 के विधानसभा चुनाव में उसे 18.84 लाख (8.4 प्रतिशत) मत मिले तथा 20 सीटें भी प्राप्त हुईं। 1985 का चुनाव उनके लिए अच्छा नहीं रहा। मात्र 16 सीटें मिलीं और मतों में भी गिरावट आयी।राम मन्दिर आन्दोलन और कांग्रेस के कमजोर होने के बाद भाजपा का उदय एक राष्ट्रवादी पार्टी के रूप में हुआ और इसके बाद भाजपा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1990 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 36.54 लाख (11.6 प्रतिशत) वोट मिले तथा 39 सीटें उनके हिस्से में आईं। 1995 में तो भाजपा कांग्रेस को पीछे छोड़कर मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई। उसे 41 सीटों पर जीत हासिल हुई। दक्षिणी बिहार में पृथक वनाञ्चल के मुद्दे को समर्थन देने के कारण उन्हें अच्छी सफलता मिली। 95 के चुनाव में दक्षिण की 82 सीटों में भाजपा को 21 पर सफलता मिली थी। इसके बाद तो दक्षिणी बिहार जैसे भाजपा का गढ़ बन गया। पिछले तीन लोकसभा चुनावों 1996, 1998 और 1999 में कुल 14 सीटों में से क्रमश: 12, 12 और 11 सीटें प्राप्त हुईं।इसके पश्चात् अभी हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के तहत चुनाव लड़ा। भाजपा ने कुल 150 सीटों पर चुनाव लड़ते हुए 67 स्थान प्राप्त किए।18
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