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यदि कोई कुर्सी पाएदार है
तो यह जरूरी है
कि वह लोगों से घिरी हो,
उस कुर्सी पर बैठने वाले के लिए तो
यह निहायत जरूरी है
कि वह उन लोगों को पहचाने।
इन लोगों में दो नस्ल के लोग हैं-
एक नस्ल चापलूसों की है
दूसरी नस्ल वफादारों की है।
हर देश में,
हर काल में,
वफादार सदा ही
अल्पसंख्यक रहे हैं।
चापलूसी और वफादारी
दो अलग-अलग बातें हैं-
यह जरूरी नहीं है कि
हर वफादार चापलूस हो,
और यह तो
कतई जरूरी नहीं है कि
हर चापलूस वफादार हो,
आप मानिए
या न मानिए
लेकिन यह एक सच्चाई है कि
चापलूस
कभी नीम नहीं हो सकता,
और वफादार
सदा शहद नहीं हो सकता।
भाषा के प्रयोग में
चापलूस को
भाषा की बारीकियां
खूब आती हैं,
लेकिन वफादार
खड़ी बोली बोलता है।
चापलूसों से घिरे रहने का अर्थ है
छेदवाली नाव पर सवार होना
छेदवाली नाव पर सवार होने का अर्थ है
नाव का देर-सबेर डूबना
और छेदवाली नाव
कभी किनारे पर नहीं डूबती।
अपनों के द्वारा ही
जंगल में ले जाकर
कत्ल कर दिए गए
इतिहास-पुरुषों की सूचियां कहती हैं-
इन दो नस्लों के बीच
पहचान की
पैदा करो
तमीज,
आस्तीनों को देखो
नहीं तो काटेगी
कमीज।
द डा. देवेन्द्र दीपक
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