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-मुकेश धीरूभाई अम्बानी
उपाध्यक्ष तथा प्रबन्ध निदेशक,
रिलायन्स इंडस्ट्रीज प्रा0 लि0
42 वर्षीय श्री मुकेश अम्बानी वि·श्व की सबसे बड़ी पांच सौ कम्पनियों में गिनी जाने वाली रिलायन्स इण्डस्ट्री के उपाध्यक्ष और प्रबन्धक निदेशक हैं। एशिया वीक ने उनकी कम्पनी की कुल सम्पदा 6842 लाख डालर अथवा 30 खरब रुपए लिखी है। पूरे वि·श्व में भारत के औद्योगिक ध्वज को उन्होंने बड़ी शान से लहराया है। इसका श्रेय वे अपने पिता श्री धीरू भाई अम्बानी को देते हैं। प्रस्तुत है उद्योग जगत के इस नायक के साथ पाञ्चजन्य की बातचीत के अंश-
थ् इस युवा अवस्था में ही आपको देश की जनता वि·श्व के औद्योगिक पटल पर भारत को अग्रणी स्थान दिलाने वाला मानती है। इतनी कम उम्र में यह सम्मान पाकर कैसा महसूस होता है?
दृ मुझे यह अपना सबसे बड़ा सम्मान महसूस होता है। ईस्वी सन् 2025 आते आते देश के 1.3 अरब भारतीयों में से 40 करोड़ 35 वर्ष से कम आयु के होंगे और वे नई-से-नई प्राद्योगिकी अपना कर दुनिया की नई चुनौतियों का सामना करने में समर्थ होंगे। अगर उनकी प्रेरणा और कुछ कर गुजरने की भावना ठीक दिशा में रही तो वे एक महान भारत बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे।
आज जो स्थिति मुझे प्राप्त हुई है उस सफलता का श्रेय मैं अपने पिता श्री धीरू भाई अम्बानी को देता हूं। वे न केवल मेरे पिता है बल्कि मेरे गुरु और मार्ग दर्शक भी हैं। उन्होंने मुझे स्पष्ट रूप से निर्धारित लक्ष्यों, उत्कृष्टता का स्तर प्राप्त करने के लिए अडिग लगन, बड़ी उपलब्धियों के बावजूद अत्यन्त विनम्र व्यवहार और जो सबसे श्रेष्ठ है उससे भी बेहतर कर दिखाने की अतिरिक्त व्यग्रता को जीवन में ढालने का महत्व व मूल्य समझाया।
थ् आपको भारत का भविष्य कैसा दिखता है? इतनी ज्यादा गरीबी, अशिक्षा और मूलभूत ढांचे की कमी के बावजूद क्या आपको लगता है कि भारतीय समाज आगे बढ़ेगा?
दृ हां जरूर मुझे पूरा वि·श्वास है कि भारत एक बहुत बड़ी छलांग लगाने के लिए तैयार है। हममें सामथ्र्य है और हमारे सामने अवसर हैं। सिर्फ हमें रास्ते की कुछ बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता है। आज प्रौद्योगिकी क्रांति अकल्पनीय गति से दुनिया को बदल रही है। और इस क्रांति ने भारत के सामने गरीबी, अशिक्षा तथा अन्य सामाजिक, आर्थिक बुराइयों को दूर करने की एक अभूतपूर्व संभावना प्रस्तुत की है।
हम 21वीं शताब्दी को भारत की शताब्दी बना सकते हैं। यह मेरा पक्का वि·श्वास है कि अगले 25 वर्षों में भारत अमरीका चीन जर्मनी और ब्रिटेन जैसी पांच बड़ी आर्थिक शक्तियों के साथ खड़ा होगा।
थ् वे कौन से मुख्य तत्व हैं जो आपकी दृष्टि में भारत को विकसित राष्ट्र बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे?
दृ दूसरे देशों के विपरीत भारत विश्व में निम्नलिखित कारणों से ज्यादा लाभ की स्थिति में है-
1- विविधता का सम्मान, सहिष्णुता, लोकतंत्र और आतिथ्य सत्कार भारतीय अस्मिता के अनिवार्य अंग हैं। आज सूचना युग में भी इन्हीं तत्वों को अनिवार्य आवश्यकता माना गया है। इसलिए भारत सूचना युग की मांगों को पूरा करने की प्रतिस्पर्धा में बहुत लाभ की स्थिति में है।
2- पश्चिम में सम्बंधों में बढ़ती दूरियां हताशा के गहरे दबाव और परिवार से अलगाव सामाजिक बुराईयां बन चुकी हैं। जबकि भारतीय पारिवारिक व्यवस्था नए सूचना युग में आर्थिक दबावों के सामने एक मजबूत प्रतिरोधक का काम करेगी।
3- भारत को एक बहुत बड़े और निरन्तर बढ़ रहे घरेलू बाजार का भी लाभ मिलता है।
विकास के मार्ग में जो बाधाएं मुझे महसूस होती हैं वे इस प्रकार हैं-
1- हमें खाद्य, शिक्षा और रोजगार की मूलभूत समस्याओं का शीघ्र समाधान निकालना होगा अन्यथा देश में हिंसा, अपराध और उससे जुड़ी विकृतियां बहुत तेजी से फैल जाएंगी।
2- हमें श्रम कानूनों को भी परिमार्जित करना है। हम उस पुरानी हो चुकी श्रम नीति के आधार पर अतिरिक्त रोजगार पैदा नहीं कर सकते जो श्रम नीति सरकार, सार्वजनिक क्षेत्र तथा संगठित निजी क्षेत्र में दो करोड़ अस्सी लाख रोजगारों का ही संरक्षण करती है।
3- राज्य के तंत्र को आधुनिक बनाना होगा। हम 18वीं सदी के सरकारी ढांचे के साथ 21वीं सदी की अर्थव्यवस्था हासिल नहीं कर सकते। सरकार और जनता के बीच का सम्बंध भागीदारी की भावना से बनना चाहिए।
थ् देश के कला, विज्ञान या राजनीति के क्षेत्र में कुछ ऐसे युवा नायकों के नाम बताइये जो आपकी दृष्टि में भारत को प्रगति की नई दिशा में ले जाने में समर्थ हैं?
दृ मेरे ख्याल में हमें निजी व्यक्तियों पर ध्यान केन्द्रित करने के बजाए सामूहिक उपलब्धियों पर ध्यान देना चाहिए।
थ् और अंत में वे कौन सी बातें है जिनके कारण आप भारतीय होने में गर्व महसूस करते हैं? आपने अपने पिता श्री धीरू भाई अम्बानी से, जो आज वि·श्व के ख्याति प्राप्त शिखर उद्योगपतियों की श्रेणी में हैं, किन भारतीय मूल्यों की शिक्षा ग्रहण की?
दृ मुझे एक भारतीय होने का गर्व है। भारतीय जीवन दृष्टि एकात्मवादी समग्र दृष्टि है। जिसमें भौतिक सुखों और सांसारिक आनन्द को सामाजिक कर्तव्य,नैतिक अनुशासन और सदाचार के सिद्धांतों के साथ-साथ ई·श्वर के प्रति समर्पण तथा आध्यात्मिक जिज्ञासा के चौखटे में संयोजित किया गया है।
दूसरे समाजों में जहां लोगों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने को भड़काया जाता है, वहीं भारतीय जीवन मूल्य हमें अपने कर्तव्यों के प्रति असंदिग्ध निष्ठा के लिए प्रेरित करते हैं। हमारा समाज धर्म की अवधारणा पर टिका है। मैं समझता हूं कि यहीं हमारी सबसे बड़ी ताकत है।
मैंने अपने पिता से न केवल व्यापारओर प्रबन्धन के सूत्र सीखे हैं बल्कि परम्पराओं और नैतिकता का पाठ भी पढ़ा है। उन्होंने हमें सिखाया है कि हम सब जो कुछ भी हैं और जो कुछ हम बने हैं उसके लिए हम समाज के प्रति ऋणी हैं इसलिए हमें अपनी सामथ्र्य के अनुसार समाज को उसका दाय वापस देना ही चाहिए और लोगों को आगे बढ़ने में मदद करनी चाहिए।
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