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पाञ्चजन्य

by
Jul 5, 2000, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Jul 2000 00:00:00

पचास वर्ष पहले

थ् वर्ष 4, अंक 32 थ् फाल्गुन शुक्ल 1, सं. 2007 वि. थ् मूल्य 3 आने

थ् सम्पादक : ज्ञानेन्द्र सक्सेना

थ् प्रकाशक – श्री राधेश्याम कपूर, राष्ट्रधर्म कार्यालय, सदर बाजार, लखनऊ

——————————————————————————–

सामथ्र्य का अभाव ही सब समस्याओं की जड़

राष्ट्र के प्रति श्री गुरुजी की संदेश

लखनऊ, 4 मार्च, रा.स्व.संघ के सरसंघचालक श्री मा.स.गोलवलकर ने दयानन्द कालेज के प्रांगण में नगर के स्वयंसेवकों के समक्ष भाषण करते हुए कहा कि पशु प्रवृत्ति से परिपूर्ण मानव समाज में शुद्ध सामथ्र्य के अभाव के कारण ही हमारे राष्ट्र का बाहर व भीतर अपमान हो रहा है। कश्मीर समस्या के त्रिशंकु की भांति लटके रहने का कारण यही है।

आपने कहा कि अपने परमप्रिय राष्ट्र को सामथ्र्यशाली बनाने के लिए हमें सब कुछ छोड़कर लग जाना चाहिए। देश के करोड़ों भूखे लोगों की क्षुधा दूर करने का कार्य सर्वप्रथम हमारा ध्यान आकृष्ट करता है। चाहे इसके लिए हमें अपने जीवन भले ही नष्ट करने पड़ें। इससे बढ़कर सौभाग्य अन्य नहीं हो सकता।

इस राष्ट्र का जीवन सुखी नहीं अपितु दु:खी है। इस बात के लोग अनेक कारण बता सकते हैं परन्तु उन सब कारणों से परिणाम यही निकलता है कि समाज दिशाहीन है और यह उसका दुर्भाग्य है। विचित्रता यह है कि सब प्रकार की संपन्नता की साधन सामग्री होते हुए भी राष्ट्र वृत्ति प्रकट करने में लोग हिचकते हैं। स्थिति यह है कि बाहर के लोग तो अपमान करने पर तुले ही हैं, हमारे अपने देशबंधु भी अपने आपको राष्ट्र कहने का साहस नहीं करते। इसका कारण यह है कि हम दुर्बल हैं। दुर्बल होने का भी कारण हमारे समाज का असंगठित होना है। शाखोपशाखाओं में फला-फूला होने के उपरान्त वे सब अपने आपको अलग-अलग मानकर चलने लगे और इस प्रकार समस्त समाज वृक्ष की एकरसता नष्ट हो गयी। सामथ्र्य का अभाव हुआ एवं आत्मवि·श्वास नष्ट हो गया।

टिड्डीग्रस्त ग्रामों में संघ के

स्वयंसेवकों का महत्त्वपूर्ण कार्य

जांलन्धर, 28 फरवरी। उन्होंने पहले होशियारपुर जिले पर धावा किया और फिर जालंधर को भी अपना शिकार बनाया। जालंधर में इस संकट के नि:वारणार्थ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कर्मठ कार्यकत्र्ताओं ने बड़ी तत्परतापूर्वक सरकार की सहायता की।

संघ के स्थानीय संघचालक श्री भीमसेन मेहरा एडवोकेट तथा कार्यवाह श्री वतन सिंह जालंधर के डिप्टी कमिश्नर से तुरन्त मिले और उन्होंने इस कार्य में सरकार को संघ की सहायता का पूर्ण आ·श्वासन दिया।

परिणामस्वरूप 21 फरवरी को संघ के 1000 स्वयंसेवकों ने टिड्डीग्रस्त गांवों में पहुंचकर इस कार्य में सरकार का हाथ बंटाया। सरकार की ओर से यद्यपि परिवहन की समुचित व्यवस्था नहीं हो पायी थी तो भी संघ के कार्यकत्र्ता अपनी निस्वार्थ सेवा में एक इंच भी पीछे नहीं हटे।

करूं क्या रुद्र आवाहन?

बरसकर रक्त के बादल किया था लाल अम्बर को,

करुं क्या रुद्र आवाहन बिछा निज अस्थि पंजर को?

उठा था खोलकर जिससे कि,

सागर उर भयाकुल बन।

निकलते रन्ध्र-पथ से थे,

विनय-स्वर प्रेम प्याला बन।।

शरासन पर न जब शर था,

हुआ स्वर था किनारे से।

वही मानव अरे मैं हूं,

चले जग जिस इशारे से।

-श्री राधारमण मिश्र

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