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सुनो कहानीलालचएक रेलवे स्टेशन पर मालगाड़ी से शीरे के बड़े-बड़े ड्रम उतारे जा रहे थे। उन ड्रमों से थोड़ा-थोड़ा शीरा मालगाड़ी के पास नीचे जमीन पर गिर रहा था। जहां शीरा गिरा था, मक्खियां आकर बैठ गईं और शीरा चाटने लगीं। ऐसा करने से उनके छोटे-छोटे मुलायम पंख उस शीरे में ही चिपक गए, फिर भी मक्खियों ने उधर ध्यान न देकर शीरे का लालच न छोड़ा और काफी देर तक शीरा चाटने में ही मगन रहीं। कुछ समय बाद वहां एक कुत्ता भी आ गया। कुत्ते को देखकर वे मक्खियां डरीं और वहां से उड़ने की कोशिश करने लगीं, परन्तु पंख शीरे में चिपक जाने के कारण वे उड़ नहीं सकीं और शीरे के साथ-साथ वे सब भी कुत्ते का भोजन बनती गईं। उसी समय उड़ते-उड़ते और कई मक्खियां भी उस शीरे पर आकर बैठती गईं। उन सबके पंख भी शीरे में चिपक गए और वे भी उस कुत्ते का भोजन बन गईं। उन्होंने पहले से पड़ी मक्खियों की दुर्गति और विनाश देखकर भी उनसे कोई सीख नहीं ली, जबकि वही विनाश उनकी भी प्रतीक्षा कर रहा था। यही दशा इस संसार की है। मनुष्य देखता है कि लोभ-मोह किस तरह आदमी को दुर्गति में, संकट में डालता है, फिर भी वह दुनिया के इन दुर्गुणों से बचने की कोशिश कम ही करता है। परिणामत: अनेक मनुष्यों की भी वही दुर्गति होती है, जो उन लोभी मक्खियों की हुई। — मानस त्रिपाठीबूझो तो जानेंप्यारे बच्चो! हमें पता है कि तुम होशियार हो, लेकिन कितने? तुम्हारे भरत भैया यह जानना चाहते हैं तो फिर देरी कैसी? झटपट इस पहेली का उत्तर तो दो। लेकिन यह मत समझना कि एक ही पहेली है। भरत भैया हर सप्ताह तुमसे ऐसी ही एक रोचक पहेली पूछेंगे। इस सप्ताह की पहेली है-मुझे खून दो तुम, मैं तुमको आजादी दे दूंगा, अंग्रेजी सत्ता को भारत से उखाड़ फेंकूंगा।नेता जी नाम उन्होंने भारत भर में पाया, दिल्ली चलो-चलो दिल्ली का घर-घर नाद गुंजाया।।उत्तर: (सुभाष चंद्र बोस)5
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