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रेत की आंधी
नीलामी अश्कों की सरेबाजार।
बिखर रहे मोती हैं सरेबाजार।।
घाटी के उस गांव से खबर आयी।
आंसुओं की बरसात सरेबाजार।।
पर्वत की पीड़ा कौन समझता है।
झेलम का हाहाकार सरेबाजार।। नंदनवन मुस्काता रहा युगों से।
कली-कली कुचल गयी सरेबाजार।।
केसर की क्यारी बारूदों की फसल।
कल्हण की चीख सुनो सरेबाजार।। दहशत ने उजाड़ दिया घर-आंगन।
दहक रहे शोले हैं सरेबाजार।।
उनकी सियासत रेत की आंधी है
चट्टान बन रोक लो, सरेबाजार।।
— शत्रुघ्न प्रसाद
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