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अपने-अपने भाव
बिजली वालों को पता चल गया कि वे अपने काम के कारण बेहद बदनाम हो चुके हैं। उन्हें जनता का बिल्कुल समर्थन नहीं मिला। सरकार की दृढ़ता के आगे उन्हें झुकना पड़ा।
दपाञ्चजन्य लखनऊ ब्यूरो
उत्तर प्रदेश में विद्युतकर्मियों की हड़ताल लम्बी चली, इसके चलते प्रदेश अंधेरे में भी डूबा। किन्तु अन्तत: सरकार के दृढ़ रवैए के कारण हड़ताल समाप्त हुई। राज्य विद्युत परिषद् में सुधार प्रक्रिया प्रारम्भ हुई और विद्युतकर्मियों को भी पता चल गया कि प्रदेश की जनता में वे कितने अलोकप्रिय हैं। अन्यथा क्या उन्हें जनसाधारण का समर्थन न मिलता? भले ही सरकार को भी अपने रवैए में कुछ नरमी लानी पड़ी, किन्तु इसे आर्थिक बदहाली में डूबती-उतराती राज्य विद्युत परिषद् में सुधार की प्रक्रिया का आगाज कहा जा सकता है। उत्तर प्रदेश सरकार ने घाटे में चल रही राज्य विद्युत परिषद् को भंग कर इसके स्थान पर तीन पृथक-पृथक निगमों का गठन किया है। तीनों निगम स्वतन्त्र इकाई के रूप में कार्य करेंगे। लेकिन सरकार की इस व्यवस्था से नाराज होकर विद्युत कर्मचारी हड़ताल पर चले गए थे। ग्यारह दिन हड़ताल पर रहने के बाद वे काम पर वापस लौट आए हैं।
समझौते के बिन्दु
थ् निजीकरण की प्रक्रिया एक वर्ष के लिए स्थगित इस अवधि में निजीकरण के प्रभावों का अध्ययन किया जाएगा।
थ् नए बनाए गए तीनों निगमों सम्बंधी अधिसूचना वापस नहीं ली जाएगी।
थ् विद्युतकर्मियों की सेवा शर्तें पूर्ववत रहेंगी।
भविष्यनिधि के भुगतान के लिए एक हजार करोड़ रुपए का न्यास बनेगा।
थ् पेंशन और ग्रेच्युटी का भुगतान राजकीय कोषागार से ही होगा।
थ् हड़ताल के दौरान आन्दोलनकारी कर्मचारियों के विरुद्ध की गई सभी कार्रवाई सरकार वापस ले लेगी। बर्खास्त कर्मचारी बहाल किए जाएंगे।
राज्य विद्युत परिषद् का गठन 40 वर्ष पूर्व किया गया था। लगभग 85 हजार कर्मचारियों की भारी भरकम संख्या वाला यह विभाग कई वर्षों से अपने उद्देश्य में असफल साबित हो रहा था। राजस्व बकाया वसूली में लापरवाही, विद्युत चोरी तथा भ्रष्टाचार के चलते परिषद् भारी घाटे में चली गई थी। इसे प्रति वर्ष 25 सौ करोड़ रुपए का घाटा हो रहा था। वर्तमान कुल घाटा 10600 करोड है। परिषद् उत्पादित बिजली का 42 प्रतिशत अंश क्षति के रूप में दर्शा रही थी। राज्य के लिए अपेक्षित 13999 मेगावाट की बजाय विद्युत उत्पादन मात्र 5886 मेगावाट हो रहा था। इस खस्ता हालत के चलते राज्य विद्युत परिषद् को सरकार ने भंग कर दिया। राज्य विद्युत परिषद् को उ.प्र. विद्युत निगम, जल विद्युत उत्पादन निगम तथा तापीय विद्युत उत्पादन निगम में विभाजित किया है। इन विभाजित निगमों में जल विद्युत उत्पादन निगम और तापीय विद्युत उत्पादन निगम, विद्युत उत्पादन का कार्य करेंगे और तीसरा उ.प्र. विद्युत निगम इन दोनों निगमों से बिजली खरीदेगा और वितरण का कार्य करेगा। उ.प्र. विद्युत निगम शेष दोनों निगमों के प्रति सीधे उत्तरदायी होगा। विद्युत वितरण कार्य के लिए निजीकरण के उपाए किए जा सकते हैं। विभाजन के ऐसे प्रयोग उ.प्र. से पहले आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, उड़ीसा, हरियाणा में भी किए जा चुके हैं।
विद्युत परिषद् को भंग किए जाने के सम्बंध में मुख्यमंत्री श्री रामप्रकाश गुप्त ने पत्रकारों को बताया कि विद्युत परिषद् की बिगड़ी हुई व्यवस्था के कारण इसे भंग किया गया है। जबकि राज्य विद्युत परिषद् की संयुक्त कर्मचारी संघर्ष समिति के मीडिया संयोजक श्री शैलेन्द्र दुबे के अनुसार विद्युत परिषद् के विघटन का प्रयोग अन्य राज्यों में भी विफल रहा है। प्रदेश में विद्युत उत्पादन पर दो रूपए 68 पैसे लागत आती है जबकि औसत मूल्य एक रुपए 82 पैसे है। बोर्ड को 68 पैसे प्रति यूनिट घाटा होता है। उन्होंने बताया कि बोर्ड को सरकार की नीतियों के अनुरूप ग्रामीण एवं पिछड़ी बस्तियों में भी विद्युतीकरण करना पड़ा है। यह भी घाटे का कार्य है, क्योंकि इस पर तीन हजार करोड़ खर्च करने पड़े हैं। यह पैसा सरकार को देना चाहिए था। इसके अलावा राज्य विद्युत परिषद् का प्रदेश के सिचाई विभाग पर 445.38 करोड़, वाटर वक्र्स पर 975.38 करोड़ तथा मार्ग प्रकाश पर 259.94 करोड़ बकाया है। इसलिए बोर्ड को जिम्मेदार ठहराना अनुचित है। सरकार और कर्मचारियों, दोनों के अपने-अपने तर्क हैं, किन्तु फिलहाल दोनों पक्षों ने अपने-अपने भाव दिखा दिए, हड़ताल समाप्त हो गई, कर्मचारी काम पर लौट आए। अब देखना है सुधार की यह प्रक्रिया कसौटी पर कितनी खरी उतर पाती है।
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